एक पगला दुकानदार
मुंबई में सात रस्ता के पास ऑर्थर रोड से सटा, ‘प्रिती आर्टस’ नाम का एक छोटा दुकान है| मूर्तियॉं, चित्र, शोपीस, फौलादी फर्निचर यहॉं मिलता है| यह दुकान कभी खुली रहती है, तो कभी बंद| ग्राहक बाहर दुकान खुलने की राह देखते खड़े रहते है| लेकिन मालिक अपनी मर्जी से आता और जाता है| इसका कारण है इस दुकान के मालिक का एक पागलपन|
मुंबई जैसे फास्ट लाईफ से पछाडे जीवन में जहॉं जीवित आदमीयों के लिए समय नहीं मिल पाता; वहॉं किशोरचंद्र भट अपना काम-धंदा बाजू में रखकर लावारिस लाशों का अन्त्य संस्कार करने के लिए मुंबई में के अलग अलग स्मशानों के चक्कर लगाते है| इन स्मशान घाटों से लोग उन्हें लावारिस शवों की जानकारी देकर बुला लेते है| १९६८ से उन्होंने यह काम शुरू किया है|
उस वर्ष सूरत में बाढ़ आई थी| वहॉं खाद्य बॉंटनेवाली एक संस्था के साथ १७ वर्षीय किशोर भट भी गये थे. एक साथ पडी मनुष्य और जानवरों की लाशे देखकर वे बहुत अस्वस्थ हुए| थाट और धन की मस्ती में जीनेवालों की भी आखिर मिट्टी ही होती है, यह उनके पिता ने उन्हें समझाया| और वहीं से शुरू हुई उनकी मृत्यु के साथ दोस्ती| विविध रुग्णालयों मे जाकर उन्होंने बताया कि, लावारिस लाश मिलने पर मुझे सूचना दे| यह सुनकर अनेकों को संदेह होता था| शुरू में तो लोगों को शंका आती थी कि यह लाश पर की चीजें तो नहीं चुराता| लेकिन सत्य और अच्छे हेतु के लिए सबूतों की आवश्यकता नहीं होती| किशोर जी ने अपने नि:स्वार्थ कार्य से यह सिद्ध किया है| आज तक उन्होंने करीब २६०० लावारिस लाशों का अन्त्य संस्कार किया है| १९९३ में, मुंबई में बम विस्फोट हुए तब उन्होंने अनेकों की सहायता की| वे कहते है, मृत्यु कभी भी और कहीं भी आ सकता है|
उनके लिए यह जीवन का ही एक भाग है| उनके दुकान में कपडे के तागे, अगरबत्ती, गंगाजल, मटका यह सब एक कोने में रखा है| कपडे के चार चार मीटर के टुकड़ेे भी बनाकर रखे है| जल्दी में कहीं जाना पडा तो समय पर तकलीफ नहीं होनी चाहिए| इन्हीं कपडों के तुकडों में सब बांधा जाता है| बुलावा आते ही, भट सामान लेकर पहुँचते है| इसलिए उन्हें ‘चार मीटर कपडेवाला’ पहेचान मिली है|
हिंदू, मुसलमान, ईसाई किसी भी जाति का व्यक्ति हो, भट उनका अन्त्य संस्कार करने में नहीं हिचकते. हिंदूओं का संपूर्ण विधि से दहन किया जाता है| मुसलमानों को उनके शास्त्रानुसार दफनाया जाता है| सद्गति नाम का एक ट्रस्ट उन्होंने बनाया है| मेरे बाद भी यह काम चलता रहे और लोग इसमें सहभागी हो यह ट्रस्ट स्थापन करने का हेतु है| दुकान के बाहर दो व्हॅन हरदम खड़ी ही रहती है| ट्रस्ट सामान्य आदमीयों के लिए नि:शुल्क शव ले जाने की सुविधा और आवश्यक सामान भी देता है| सब रुग्णालय अब भट को पहेचानते है| कुछ गरीब लोगों के पास उपचार पर खर्च करने के बाद अन्त्य संस्कार के लिए पैसे नहीं बचते ऐसे समय उन लोगों को किशोर जी का नंबर दिया जाता है|
एक घटना उन्होंने बताई ... एक महिला की छोटी बच्ची का नायर रुग्णालय में बीमारी से निधन हुआ| वह बच्ची की लाश को वहीं छोडकर जा रही थी| कारण स्मशान का अन्त्य संस्कार का खर्च वह नहीं कर सकती थी| भगवान है ही नहीं, ऐसा कोसते हुए वह रुग्णालय से बाहर निकल रही थी| उसी समय किशोर जी वहॉं पहुँचे| उस महिला से कहा, मैं सब करूंगा| मुझे भगवान ने भेजा है|
सब रुग्णालयों और पुलीस के प्यारे किशोर भट आनंदी व्यक्ति है| मैंने जिनका अन्त्य संस्कार किया है उन सब की आत्मा मेरा खयाल रखती है, ऐसा वे कहते है|
(सांगली से प्रकाशित साप्ताहिक ‘विजयंत’ के १४ फरवरी के अंक से साभार)
नेत्रहीनों का सजग काम
‘ऑर्बिट’ यह एक अंग्रेजी शब्द है| उसका एक अर्थ ग्रह की कक्षा ऐसा है| दूसरा अर्थ है ‘आँख का खाचॉं’| हम कौनसा अर्थ स्वीकार करे या दोनों को यथार्थ माने, यह नीचे दी जानकारी पढ़कर तय करे|
‘ऑर्बिट’ तामिलनाडु में के तिरुचेरापल्ली इस शहर में की एक संस्था का नाम है| बिजली के बड़े-बड़े यंत्र बनानेवाली ‘भेल’ (भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लि.)| इस संस्था का नाम तो आपने सुना ही होगा| इस ‘भेल’ ने ‘परादीप रिफायनरी प्रोजेक्ट’ इस तेल शुद्धिकरण संस्था के लिए ‘बॉयलर्स’ तैयार करने के लिए कुछ बाहर की कंपनीयों को काम सौपा था| उसमें की ‘ऑर्बिट’ यह एक कंपनी| इस पारदीप तेल शुद्धिकरण संस्था के कुछ अधिकारी, काम की प्रगति देखने के लिए तिरूचेरापल्ली में आये| ‘ऑर्बिट’ के कारखाने में गये| कारखाने के अध्यक्ष जी. आर. पांडी ने उनका स्वागत किया| पांडी नेत्रहीन है| लेकिन इसका उन्हें विशेष आचर्श्य नहीं लगा| सही में आश्चर्य का धक्का उन्हें तब लगा, जब उन्होंने देखा कि, इस कारखाने में के सब कर्मचारी नेत्रहीन है!
पारदीप के अधिकारियों को, अंध और अपंग बच्चों को शिक्षा देनेवाली संस्थाएँ होती है इसकी जानकारी थी| लेकिन पूरा कारखाना ही नेत्रहीनों के द्वारा चलाया जाने की बात उन्होंने ना कभी सुनी नहीं थी, ना देखी थी| वे नेत्रहीन सही तरीके से कच्चा माल छॉंटते थे| वह कच्चा माल काटने के लिए निश्चित स्थान पर ले जाकर देते थे| नेत्रहीन कर्मचारी ही उसे करवत से बराबर काटते थे| वे ही उसमें छेद भी करते थे| तैयार माल इकठ्ठा करते थे| थैलियों में भरते थे| निर्मिती की यह संपूर्ण प्रक्रिया बिल्कुल सही ढंगेसे की जा रही थी| तैयार माल का दर्जा भी गुणवत्ता की कसौटी पर खरा उतरता था| उनकी भाषा आँखों की नहीं थी| वह हो भी नहीं सकती थी| वह भाषा हृदय की थी| परस्पर का सहयोग और सामूहिक प्रयास इन गुणों के भरोसे, उनका कारखाना चल रहा था| अपनी यंत्र सामग्री के लिए नेत्रहीनों द्वारा किया जा रहा काम देखकर, पारदीप के अधिकारी दॉंतों तले उँगली दबाते रह गये|
आगे, उन लोगों को आश्चर्य का और एक धक्का लगा, जब उन्होंने एक अपंग युवक को वेल्डिंग मशीन पर काम करते देखा| उसका सहायक भी एक नेत्रहीन ही था| वह करीब दौडते हुए ही, वस्तु भंडार में जाता और तुरंत वहॉं से ‘इलेक्ट्रॉड्स’ लाकर, उस वेल्डर को देता था| वह नेत्रहीन, सही स्थान पर जाकर, तुरंत सही सामान कैसे लाता है, यह पूछने पर उन्होंने बताया कि, यहॉं काम करनेवाले प्रत्येक कर्मचारी को, कारखाने में कहॉं क्या रखा है इसकी जानकारी होती है| दो विभागों में के दूरी की भी उन्हें जानकारी होती है| वहॉं पहुँचने के लिए कितना समय लगेगा इसकी भी जानकारी होती है| मतलब स्थल-काल की कल्पना होती है| कितने कदम चलने के बाद कौनसा स्थान आता है, यह उन्होंने समझ लिया है|
इस मुलाकात के अंत में संस्था के अध्यक्ष श्री पांडी ने पारदीप के अधिकारियों से विनति की कि, ‘‘आपको कोई नेत्रहीन व्यक्ति मिले, तो कृपा कर उसे मेरे पास भेजे| हम हमारे कर्मचारियों में उसका स्वागत करेगे|’’ इस पारदीप के चीफ प्रोजेक्ट मॅनेजर अरविंदकुमार बताते है, ‘‘यह सुनकर तो मैं गद्गद हो गया| कुछ बोल ही नहीं पाया| लेकिन पारदीप का हमारा प्रोजेक्ट शीघ्र ही शुरू होगा, ऐसा विश्वास लेकर, हमने उनसे बिदा ली|’’
कृष्णचंद्र गांधी
मैंने कृष्णचंद्र गांधी को देखा है| वे उत्तर प्रदेश में संघ के प्रचारक थे| संघ के स्वयंसेवकों ने शिक्षा के क्षेत्र में भी अच्छा काम किया है| सरस्वती शिशु मंदिरों की स्थापना यह उनमें से ही एक है| ये शिक्षा मंदिर अब केवल शिशुओं के लिए नहीं रहे| उनका रूपांतर अब विद्यालयों में हुआ है| कृष्णचंद्र गांधी का इस क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान है|
इन कृष्णचंद्र गांधी के नाम से ईशान्य भारत में एक पुरस्कार दिया जाता है| एक प्रचारक के नाम से कोई पुरस्कार प्रस्थापित हो, इसका मुझे आश्चर्य लगता है| प्रचारक तो इमारत की नीव का पत्थर होता है| नीव के पत्थर कीक्या कोई पूजा करता है? पूजा तो इमारत के कलश की होती है, और अपने आधार पर खड़े कलश का गौरव देखकर नीव के इन पत्थरों को आनंद और अभिमान होता है| लेकिन मेरे आश्चर्य की तब तो कोई सीमा ही नहीं रही, जब मैंने देखा कि कृष्णचंद्र गांधी के नाम का पुरस्कार असम की राजधानी गुवाहाटी में दिया गया और किसे? मेघालय में की गारो टेकडियों के भाग में कार्य करनेवाले अर्णव होजांग को| अरुणाचल प्रदेश में राजीव गांधी के नाम से एक विश्वविद्यालय है| उस विश्वविद्यालय के विद्वान प्रो. तामो मिबांग के हस्ते पुरस्कार प्रदान किया गया|
गुवाहाटी के विवेकानंद केन्द्र के परिसर में यह पुरस्कार कार्यक्रम संपन्न हुआ| पूर्वोत्तर जनजाति शिक्षा समिति और विद्याभारती इन दो संस्थाओं की ओर से यह पुरस्कार दिया जाता है| कृष्णचंद्र गांधी आज हमारे बीच नहीं है| लेकिन उन्होंने इस पूर्वोत्तर भारत में, शिक्षा के क्षेत्र में बहुत काम किया है| उन्होंने अपना जीवन इसी काम में लगा दिया|
उत्तर प्रदेश के मेरठ में १९२१ में कृष्णचंद्र गांधी का जन्म हुआ| उन्होंने प्रथम गोरखपुर में शिशु मंदिर की स्थापना की; और कुछ वर्ष बाद उन्हें ईशान्य भारत में भेज दिया गया| अरुणाचल प्रदेश, नागालँड, त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय और असम इन राज्यों में के दूर दराज के भाग में अनेक शिशु मंदिरों की उन्होंने स्थापना की| २५ वर्षों से अधिक समय तक उन्होंने इसी भाग में काम किया| उन्होंने स्थापित किया हुआ दक्षिण असम में का हॉफलॉंग का निवासी विद्यालय एक आदर्श विद्यालय है| मैंने वह देखा है| मेरी वहीं कृष्णचंद्र जी से भेट हुई थी|
ऊपर उल्लेखित पूर्वोत्तर शिक्षा समिति के निर्माता भी वे ही है| इस शिक्षा समिति ने ही अपने निर्माता के स्मरणार्थ ‘कृष्णचंद्र गांधी पुरस्कार’की योजना बनाई है| २००७ से यह योजना कार्यांवित हुई है| इस पूर्वोत्तर के इलाके में सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करनेवाले व्यक्ति को यह पुरस्कार दिया जाता है| अब तक, अरुणाचल में के सामाजिक कार्यकर्ता श्री न्यांग पायेंग (२००७), कारबी-आँगलॉग जिले में के श्री लुफ्से तिमुंग (२००८), असम के कोक्राझार जिले में के तुलेश्वर नरझारी (२००९) और मेघालय में की श्रीमती ड्रीमसिबॉन खारकोंगॉंर (२०१०) को यह पुरस्कार दिये गए है| २०११ का पुरस्कार अर्णव होजांग को दिया गया| होजांग यह एक जनजाति का नाम है| इस जनजाति के सर्वांगीण उत्थान के लिए श्री अर्णव होजांग कार्यरत है| इस काम के लिए ‘होजांग संस्कृति विकास मंच’ यह संस्था उन्होंने स्थापन की है| होजांग भाषा विकास परिषद के भी वे अध्यक्ष है| मेघालय की गारो टेकडियों के प्रदेश में एकल विद्यालय स्थापन करने में भी उनकी प्रमुख भूमिका है| वे पदवीधर है, लेकिन व्यवसाय से व्यापारी है और मुख्य यह कि उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता का अनुवाद होजांग भाषा में किया है|
राष्ट्रीय मुस्लिम मंच
‘राष्ट्रीय मुस्लिम मंच’ यह मुसलमानों में काम करनेवाली अनोखी संस्था है| सर्वत्र मुसलमानों को राष्ट्रीय जीवन-प्रवाह से अलग रखने के प्रयास और व्यूहरचना हो रही है; उसी समय यह मंच उन्हें राष्ट्रीय मुख्य प्रवाह के साथ जोडने का काम कर रहा है| यह प्रवाह के विरुद्ध तैरने का धाडस तो निश्चित ही है| लेकिन यह धाडसी कार्य उन्होंने शुरू किया है, और इसमें सफलता भी हासिल की है|
१८ सितंबर २०११ को, दिल्ली में के जंतर मंतर मैदान में, इस मंच का एक सार्वजनिक कार्यक्रम हुआ| सब लोग हाथ में तिरंगा झंडा लिए थे| वे झंंडा उठाकर घोषणा दे रहे थे| ‘‘धारा ३७० खत्म करो’’, ‘‘पाक और चीन से हमारी धरती वापस लो’’, ‘‘काश्मीर के युवकों को रोजगार दो’’ आदि|
श्रीनगर से आये मोहम्मद फारूक ने धारा ३७० हटाने की मांग की| काश्मीर को भारत से अलग रखनेवाली इस धारा का संविधान में अंतर्भाव करने के लिए उन्होंने पं. नेहरु और शेख अब्दुल्ला को जिम्मेदार ठहराया| ‘भारत माता की जय’ के नारे के साथ बशीर अहमद ने अपना भाषण शुरू किया और निर्वासित बनकर आये लोगों को मताधिकार मिलना ही चाहिए, ऐसी मांग की|
बकरवाल समाज से आये गुलाम अली ने भी काश्मीर के पिछडे रहने के लिए शेख अब्दुला को जिम्मेदार बताया| उन्होंने आरोप किया कि धारा ३७० का लाभ कुछ इने-गिने सियासी नेताओं ने ही लुटा| काश्मीर की घाटी से आई श्रीमती हलिका ने, उनके तीन भाई आतंकवादी कारवाई में मारे जाने का दु:ख व्यक्त किया| मुफ्ती मौलाना अब्दुसामी ने डॉ. बाबासाहब आंबेडकर और रफी अहमद किडवाई की प्रशंसा की, और काश्मीर की दुर्दशा के लिए नेहरु और अब्दुल्ला को दोष दिया|
बंगलोर से आये अब्बास अली वोरा ने कहा कि, दक्षिण भारत में का मुस्लिम समाज सदा देशभक्तों के साथ ही रहेगा|
संघ के प्रचारक इंद्रेशकुमार का भी इस रैली में भाषण हुआ| दिल्ली के भूतपूूर्व सांसद डॉ. जे. के. जैन, हज कमिटि के डॉ. सलीम राज, दिल्ली महानगरपालिका के सदस्य मौ. इमरान इस्माईल के भी समयोचित भाषण हुए| इस सफल रॅली का आयोजन, मंच के संयोजक मौ. अफजल और उनके साथियों ने किया था| इसकी सफलता से मंच के कार्यकर्ताओं में नया जोश आया है|
अब विदेश के कुछ समाचार
१) ऑस्ट्रेलिया में रुद्रजाप : ऑस्ट्रेलिया में के सिडनी शहर में विश्व हिंदू परिषद की ओर से एकादश रुद्रजाप का आयोजन किया गया था| १३ नवंबर २०११ को यह कार्यक्रम मिण्टो में के शिव-मंदिर में हुआ| विश्व शांति एवं सामंजस्य निर्माण के लिए इस जापयज्ञ का आयोजन किया गया था| चालीस से अधिक ऋत्विज इसमें शामिल हुए थे| उन्होंने रुद्रध्याय और चमक अनुवाक का पठन किया| उसके बाद होम हुआ| भगवान शंकर को अभिषेक भी किया गया| करीब २५० भक्त इस समय उपस्थित थे| उसमें संस्कृत भारती के संस्थापक चमू कृष्णशास्त्री का भी समावेश था| सिडनी में वेद पाठशाला भी है| उस शाला के विद्यार्थींयों ने भी रुद्रपाठ पढा|
२) व्हिएतनाम में नव वर्षारंभ दिन : व्हिएतनाम के हो ची मिन्ह शहर में २२ जनवरी २०१२ को, व्हिएतनाम का नव वर्षदिन मनाया गया| आश्चर्य की बात यह कि वह मरिअम्मा के मंदिर में मनाया गया| इस कार्यक्रम में ५० हजार से अधिक लोग उपस्थित थे| अर्थात्, उसमें अधिकांश बौद्ध थे| यह उत्सव सात दिन चला|
व्हिएतनामी लोगों की ऐसी श्रद्धा है कि, इस मंदिर में प्रार्थना करने से भक्त का भविष्य उज्ज्वल होता है इसलिए वे इस मंदिर में यह उत्सव मनाते है| इस मंदिर में मुरुगेश (कार्तिकेय) और गणेश की भी मूर्तियॉं है| उन्हें भी भोग चढाया जाता है|
हो ची मिन्ह शहर में तीन मंदिर है| वे करीब १५० वर्ष पूर्व बांधे है|
३) शिकागो में विवेकानंद अध्यासन : शिकागो और स्वामी विवेकानंद का संबंध सर्वज्ञात है| यहीं की सर्वधर्म परिषद में हुए भाषण से स्वामी विवेकानंद विश्व में विख्यात हुए| इस शिकागो शहर में भारत सरकार की ओर से यह अध्यासन स्थापन किया गया है| इसके लिए सरकार ने १५ लाख डॉलर का अनुदान दिया है| भारत के वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी इस अध्यासन के उद्घाटन कार्यक्रम में उपस्थित थे| उन्होंने कहा, ‘‘विवेकानंद भारत के प्रथम सांस्कृतिक राजदूत थे|’’
शिकागो विश्वविद्यालय के अध्यक्ष रॉबर्ट झिमर ने इस कार्यक्रम में कहा, ‘‘भारतीय विषयों के अध्ययन को, इससे विशेष गति मिलेगी और उसका विस्तार भी होगा|’’
४) ऍमस्टरडॅम में शिव का पुतला : ऍमस्टरडॅम शहर हॉलंड की राजधानी है| वहॉं के अजायबघर (म्युझियम) में शंकर का एक ब्रॉन्झ धातू का पुतला है| ब्रॉन्झ मतलब तांबे और जस्त मिलाकर बना मजबूत धातू है|
इस पुतले का वजन ३०० किलोग्राम है और उसका आकार १५३ सें. मी. बाय ११४.५ सें मी. है| चोलवंशीय राजा के समय का यह पुतला है| हाल ही में इस पुतले की क्ष-किरण से जॉंच की गई और पाया गया कि करीब एक हजार वर्ष पूर्व के इस पुतले में अत्यंत कडे ब्रॉन्झ का उपयोग किया गया है| उस प्राचीन समय के भारतीयों के धातुविज्ञान से लोग चकित हुए है - यह नटराज शिव की मूर्ति है|
- मा. गो. वैद्य
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