Monday 29 October 2012

नीतीन गडकरी, रॉबर्ट वढेरा और भारत सरकार

इस विषय पर नहीं लिखना, ऐसा मैंने तय किया था. भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनके नेता अरविंद केजरीवाल ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीन गडकरी पर, एक विशेष पत्रपरिषद में जो आरोप किए, उस बारे में गत सप्ताह ही भाष्यमें लेख आया था. टाईम्स ऑफ इंडियामें भी उस बारे में विस्तारपूर्वक समाचार प्रकाशित हुआ था; ‘पीटीआयवृत्तसंस्था ने भी मेरा अभिप्राय लेकर समाचारपत्रों को भेजा था. लेकिन गडकरी पर नए आरोप किए गए है. वह किसी व्यक्ति ने या संगठन ने नहीं किए. वह कुछ प्रसार माध्यमों की करामत दिखती है. अच्छी बात है. शोध पत्रकारितायह पत्रकार जगत का एक खास पैलू है. इस कारण उस माध्यम के विरुद्ध शिकायत करने का प्रयोजन नहीं.

अंतर
आश्‍चर्य इस बात का है कि, सरकार ने तुरंत इसकी दखल ली. ११ अगस्त २०१२ को मुसलमानों में के आतंवादियों ने सीधे पुलीस पर किए हमले की भी इतनी शीघ्रता से, केन्द्र सरकार ने, दखल लेने का समाचार नहीं. लेकिन गडकरी के विरुद्ध के आरोप मानो हमारे देश पर आई एक भीषण आपत्ति है, ऐसा मानकर सरकार ने उन आरोपों की शीघ्रता से दखल ली. कंपनी व्यवहार विभाग के मंत्री वीरप्पा मोईली ने कहा, ‘‘इस मामले की हम डिस्क्रीट इन्क्वायरीकरेंगे.’’ हमारी अंग्रेजी कुछ कमजोर है, इसलिए डिस्क्रीट शब्द का अर्थ अंग्रेजी शब्दकोश मे देखा. वहॉं डिस्क्रीट का न्यायपूर्ण और समझदारीपूर्णऐसे अर्थ मिले. ठीक लगा. अनेक गंभीर विषयों पर मौन का आसरा लेने वाली हमारी इस सरकार को न्यायऔर समझदारी से भी लगाव है, यह पता चला. लेकिन यह समाधान बहुत ही अल्पजीवी साबित हुआ. कारण, कॉंग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गॉंधी के दामाद रॉबर्ट वढेरा की जॉंच क्यों नहीं, ऐसा जब किसी ने मोईली से पूछा, तब उनका उत्तर था कि, वढेरा का मामला अलग है. और क्या या सही नहीं है? वढेरा सोनिया गॉंधी के दामाद है; और गडकरी नहीं. पल भर के लिए मान ले कि, नीतीन गडकरी सोनिया जी के दामाद होते, तो मोईली का विभाग इतनी शीघ्रता से सक्रिय होता? और क्या यह भी सच नहीं है कि, कहॉं वढेरा और कहॉं गडकरी? एक है केन्द्र की सत्तारूढ पार्टी के अध्यक्ष के सम्मानीय दामाद, तो दूसरे है विपक्ष के सामान्य अध्यक्ष!

डर किस बात का?
मैं केजरीवाल की बात समझ सकता हूँ. उन्हें अपनी नई पार्टी की प्रतिष्ठापना करनी है. विद्यमान राजनीतिक पार्टिंयॉं किस प्रकार दुर्गुणों से सनी है, यह बताने के लिए उन्होने कीचड़ उछालना स्वाभाविक मानना चाहिए. लेकिन कॉंग्रेस ने गडकरी से डरने का क्या कारण है? जेठमलानी की छटपटाहट समझी जा सकती है. वे बेचारे राज्य सभा के सामान्य सदस्य है. पार्टी के संगठन में या संसदीय दल में उन्हें विशेष स्थान नहीं. इसका कारण, गडकरी अध्यक्ष है, ऐसी उनकी गलतफहमी हो सकती है. और गडकरी ही फिर तीन वर्ष अध्यक्ष रहे, तो उनकी ऐसी ही दुर्दशा होती रहेगी, ऐसा उन्हें लगता हो तो इसमें अनुचित कुछ भी नहीं. लेकिन कॉंग्रेस क्यों अस्वस्थ हो रही है? बेताल बड़बड़ाने के लिए विख्यात कॉंग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने डरने का क्या कारण है? गनीमत है कि, उन्होंने कॉंग्रेस के महासचिव के नाते प्रधानमंत्री से गडकरी के मामले की जॉंच करने के लिए पत्र नहीं लिखा. वे कहते है, मैंने व्यक्तिगत रूप में वह पत्र लिखा है. लेकिन, दिग्विजय सिंह जी, सीधे प्रधानमंत्री को यह पत्र भेजने की क्या आवश्यकता थी? क्या यह पाकिस्तान या चीन ने भारत पर हमला करने जैसा गंभीर मामला है? और आपकी सरकार उसे गंभीरता से नहीं लेगी, ऐसा आपको लगता है? लेकिन दिग्विजय सिंह जैसे बेताल नेता को यह पूछने से कोई उपयोग नहीं. फिर भी, यह पूछा जा सकता है कि, २ जी स्पेक्ट्रम घोटाला, राष्ट्रकुल क्रीड़ा घोटाला, कोयला बटँवारा घोटाला, वढेरा का घोटाला, इस बारे में आपने व्यक्तिगत स्तर पर ही सही, कोई पत्र भेजने की जानकारी नहीं. क्या गडकरी का आरोपित घोटाला, इनसब घोटालों से भयंकर है?          

पक्षपाती सरकार
दि. २४ को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विजयादशमी उत्सव समाप्त होते ही, प्रसार माध्यमों के प्रतिनिधि संघ के प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य से मिले, और उनसे गडकरी के तथाकथित घोटाले से संबंधित प्रश्‍न पूछा. उन्होंने उत्तर दिया कि, यह मिडिया ट्रायलहै. मतलब प्रसार माध्यमों ने शुरु किया मुकद्दमा. उन्होंने क्या गलत कहा? किसने खोज निकाला यह तथाकथित घोटाला? और किसने इस घोटाले को भरपूर कर प्रसिद्धि दी? प्रसारमाध्यमों ने ही! वढेरा का घोटाला सूचना अधिकार कानून से बाहर आया. अरविंद केजरीवाल ने सार्वजनिक रूप में उनके ऊपर आरोप किए है. क्या प्रतिक्रिया थी कॉंग्रेस की? सही कहे तो भारत सरकार की? स्वयं प्रधानमंत्री ने सूचना का अधिकार आकुंचित करने का मानस प्रकट किया. उन्होंने कहा, वह कायदा व्यक्ति के नीजि जीवन पर अतिक्रमण कर रहा है; उसे मर्यादा लगानी होगी. प्रधानमंत्री ने किए इस वक्तव्य को वढेरा के घोटाले - जो सूचना अधिकार कानून के माध्यम से प्रकट हुए - की पृष्ठभूमि थी. वह एक व्यक्ति का नीजि मामला था, तो फिर उनके बचाव के लिए सलमान खुर्शीद, पी. चिदंबरम्, अंबिका सोनी, जयंती नटराजन्, वीरप्पा मोईली, इन मंत्रियों ने दौडकर आने का क्या कारण? वढेरा का मामला, वैसे तो कॉंग्रेस का भी मामला नहीं. एक नीजि व्यक्ति का मामला है. उनके लिए कॉंग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी और राजीव शुक्ला ने स्पष्टीकरण देने का क्या कारण? क्या गडकरी का पूर्ति उद्योग सरकारी उद्योग है? या भाजपा का उद्योग है? या, जिन्होंने सरकार से शिकायत कर जॉंच की मांग की है, वे उस उद्योग के भागधारक है? समाचारपत्रों में छपे समाचारों के आधार पर निर्णय लेने की अपेक्षा, सरकार ने पारित किये कानून से जो सामने आया है, और जो पहली नज़र में तो समर्थनीय लगता है, उस बारे में तुरंत निर्णय लेना उचित सिद्ध होता. लेकिन सरकार ने वह नहीं किया. विपरीत सरकार ने अपनी कृति से वह पक्षपाती है यह सिद्ध किया है.

जबाब दो
लेख के आरंभ में ही मैंने कहा है कि, इस विषय पर लिखने का मेरा विचार नहीं था. लेकिन २५ अक्टूबर को तीन चैनेल के प्रतिनिधि मुझसे मिलने घर आये थे. पहले ई टीव्हीवाले आये, फिर  आज तक के और अंत में एनडीटीव्ही के. सब के प्रश्‍न गडकरी पर लगे आरोपों के बारे में थे. एनडीटीव्ही के प्रतिनिधि के आने तक मुझे, आयकर विभाग की जॉंच शुरू होने की जानकारी नहीं थी. वह जानकारी उन्होंने दी. मैंने कहा, हो जाने दो जॉंच. सरकारी कंपनी विभाग जॉंच करेगा, ऐसी जानकारी मिलने के बाद गडकरी लापता नहीं हुए या उन्होंने मौन भी धारण नहीं किया. उन्होंने कहा, अवश्य जॉंच करो. वढेरा की है ऐसा कहने की हिंमत? खुर्शीद-चिदंबरम् और अन्य मंत्रियों की है यह हिंमत? या मनीष तिवारी और कॉंग्रेस के दूसरे प्रवक्ताओं के मुँह से ऐसे हिंमतपूर्ण शब्द क्यों नहीं निकलते? इस स्थिति में, वढेरा के विरुद्ध के आरोपों पर से जनता और प्रसार माध्यमों का ध्यान हटाने के लिए, किसी प्रसारमाध्यम को अपने साथ मिलाकर, कॉंग्रेस ने, गडकरी के विरुद्ध के तथाकथित आरोपों का ढिंढोरा पिटना शुरू किया है, ऐसा आरोप किसी ने किया तो उसे कैसे दोष दे सकते है? किसी चोरी का समर्थन करने के लिए, दूसरा भी चोर है, ऐसा चिल्ला चिल्ला कर बताना उचित है? दूसरा कोई चोर होगा, तो उसे सज़ा दो; लेकिन इससे पहला चोर निर्दोष कैसे सिद्ध होता है? कॉंग्रेस के प्रवक्ता, मोईली जैसे ज्येष्ठ नेता और दिग्विजय सिंह जैसे बेताल नेताओं ने इसका जबाब देना चाहिए.

मुझसे पूछे गए प्रश्‍न
दूरदर्शन चॅनेल वालों ने मुझे जेठमलानी के वक्तव्य के बारे में भी प्रश्‍न पूछे. मैंने कहा, ‘‘यह उनका व्यक्तिगत मत है. ऐसा मत रखने और उसे प्रकट करने का उन्हें अधिकार है. लेकिन गडकरी त्यागपत्र दे, ऐसा पार्टी का मत होगा, ऐसा मुझे नहीं लगता. गडकरी ने किसी भी जॉंच के लिए तैयारी दिखाने पर स्वयं अडवाणी ने उनकी प्रशंसा की है; और भाजपा में जेठमलानी की अपेक्षा, अडवानी के मत को अधिक वजन है. श्रीमती सुषमा स्वराज ने भी, ऐसा ही प्रतिपादन किया है.’’
दूसरा प्रश्‍न पूछा गया कि, इन आरोपों के कारण, गडकरी का दुबारा पार्टी अध्यक्ष बनना कठिन हुआ है? मैंने उत्तर दिया, ‘‘मुझे ऐसा नहीं लगता. अपने पार्टी का संविधान कैसा हो, उसमें कब और क्या संशोधन करे, यह उस पार्टी का प्रश्‍न है; और संविधान संशोधन यह क्या कोई अनोखी बात है? हमारे देश के महान् विद्वानों ने तैयार किए हमारे संविधान में गत ६५ वर्षों में सौ से अधिक संशोधन हुए है. पहला संशोधन तो संविधान पारित करने के एक वर्ष से भी कम समय में ही करना पड़ा था. भाजपा ने अपने अधिकार में संविधान संशोधन किया और गडकरी के पुन: अध्यक्ष बनने का रास्ता खुला किया, इसमें अन्य किसी ने आक्षेप लेने का क्या कारण है? और यह संविधान संशोधन केवल राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए ही नहीं, सब पदाधिकारियों के लिए है.’’

बदनामी में ही दिलचस्पी
मैंने यह भी कहा कि, आपको जो गैरव्यवहार लगते है, उनका संबंध ठेकेदार म्हैसकर से है. किसी ने कहा है कि, गलत पते दिये है. मैंने पूछा, क्या पूर्ति उद्योग ने गलत पते दिये है? फिर जॉंच म्हैसकर की करो. लेकिन इसमें लोगों को दिलचस्पी होने का कारण नहीं. दिलचस्पी गडकरी को बदनाम करने में है. इसलिए यह सब भाग-दौड चल रही है. प्रकाशित हुए समाचारों से जानकारी मिलती है कि, म्हैसकर की कंपनी ने १६४ करोड़ रुपये कर्ज पूर्ति उद्योग समूह को दिया. उस कर्ज पर १४ प्रतिशत ब्याज लगा है. पूर्ति उद्योग ने उस कर्ज में से ८० करोड़ रुपयों का भुगतान, ब्याज के साथ किया है. यह कर्ज २००९ में दिया गया है. ऐसा मान ले कि, गडकरी ने सार्वजनिक निर्माण मंत्री रहते समय म्हैसकर को उपकृत किया था. लेकिन गडकरी का मंत्री पद १९९९ में ही गया. उस गठबंधन की सरकार ही नहीं रही. १३ वर्ष तक उन तथाकथित उपकारों की याद रखकर म्हैसकर ने यह कर्ज दिया, ऐसा जिसे मानना है, वह माने. लेकिन मेरे जैसे सामान्य बुद्धि के मनुष्य तो को इसमें कोई साठगॉंठ नहीं दिखती.

संघ के संबंध में
फिर मुझे संघ के संबंध में प्रश्‍न पूछा गया. इस बारे में संघ को क्या लगता है? मैंने उत्तर दिया, ‘‘संघ को कुछ लगने का संबंध ही कहा है? भाजपा अपना कारोबार देखने के लिए सक्षम है. स्वायत्त है. पार्टी को जो उचित लगेगा, वह निर्णय लेगी.’’ इस प्रश्‍न की पृष्ठभूमि, शायद २४ अक्टूबर के इंडियन एक्सप्रेसमें प्रकाशित समाचार की हो सकती है. उस समाचार में कहा गया है कि, २ और ४ नवंबर को चेन्नई में संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक है, उसमें इस मामले की चर्चा होगी. कार्यकारी मंडल की बैठक कब और कहॉं है, इसकी मुझे जानकारी नहीं थी. लेकिन मुझे निश्‍चित ऐसा लगता है कि, उस बैठक में इस मामले की चर्चा होने का कारण नहीं. तथापि संघ को इस विवाद में लपेटे बिना, कुछ लोगों का समाधान नहीं होगा. गुरुवार को झी चॅनेल के प्रतिनिधि ने दूरध्वनि कर, मुझे महाराष्ट्र प्रदेश कॉंग्रेस के अध्यक्ष माणिकराव ठाकरे ने संघ पर लगाए आरोपों की जानकारी दी. मैंने सायंकाल सात बजे सह्याद्री चैनेल के समाचार सुने. उनमें माणिकराव के आरोपों का समाचार था. ठाकरे का आरोप है कि, गडकरी सार्वजनिक निर्माण मंत्री थे, उस समय उन्होंने, संघ के कार्यालय के भवन के लिए पैसे दिये. संघ के कार्यालय का कौनसा भवन? यह ठाकरे ने नहीं बताया. क्योंकि वे बता ही नहीं सकते. संघ कार्यालय का जो भवन महल भाग में है और जो डॉ. हेडगेवार भवन के नाम से प्रसिद्ध है, उसका निर्माण १९४६ में ही पूर्ण हुआ था. उस समय गडकरी का जन्म भी नहीं हुआ था. शायद माणिकराव का भी नहीं हुआ होगा. फिर इस पुराने भवन की कुछ पुनर्रचना की गई. वह २००६ में. उस समय गडकरी कहॉं मंत्री थे? रेशिमबाग में का नया निर्माण कार्य गत एक-दो वर्षों में का है. ठाकरे प्रदेश कॉंग्रेस कमेटी के अध्यक्ष इस जिम्मेदारी के पद पर है; उन्होंने अक्ल का ऐसा दिवालियापन प्रदर्शित करना ठीक नहीं. हॉं, यह संघ को भी इस विवाद में लपेटने का उनका, मतलब कॉंग्रेस का प्रयास हो सकता है. लेकिन वह सफल नहीं होगा. संघ को पैसा कौन देता है, यह नागपुर के समीप यवतमाल में जिंदगी गुजारने वाले माणिकराव को पता नहीं होगा, तो उनकी मूढता पर दया करना ही योग्य है. उन्हें उत्तर देना निरर्थक है.

तात्पर्य
तात्पर्य यह कि, भारत सरकार ने गडकरी पर लगे आरोपों के संदर्भ में जो तत्परता दिखाई, वैसी ही वढेरा पर लगे आरोपों के बारे में भी दिखाए. गडकरी जैसे जॉंच का सामना कर रहे है, वैसा ही वढेरा भी करे. जॉंच से भागना उन्हें शोभा नहीं देता, और सरकार ने उनका समर्थन करना तो सरकार को भी शोभा नहीं देता.


- मा. गो. वैद्य
अनुवाद : विकास कुलकर्णी
babujivaidya@gmail.com

Monday 22 October 2012

उल्टा चोर कोतवाल को डॉंटे...


भ्रष्टाचार विरोधी भारत’ (इंडिया अगेन्स्ट करप्शन) के अग्रणी नेता अरविंद केजरीवाल ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीन गडकरी पर जो आरोप लगाए, वे किसी खोखले पटाखे के समान निरर्थक सिद्ध हुए. इस बारे में हो-हल्ला खूब हुआ था. इस कारण, कुछ भयंकर विस्फोट होगा ऐसा लोगों को लग रहा था. लेकिन वास्तव में विस्फोट हुआ ही नहीं. सादा पटाखा भी नहीं फूटा. कोई पटाखा जैसे फुस्आवाज कर शांत हो जाता है, वही हाल केजरीवाल के पटाखे का हुआ.
१७ अक्टूबर को, सायंकाल, करीब आधा घंटा चली केजरीवाल की पत्रपरिषद मैंने अवधानपूर्वक देखी और सुनी. तुरंत ही मुझे पहले टाईम्स ऑफ इंडियाके प्रतिनिधि और बाद में पीटीआयवृत्तसंस्था के प्रतिनिधि की ओर से, मेरी प्रतिक्रिया के लिए, दूरध्वनि आए. मैंने उन्हें एक वाक्य में बताया कि, उन आरोपों में कोई दम नहीं. केजरीवाल के आरोप निरर्थक है.

पहला आरोप
केजरीवाल के जो मुख्य आरोप थे, उनमें का पहला यह कि, किसानों की जमीन गडकरी को दी गई. प्रश्‍न यह है कि, वह जमीन दी किसने? उत्तर है महाराष्ट्र सरकार ने. मतलब उस समय के सिंचाई मंत्री अजित पवार ने. फिर इसमें गडकरी का क्या दोष? प्रश्‍न अजित पवार से पूछा जाना चाहिए कि, उन्होंने वह जमीन गडकरी को क्यों दी? गडकरी ने मतलब उनकी संस्था ने मांगने के बाद, केवल चार दिनों में वह जमीन दी गई. इस जल्दबाजी का जबाब देने की जिम्मेदारी भी अजित पवार की है, गडकरी की नहीं. हमारे एक मित्र ने कहा इसमें कुछ मिलीभगत है. अंडरहँड डीलिंगहै, ऐसा भी उन्होंने कहा. वह क्या है यह बताने की जिम्मेदारी जिन्होंने आरोप या संदेह व्यक्त किया है, उनकी है. लेकिन उनके पास इसके बारे में कोई सबूत नहीं. केजरीवाल ने भी आरोप किया था कि, सरकार और भाजपा के बीच सांठगांठहै. मेरा प्रश्‍न है कि कहॉं? महाराष्ट्र में या केन्द्र में? महाराष्ट्र में सांठगांठ होती तो, गठबंधन सरकार के सिंचाई घोटालों के मामले, इतने जोरदार तरीके से भाजपा बाहर क्यों निकालता?

अचरज
मुझे इस बात का अचरज हुआ कि, किसानों की जमीन, सरकार परस्पर अन्य संस्था को कैसे दे सकती है? जॉंच करने पर पता चला कि, वह जमीन किसानों की रही ही नहीं थी. सरकार ने बहुत पहले ही वह अधिगृहित की थी. अधिग्रहण की जमीन का पूरा मुआवजा किसानों को दिया गया था. फिर वह जमीन किसानों की कैसे रही? वह तो कब की सरकार की हुई थी और सरकार ने उस जमीन का कुछ हिस्सा गडकरी की संस्था को दिया. वह भी किराये से. स्वामित्व के अधिकार से नहीं. गडकरी की यह संस्था बेनामी नहीं है. पंजीकृत है. फिर पुन: प्रश्‍न उठाया गया कि, जिनकी जमीन अधिगृहित की गई थी, उन्हें ही वह क्यों दी नहीं गई? क्या किसानों ने वह जमीन मांगी थी? और मांगी भी होगी, तो सरकार की हुई जमीन किसे दे यह कौन तय करेगा? सरकार या केजरीवाल?

दूसरा आरोप
दूसरा आरोप यह है कि, जिस बांध के लिए किसानों की जमीन अधिगृहित की गई थी, उस बांध का पानी गडकरी की कंपनी को दिया जाता है. आरोप सुनने से ऐसा लगता है कि, बांध का सब पानी गडकरी की कंपनी को ही दिया जाता है. लेकिन वस्तुस्थिति दर्शाती है कि, इस बांध के पानी में से पूरा एक प्रतिशत पानी भी गडकरी की कंपनी को नहीं जाता. जो थोडा पानी, गडकरी की कंपनी को जाता है, उसका क्या उपयोग होता है, इसका भी विचार नहीं किया जाता. भ्रष्टाचार विरोधी भारत को तो केवल भ्रष्टाचार के आरोप ही करने है! फिर अन्य ब्यौरा जान लेने की झंझट में वे क्यों पड़ेंगे?

मिलीभगत?
तीसरा आरोप भाजपा और गठबंधन की सरकार के बीच मिलीभगतहोने का था. इसका उत्तर ऊपर आया ही है. सीधी बात ध्यान में ले कि, मिलीभगत होती, तो भाजपा के ही एक राष्ट्रीय सचिव किरीट सोमय्या, लगातार सरकार के अनेक घोटालों का, खुलेआम पत्रपरिषद लेकर भंडाफोड कर पाते? पहली ही पत्रपरिषद के बाद सोमय्या को खामोश नहीं किया जाता? आरोप करने वालों ने इस बात की ओर भी ध्यान नहीं दिया कि, जिस ३७ एकड़ जमीन का उपयोग गडकरी कर रहे है, वह उनकी नहीं है. वह सहकारी तत्त्वानुसार स्थापन हुई किसानों की संस्था की है; और उन किसानों के लिए ही वहॉं बुआई के लिए गन्ने की पारियॉं तैयार की जाती है और वह किसानों को रियायती दर में दी जाती है. इसके बारे में किसानों की कोई शिकायत होने की जानकारी नहीं.

कारणमीमांसा
इसके बाद दूसरे दिन मतलब दिनांक १८ को, दूरदर्शन के दो-तीन चॅनेल ने घर आकर मेरी मुलाकात ली. उन सब ने एक समान प्रश्‍न पूछा कि, केजरीवाल ऐसे आरोप क्यों कर रहे है? मेरा अंदाज मैंने बताया. मैंने कहा, ‘‘केजरीवाल को एक नई राजनीतिक पार्टी बनानी है. आज देश में जो दो बड़ी राजनीतिक पार्टियॉं है, वह दोनों ही भ्रष्ट है; इसलिए तीसरी पार्टी की आवश्यकता है, यह उन्हें लोगों के गले उतारना है.’’ लेकिन अभी तो केवल राजनीतिक पार्टी बनाना है, इतना ही निश्‍चित हुआ है. अभी तो उसका नाम भी निश्‍चित नहीं हुआ. फिर सिद्धांत, नीतियॉं और कार्यक्रमों का प्रतिपादन तो दूर की बात है. भ्रष्टाचार विरोधयह नकारात्मक कारण है. उस आधार पर पार्टी स्थापन हो भी सकती है; एखाद चुनाव वह लड़ेंगी भी, लेकिन ऐसी पार्टी टिक नहीं सकती. पार्टी को टिकाऊ बनाने के लिए, आधारभूत सिद्धांत चाहिए. विशिष्ट विषयों जैसे : आर्थिक नीति, विदेश नीति, आरक्षण, अल्पसंख्य आदि, के बारे में अपनी भूमिका स्पष्ट करनी पड़ती है. और उस भूमिका से सुसंगत कार्यक्रमों का ब्यौरा देना पड़ता है. ऐसा कुछ अपने पास न होते हुए, या उसके बारे में विचार स्पष्ट न रहते हुए, किसी राजनीतिक पार्टी की घोषणा करना, जल्दबाजी है. इस जल्दबाजी के कारण कहे या दि. १७ की पत्रपरिषद में के बचकाना आरोपों के कारण कहे, केजरीवाल का गौरव बढ़ा नहीं. विपरीत कम हुआ है. नीतीन गडकरी के व्यक्तित्व पर उसका कोई परिणाम नहीं होगा. उसी प्रकार, उनके पार्टी में के स्थान पर भी नहीं होगा. केजरीवाल की पत्रपरिषद के बाद श्रीमती सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने ली पत्रपरिषद से वह और भी स्पष्ट हो गया है.

कॉंच के घर और पथराव
अंग्रेजी में एक कहावत है कि, ‘‘कॉंच के घरों में रहने वालों ने दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेकने चाहिए.’’ केजरीवाल और उनकी सहयोगी कार्यकर्ता अंजली दमानिया यह व्यवहारोपयोगी कहावत भूल गई, और उन्होंने स्वयं पर पत्थराव की आफत मोल ली. इस कारण, वे और उनकी पार्टी की विश्‍वसनीयता पर ही प्रश्‍नचिन्ह निर्माण हुआ है. एक भूतपूर्व पुलीस अधिकारी और अब वकिली करने वाले वाय. पी. सिंग ने लवासाके मामले में महाराष्ट्र के ज्येष्ठ नेता शरद पवार और उनकी पुत्री, सांसद सुप्रिया सुळे तथा उसके पति के विरुद्ध भी पद का दुरुपयोग करने के आरोप लगाए और उन आरोपों के जॉंच की मांग की. वैसे लवासाकोई नया मामला नहीं है. उस पर काफी चर्चा हो चुकी है. लवासाइस लेख का विषय भी नहीं है. लेकिन अपने निवेदन में सिंग कहते है कि, ‘‘इस मामले से संबंधित शरद पवार और उनके परिवारजनों पर के आरोपित गैरव्यवहारों के सब कागजात मैंने केजरीवाल को दिये थे. लेकिन वे गैरव्यवहार सामने न लाकर, केजरीवाल गडकरी के मामूली भ्रष्टाचार की ओर ध्यान दे रहे है, यह आश्‍चर्य है.’’ ‘लवासाका घोटाला उजागर होने के बाद उसकी जॉंच करने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने जनता का जॉंच आयोगनियुक्त किया था. केजरीवाल उस आयोग के सदस्य थे. इस कारण उन्हें उन सब व्यवहारों की जानकारी होनी ही चाहिए. अब उत्तर देने की बारी केजरीवाल की है.

दमानिया का मामला
गडकरी के तथाकथित भ्रष्टाचार की पोल खोलने की मुहिम में, केजरीवाल के महत्त्वपूर्ण सहयोगी की भूमिका निभानेवाली अंजली दमानिया के वादग्रस्त व्यवहार का मामला सामने आया है. पहले प्रकाशित हुआ है कि, दमानिया ने कर्जत तहसील में की अपनी ३० एकड़ जमीन बांध में जाने से बचाने के लिए प्रयास शुरु किये है. इस बारे में गडकरी उनकी सहायता करें, ऐसी उनकी अपेक्षा थी. लेकिन गडकरी ने ऐसा करने से साफ इंकार किया. क्योंकि दमानिया की जमीन बचाने के प्रयास से आदिवासियों की जमीन जाने का खतरा निर्माण होता था. गडकरी पर दमानिया का रोष होने का यह कारण बताया जाता है. इसके साथ ही दमानिया का और एक विवादित मामला सामने आया है. केजरीवाल ने प्रश्‍न किया था कि, गडकरी राजनीतिज्ञ है या व्यापारी? श्रीमती दमानिया ने भी यही प्रश्‍नांकित आरोप स्वयं पर लगा लिया है. मुंबई से प्रकाशित होने वाले डीएनए समाचारपत्र ने दि. १८ के अंक में एक समाचार प्रकाशित किया है. उसका सार यह है कि, दमानिया और उनके सहयोगियों ने कर्जत तहसील में करीब ६० एकड़ जमीन, वहॉं के आदिवासी किसानों से खरीदी. उसकी किमत किसानों की दी. लेकिन उन्होंने, यह जमीन खरीदने का उद्देश्य बताते समय कहा कि, इस जमीन पर वे कृषि-आधारित उद्योग शुरु करेंगे. इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा. लेकिन बाद में उनकी नीयत बदल गई ऐसा कहना चाहिए. उन्होंने अपने प्रभाव का उपयोग कर वह सब जमीन कृषितर कामों के लिए (नॉन ऍग्रिकल्चर पर्पजेस) रूपांतरित कर ली. उन्होंने उसके निवासी भूखंड (प्लॉट) बनाए. एक गृहनिर्माण प्रकल्प बनाया. इस प्रकल्प में मुंबई के अमीरों को फ्लॅट और बंगले देने का उनका विचार है. आज सब बड़े शहरों में रहने वाले और अमाप संपत्ति जमा करने वाले रईसों को पूँजी निवेश के लिए कहे या काला पैसा लगाने के लिए कहे, समीप के ग्रामीण क्षेत्र में अपना घर बनाने का चस्का लगा है. मुंबई के रईसों को भी, ऐसा ही लगता होगा, तो आश्‍चर्य नहीं. श्रीमती दमानिया का यह प्रकल्प, एक छोटी नदी के किनारे पर है. कोकण में है. मतलब वहॉं सृष्टिसौंदर्य होगा ही. इनमें के अनेक भूखंड बिक चुके है, ऐसी जानकारी है. लेकिन, रोजगार निर्मिति के लिए जमीन खरीद रहे है, ऐसा बताकर जिनकी जमीन खरीदी गई, उनका भ्रमनिरास हुआ; और वे संतप्त हुए. स्थानीय निवासियों के इस असंतोष से ही दमानिया का पर्दाफाश हुआ. यह भूखंड उन्होंने किस भाव से बेचे इस बारे में भी उन्होंने मौन रखा है. वह स्पष्ट होता तो श्रीमती दमानिया ने कितना लाभ कमाया यह भी पता चलता.

केजरीवाल का अभिनंदन
इसे भ्रष्टाचार ही कहे, ऐसा निश्‍चित नहीं कह सकते. लेकिन दमानिया के हेतु शुद्ध नहीं, वे स्वार्थी व्यापारी है और भ्रष्टाचार विरोधी भारतआंदोलन के माध्यम से अपना स्वार्थ साध रही है, यह निश्‍चित. क्या उन्हें केजरीवाल की नई संकल्पित स्वच्छ राजनीतिक पार्टी के प्रमुख रणनीतिकारों में माने! केजरीवाल ने, कम से कम अपने सहयोगी चुनने में विवेक रखना चाहिए, ऐसा कहना पड़ता है. ऐसी स्वार्थी व्यक्ति जिस पार्टी की नेता है, उस पार्टी का कौन विश्‍वास करेगा? इसलिए ऊपर कहा है कि, केजरीवाल की गडकरी के विरुद्ध की पत्रपरिषद से न उनका गौरव बढ़ा है, न उनकी पार्टी के लिए अनुकूलता निर्माण हुई है. परिणाम एक ही हुआ कि केजरीवाल हो या उनकी सहयोगी दमानिया उनके पॉंव भी मिट्टी के ही बने है, यह आम जनता जान चुकी है.
श्री केजरीवाल ने अपने सहयोगियो पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जॉंच करने के लिए भूतपूर्व न्यायमूर्तियों की एक समिति नियुक्त की है और उसे तीन माह के भीतर अपना रिपोर्ट देने के लिए कहा है. श्री केजरीवाल का यह निर्णय उचित है और इसके लिए उनका अभिनंदन करना चाहिए. हम आशा करें कि, केजरीवाल और उनके सहयोगियों का निष्कलंकत्व इससे सिद्ध होगा और उनकी प्रतिमा पहले के समान ही चमक उठेगी.


- मा. गो. वैद्य 
(अनुवाद : विकास कुलकर्णी)