Sunday, 19 February 2012

महाराष्ट्र में के महापालिका चुनाव के नतीजे

महाराष्ट्र में की दस महानगर पालिकाओं में १६ फरवरी को चुनाव हुए| उसके नतीजे दि. १७ को घोषित हुए| उन नतीजों से जो सर्वसामान्य निष्कर्ष निकलते है, उनकी ही चर्चा इस लेख में की जा रही है| महापालिकाओं के चुनाव के पूर्व, फरवरी को, महाराष्ट्र में की २७ जिला परिषद और उन जि. . के क्षेत्र में आनेवाले पंचायत समितियों के भी चुनाव हुए| उन चुनावों के नतीजों का परिणाम महापालिका के चुनाव पर हो, इसलिए, उसकी मत-गणना पहले करें, महापालिका के मत-गणना के ही साथ करें, ऐसी विनंति कुछ राजनैतिक दलों ने की थी| वह चुनाव आयोग ने मान्य की| इस कारण जि. . और पं. . के चुनाव के नतीजें भी दि. १७ को ही घोषित हुए| लेकिन उन नतीजों की बहुत ज्यादा चर्चा नहीं हुई| मत-गणना भी बहुत धीमी चल रही थी| लेकिन महापालिका के चुनाव नतीजों की चर्चा खूब हुई और आगे भी कुछ दिन वह चलती रहेगी| इन हापालिका चुनावों को सब राजनीतिक दलों ने २०१४ में होनेवाले राज्य विधानसभा के चुनावों की रिर्हसल या सेमी फायनल की दृष्टि से देखा| इस कारण, अन्य चुनावों की तुलना में इस समय के चुनावों को बहुत महत्त्व आया|
कॉंग्रेस की फजीहत

इस चुनाव की एक मुख्य विशेषता यह रही कि, कॉंग्रेस के मनसूबें धूल में मिल गए| स्वयं मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने बड-चढ़कर इस चुनाव के प्रचार में भाग लिया| शिवसेना का नामोंनिशान मिटाने की, स्वयं के श्रेष्ठ पद को शोभा देने वाली, भाषा का उन्होंने प्रयोग किया| शिवसेना का दबदबा मुंबई और ठाणे इन महानगरों के क्षेत्रों में ही विशेष रूप से है| उसे समाप्त करने के लिए कॉंग्रेस ने पूरी तैयारी की| पुणे और पिंपरी-चिंचवड इन महापालिका क्षेत्रों में, कॉंग्रेस के साथ गठबंधन करने के लिए नकार देनेवाली राष्ट्रवादी कॉंग्रेस (राकॉं) के साथ, पार्टीं के कार्यकर्ताओं का तीव्र विरोध होने के बावजूद भी, मुंबई में कॉंग्रेस ने गठबंधन किया| कॉंग्रेस के नेताओं का अंदाज गलत था, ऐसा नहीं कह सकते| शिवसेना-भाजपा गठबंधन गत पंधरा वर्षों से मुंबई महापालिका में सत्ता में है| इस कारण, पूर्व पदाधिकारियों के बारे में नाराजी (ऍण्टी इन्कम्बन्सी फॅक्टर) यह कॉंग्रेस की दृष्टि से सबसे अधिक उपकारक घटक था| किसे भी स्वाभाविक ही लगेगा की, लोग नये प्रशासक चाहेंगे| इस घटक के साथ, राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की सशक्त उपस्थिति इस चुनाव में रहनेवाली थी| मनसे शिवसेना के मत खाएँगी इस बारे में किसी के मन में संदेह होने का कारण नहीं था| यह दो घटक ध्यान में रखकर ही पृथ्वीराज चव्हाण ने शिवसेना के सियासी समाप्ती की भविष्यवाणी की होगी| शिवसेना के पिछडने के बाद शिवसेना-भाजपा गठबंधन का पिछडना स्वाभाविक ही होता| फिर सत्ता के सूत्र कॉंग्रेस और राकॉं गठबंधन के हाथ आऐंगे ऐसा उनका अंदाज था| लेकिन मतदाताओं ने वह गलत साबित किया| शिवसेना, भाजपा और रिपब्लिकन पार्टी (आठवले गुट) के महागठबंधन ने २२७ सिटों में से १०७ सिंटें जीती| कॉंग्रेस को केवल ५० सिंटें ही मिल पाई| राकॉं तो केवल १८ सिटों पर ही समाधान करना पडा| मनसे ने २८ सिटें जीतकर अपनी ताकद दिखा दी| लेकिन इस ताकद का कॉंग्रेस-राकॉं गठबंधन को लाभ नहीं हुआ| शिवसेना-भाजपा महागठबंधन के, इस कुछ आश्चर्यजनक सफलता का विश्लेषण किया जा रहा है| रामदास आठवले की रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (रिपाइं) के साथ गठबंधन करने के कारण यह सफलता मिल पाई, ऐसी कुछ विश्लेषकों ने मीमांसा की है| उसमें काफी सच्चाई हो सकती है| लेकिन रिपाइं केवल दो ही सिटें जीत पाई| उसने २९ सिटों पर चुनाव लडा था| शिवसेना और भाजपा की जो मूल आधारभूत शक्ति है उसे विरोधी, अपेक्षा के अनुसार भेद नहीं पाए, यह सत्य है| इस कारण, इस गठबंधन के हातों में लगातार चौथी बार मुंबई महापालिका की सत्ता आई है| शरद पवार की भाषा में कहे तो, पैसे देनेवाली मुर्गी पुन: उसी मालिक के पास गई है| यह सच है की, २२७ सदस्यों की महापालिका में हागठबंधन के पास १०७ ही सिटें है| मतलब उन्हें और सात सीटों की आवश्यकता है| लेकिन यह आवश्यकता शिवसेना और भाजपा के विजयी विद्रोही पूरी कर देंगे| तात्पर्य महागठबंधन का वहॉं प्रशासन अटल है

ठाणे में भी ...

जो मुंबई में हुआ, वही ठाणे में भी हुआ| ठाणे महापालिका से भी शिवसेना-भाजपा की सत्ता समाप्त होगी, ऐसी संभावना व्यक्त की गई थी| लेकिन वह भी गलत साबित हुई| यहॉं मनसे की ताकद पर्याप्त नहीं थी| लेकिन शिवसेना-भाजपा गठबंधन के प्रत्याशियों को पराभूत करने की निश्चित ही थी| तथापि, वहॉं भी शिवसेना-भाजपा गठबंधन ने सर्वाधिक मतलब ६२ सिटें जीती| इसमें शिवसेना का ५३ सिटों को बडा हिस्सा है| भाजपा के सदस्य है| यहॉं भी सत्तासीन होने के लिए उन्हें सदस्यों की आवश्यकता है| दस निर्दलीयों की संख्या से वह पूरी हो सकती है| नासिक में छगन भुजबल के दम पर सत्ता प्राप्त करने के सपने राकॉं देख रही थी| लेकिन उसकी निराशा हुई|

मनसे का प्रभाव

इस चुनाव की दूसरी विशेषता है मनसे ने दिखाई ताकद| मुंबई महापालिका में, मनसे के २८ प्रत्याशी चुनकर आए है| यह आँकडा राकॉं के प्रत्याशियों से अधिक है| नासिक महापालिका में तो मनसे सबसे बडी पार्टी चुनी गई है| कुल १२८ सदस्यों में मनसे के ४० सदस्य है| यह संख्या महापालिके के सत्तासूत्र हाथ में आने के लिए पहली नज़र में काफी नहीं, लेकिन अन्य पार्टिंयों की तुलना में वह लक्षणीय है|  संपूर्ण राज्य में शिवसेना-भाजपा का गठबंधन था| लेकिन नासिक अपवादभूत था| कारण कुछ भी हो, वहॉं उनका गठबंधन नहीं हो सका| वह हुआ होता तो चित्र निश्चित ही भिन्न होता और मुंबई-ठाणे की आवृत्ति नासिक में भी प्रकट होती| महापालिका के पदाधिकारी प्रत्यक्ष किस प्रकार के जोड-तोड से चुनकर आएगे, यह उत्सुकता का विषय है| क्या शिवसेना-भाजपा, मनसे को सत्ता में आने के लिए मदद करेंगे, यह एक उत्सुकता का प्रश् है| ्होंने विरोध नहीं किया और तटस्थ रहे, तो भी मनसे का काम बन सकता है|

पुणे की परिस्थिति

मुंबई-नासिक के समान ही पुणे में भी मनसे ने अपनी ताकद दिखाई है| १५२ सदस्यों में मनसे के २९ सदस्य है| पुणे में कॉंग्रेस को जबरदस्त धक्का बैठा है| पुणे की कॉंग्रेस मतलब सांसद सुरेश कलमाडी की कॉंग्रेस ऐसा समीकरण बन गया था| इस कारण, उन्हीं की पसंद के प्रत्याशी कॉंग्रेस का पंजालेकर खडे थे| कलमाडी, तिहाड जेल के मेहमान बने है| फिलहाल वे जमानत पर है और चुनाव के कुछ दिन पूर्व पुणे में आए है, फिर भी कॉंग्रेस को इसका लाभ नहीं मिला| राष्ट्रकुल क्रीडा स्पर्धा के आयोजन में के कलमाडी के भ्रष्टाचार का कॉंग्रेस को झटका लगा, ऐसा लगता है| कलमाडी और राकॉं के नेता तथा विद्यमान उपमुख्यमंत्री अजित पवार की बिल्कुल नहीं बनती| कलमाडी को सत्ता से दूर रखने के लिए ही पहले के कार्यकाल में राकॉं ने, कुछ समय के लिए ही सही, शिवसेना के साथ भी हाथ मिलाया था| उसे पुणे पॅटर्नकहा जाता है| बार पुणे पॅटर्नका स्वरूप राकॉं और मनसे ऐसा हो सकता है, ऐसा हुआ तो फिर पुणे में राकॉं का महापौर बन सकता है| वहॉं राकॉं के ५१ सदस्य चुनकर आए है| और मनसे के २९| १५२ सदस्यों के सभागृह में इस पॅटर्नका बहुमत हो सकता है|

पुणे में भाजपा को अपेक्षा के अनुसार सफलता नहीं मिली| वह केवल २६ सिटें जीत सकी| उसकी ५० सिटें जीतने की अपेक्षा थी, ऐसा कहा जाता है| विश्लेषकों का मत है कि, पुणे में भाजपा में तीव्र गुटबाजी है; इसका भाजपा को झटका लगा| पुणे भाजपा के अध्यक्ष पद पर मठकरी की नियुक्ति किए जाने के बाद, मामला बहुत चर्चा में आया था| भाजपा के ज्येष्ठ नेता गोपीनाथ मुंडे का रोष भी प्रकट हुआ था| आगे चलकर वह शांत हुआ, लेकिन नगर स्तर पर सौमनस्य निर्माण नहीं हो सका| भाजपा के प्रांतिक स्तर के नेताओं को इस स्थिति का गंभीरता से विचार करना होगा|

नागपुर में भगवा

नागपुर महापालिका पर फिर भाजपा-शिवसेना गठबंधन का झंडा फहराएगा यह निश्चित है लेकिन राजनीतिक निरीक्षकों को अपेक्षा थी कि भाजपा को इससे अधिक सफलता मिलेगी| अपने बुते पर भाजपा को ६२ सिटें मिली| मित्र पार्टी शिवसेना को और रिपाइं को | इस प्रकार इस गठबंधन की ७० सिटें होती है| कुल १४५ सिटें है| मतलब बहुमत के लिए और तीन सिटों की आवश्यकता है| वह तो निश्चित ही पूरी होगी| २००७ के चुनाव भी करीब यहीं स्थिति थी| फिर भी भाजपा शिवसेना गठबंधन का अधिकार पॉंच वर्ष ठीक चला| नागपुर लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत के : विधानसभा मतदार संघों में से चार क्षेत्रों में भाजपा के विधायक चुनकर आए है| इस पृष्ठभूमि पर भाजपा को कम से कम ७५ सिटें मिलेगी, ऐसी अपेक्षा थी| लेकिन वह पूरी नहीं हुई|

अन्य क्षेत्र

पिपंरी-चिंचवड में, राकॉं ने अपने बुते पर ८४ सिटें जीती है| १२८ सिटों की महापालिका में सत्ता काबीज करने के लिए यह संख्या काफी है| पॉंच वर्ष पूर्व यहॉं राकॉं को ६० सिटें मिली थी| उसमें चालीस प्रतिशत वृद्धि हुई है| यहॉं राकॉं का कॉंग्रेस के साथ गठबंधन नहीं था|

सोलापुर में कॉंग्रेस सबसे बडी पार्टी चुनकर आई है| १०२ सदस्यों के सभागृह में कॉंग्रेस के ४५ सदस्य है| यहॉं कॉंग्रेस और राकॉं स्वतंत्र रूप से लडे| लेकिन वे सत्ता के लिए एक हो सकते है| राकॉं को १६ सिटें मिली है| दोनों के साथ आने पर आवश्यक बहुमत होता है|

उल्हासनगर में शिवसेना भाजपा गठबंधन को ३० सिटें मिली है| यहॉं कुल ७८ सिटें है| कॉंग्रेस और राकॉं मिलकर २८ है| यहॉं मनसे नगण्य है| उसे केवल एक सीट मिली है| मतलब सत्ता की चाबी अपक्ष के हाथ में है| कारण उनकी संख्या १९ है| अर्थात् अपक्ष मतलब एकजूट गुट नहीं लेकिन उन्हें महत्त्व आया है, यह निश्चित| इस परिस्थिति में शिवसेना-भाजपा गठबंधन का महापौर चुनकर सकता है|

अमरावती में भी त्रिशंकु अवस्था है| कॉंग्रेस ने घूस देने के लिए एक कराडे रुपये लाए थे| वह, समय रहते ही पुलिस ने पकडने के कारण, कॉंग्रेस के काम नहीं सके| इसका अर्थ कॉंग्रेस ने मतदाताओं को घूस और लालच दी ही नहीं होगी, ऐसा नहीं होता| लेकिन कॉंग्रेस को फिर भी अपेक्षित सफलता नहीं मिली| ८७ सिटों की महापालिका में कॉंग्रेस को केवल २५ सिंटें मिली| कॉंग्रेस और राकॉं साथ मिले तो ही सत्ता उनके हाथ आएगी| संभवत: यही होगा| कॉंग्रेस से निष्कासित भूतपूर्व मंत्री सुनील देशमुख और भाजपा से निष्कासित भूतपूर्व विधायक जगदीश गुप्ता ने, महापालिका के लिए गठबंधन किया था| लेकिन इस गठबंधन को केवल सिटें मिली| उनको साथ लेकर किसी का भी भला नहीं होने का| इस कारण देशमुख-गुप्ता गठबंधन महापालिका में तो उपेक्षित ही रहेगा| शायद वह विसर्जित भी हो जाएगा|

अकोला महापालिका में भाजपा और कॉंग्रेस को समान मतलब १८-१८ सिटें मिली है| राकॉं को केवल | पिछली बार थी| मतलब कॉंग्रेस-राकॉं के पास २३ सिटें होती है| शिवसेना को सिटें मिली है| शिवसेना-भाजपा गठबंधन की २६ सिटें हेाती है| लेकिन बहुमत के लिए ३७ चाहिए| प्रकाश आंबेडकर की कॉंग्रेस के साथ बनती है| उन्हें कितनी सिटें मिली इसकी मुझे जानकारी नहीं है| लेकिन वे कॉंग्रेस के साथ जा सकते है| उस स्थिति में वहॉं कॉंग्रेस का महापौर चुनकर भी सकता है| २३ फरवरी को महापौर का चुनाव है|

हवाओं की दिशा

इस चुनाव ने एक महत्त्व की बात स्पष्ट की है कि मनसे की उपेक्षा नहीं की जा सकती| राज ठाकरे ने चुनावों के बारे में संतोष व्यक्त किया है| वह उचित ही है| यह सच है कि, आज उनकी ताकद केवल शहरी क्षेत्र और वह भी मुंबई-पुणे-नाशिक इन शहरों तक ही सीमीत है| लेकिन उसका विस्तार हो सकता है| वह कौशल्य और कुवत राज ठाकरे में है| किसी समय शिवसेना भी मुंबई-ठाणे क्षेत्र में ही मर्यादित थी| लेकिन अब ग्रामीण क्षेत्र में भी उसका लक्षणीय विस्तार हुआ है| मनसे का भी विस्तार हो सकता है| आयु और युवक वर्ग राज ठाकरे के लिए अनुकूल है|

भाजपा के लिए भी सबक है| बीड जिले में गोपीनाथ मुंडे ने अपनी शक्ति प्रकट की है, यह सब ने ध्यान में लेना चाहिए| उनके परिवार में ही फूट डालने का षड्यंत्र राकॉं के अजित पवार ने रचा था और उसमें उन्हें सफलता भी मिली थी| लेकिन इस बार के जि. . और पं. . चुनाव ने मुंडे परिवार में के विद्रोहियों को उनकी जगह दिखा दी| मराठवाडा में के मुंडे की इस ताकद को भाजपा के राज्यस्तरिय नेतृत्व ने ध्यान में रखना चाहिये; और पार्टी में गुटबाजी नहीं रहेगी इसके लिए उपाय-योजना करनी चाहिए| सैद्धांतिक उद्बोधन, कार्यकर्ता और नेताओं के बीच घनिष्ठ संपर्क और संवाद व्यक्तिहित की अपेक्षा पार्टीहित श्रेष्ठ मानने की वृत्ति, इन तीन बातों पर पार्टी के रणनीतिकारों का जोर रहना चाहिए| ऐसा हुआ तो ही पार्टी सदृढ होगी|

कॉंग्रेस और राकॉं के बीच अपनी पकड मजबूत करने के लिए हमेशा ही संघर्ष चलता रहता है| इस चुनाव में राकॉं ने कॉंग्रेस से अधिक सफलता हासिल की है| कॉंग्रेस इसे सह लेगी, ऐसा लगता नहीं| केन्द्र में भी, सत्तारूढ कॉंग्रेस की नैया डगमगा रही है| तृणमूल कॉंग्रेस और द्रमुक ये सहयोगी पार्टियॉं विरोधी पार्टियों के समान बर्ताव कर रहे है| उनकी ही कतार में राकॉं भी जा बैठी, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए| अर्थात्, यह सब मार्च को उत्तर प्रदेश विधानसभा के नतीजें प्रकट होने के बाद ही स्पष्ट होगा| यहॉं हवाऐं किस दिशा में बह रही है, इतना ही सूचित किया है

- मा. गो. वैद्य
babujivaidya@gmail.com
(अनुवाद : विकास कुलकर्णी)

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