Tuesday, 9 October 2012

‘लव्ह जिहाद’ के लिए मुस्लिम प्रोत्साहन

मुस्लिम यूथ फोरमनाम से मुस्लिम शिक्षित युवकों को लव्ह जिहाद का खुला आवाहन शुरू हुआ है. इस संदर्भ में निकले पत्रक में हिंदू, सिक्ख, ईसाई युवतियों को प्रयत्नपूर्वक प्रेमजाल में खींचकर उनका धर्मांतर कराने का खुला आवाहन किया गया है. इसके लिए पुरस्कारों की राशि भी घोषित की गई है.

पुरस्कारों की राशि :
हिंदू (ब्राह्मण लड़की)       : ५ लाख
हिंदू (क्षत्रिय लड़की)        : ४.५ लाख
हिंदू (दलित, खानाबदोश और अन्य लड़कियॉं) : २ लाख
जैन लड़की : ३ लाख
गुजराती (ब्राह्मण लड़की) : ६ लाख
गुजराती (कच्छी लड़की) : ३ लाख
पंजाबी (सिक्ख लड़की) : ७ लाख
पंजाबी (हिंदू लड़की)       : ६ लाख
ईसाई (रोमन कॅथॉलिक लड़की) : ४ लाख
ईसाई (प्रोटेस्टंट लड़की) : ३ लाख
बौद्ध लड़की : १.५ लाख

संपर्क के लिए वेबसाईट :


संस्था : इस्लामिक इंटरनॅशनल स्कूल
०२२-२३७३६८७५, २३७३०६८९
जमात-उद-दावा : +९२५१२२५६१६१, +९२३२१५२१३११९
व्यक्ती : जमशेद : +९२२१३५०१४०४४, मोहम्मद चॉंद : +९२४२३७१२०७१५,     +९२३००५२७७२३३, रेहान : +९२४२३६६०५८१, हुसैन : + ९७१५५९९४६३७७/३८९/९११/२२३/७८६
पत्ते : पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया
मुख्यालय : डेक्कन हाऊस, नं. ५, मेन १, ४ थी क्रॉस
एस. के. गार्डन, बेन्सन टाऊन पोस्ट, बेंगळुरू-५६००४६
०८०-३२९५७५३४, फॅक्स : ०८०-२३४३०४३२
वेबसाईट : www.popularfrontindia.org

१ ला मजला, नमीदशा कॉम्प्लेक्स,
कब्बनपेट, बेंगळुरू-५६० ००२
०८०-३२९८३६३९, ई मेल : contactkfd@gmail.org

३२/२३, ५ वा मजला, मॉडर्न टॉवर,
वेस्ट कॉट रोड, रोयापेट्टा, चेन्नई-६०० ०१४
०४४-६४६११९६१, ई मेल : in@popularfrontindia.org

युनिटी हाऊस, राजाजी रोड,
कोझिकोडे - ६७३००४
०४९५-२७२३४४३, ई मेल : ndfkeralam@gmail.com

जिज्ञासु अधिक जानकारी प्राप्त करें. मामला गंभीर है. क्या देश में की सुरक्षा व्यवस्था, न्यायव्यवस्था, प्रशासन आदि संस्था इसकी दखल लेगी? या हिंदू समाज को ही कुछ उपाय योजना करनी होगी?
(साप्ताहिक विजयन्तसांगली से साभार)
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                                                भारतीय कुष्ठ निवार संघ
छत्तीसगढ़ में बिलासपुर के पास चांपा नाम का एक नगर है. हाल ही में वह जिला बना है. वहॉं, भारतीय कुष्ठ निवारक संघ, नाम की, कुष्ठरोगियों की सेवा करने वाली संस्था है.

सदाशिव गोविंद कात्रे जी ने १९६२ में यह संस्था स्थापन की है. कात्रे जी स्वयं कुष्ठरोगी थे. रेल विभाग में कर्मचारी थे. वे एक ईसाई मिशनरी अस्पताल से रोगमुक्त हुए थे. वहॉं उन्होंने रोग-मुक्ति के साथ ही ईसाई धर्म का प्रसार कैसे चलता है यह देखा था. उस समय के सरसंघचालक प. पू. श्री गुरुजी से कात्रे जी का घनिष्ठ परिचय था. श्री गुरुजी की प्रेरणा से उन्होंने भारतीय कुष्ठ निवारक संघ की स्थापना की.

इस संस्था की कुछ खास विशेषताएँ :
१) यहॉं कुष्ठरोगी की जाति, संप्रदाय का विचार न कर, सब पर उपचार किया जाता है. आज यहॉं १३६ रुग्ण है, उनमें ८६ मतलब ६० प्रतिशत से अधिक महिला है.
२) यह संघ अपने काम का ढिंढोरा नहीं पिटता. उसका कहीं भी विज्ञापन नहीं रहता. उसका प्रचार-प्रसार वे ही लोग करते हैं, जो यहॉं उपचार लेकर रोगमुक्त हुए है. इस संस्था को दान देने वालों में भी अधिकतर यहॉं से रोग-मुक्त हुए लोगों का ही समावेश है.
३) यह कुष्ठ निवारक संघ चार मुख्य बातों पर जोर देता है. (अ) रुग्णों पर उपचार (आ) उनका पुनर्वसन (इ) उनकी शिक्षा और (ई) स्वावलंबन.
४) सब रुग्णों को नि:शुल्क भोजन, कपड़े और दवा दी जाती है. कुछ रुग्ण अपने परिवार के साथ यहॉं रहते हैं.
५) रुग्णों को ऍलोपॅथी के साथ होमिओपॅथी दवा भी दी जाती है. डॉ. ध्रुव चक्रवर्ती होमिओ उपचार करते है. वे कहते है ऍलोपॅथी दवाओं से रोग ठीक होता है, लेकिन कुष्ठरोग के कारण हुए घाव पूरी तरह से ठीक नहीं होते. होमिओ दवाओं से १५ प्रतिशत रुग्णों के घाव पूरी तरह से ठीक हुए है.
६) भा. कु. नि. संघ रुग्णों के स्वस्थ बच्चों के लिए एक विद्यालय और छात्रावास भी चलाता है. यह बच्चें छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के हैं. छात्रावास में ११० बच्चें रहते हैं और विद्यालय में १५१ विद्यार्थी हैं.
७) संस्था की एक गोशाला भी है. वह पंजीकृत है. उसे सरकारी अनुदान भी मिलता है. आज गोशाला में १२० पशु है. उनके गोबर से जैविक खाद और बायोगॅस की निर्मिति की जाती है. रुग्णों के उपचार के लिए भी गोमूत्र का प्रयोग शुरू हुआ है.
८) संघ की अपनी ७० एकड़ जमीन है. करीब ३५० लोगों - यहॉं के रुग्ण, उनके रिश्तेदार, और संघ के कार्यकर्ताओं  - के लिए इस खेती से उत्पदित अनाज पर्याप्त होता है.
९) सन् २००४ में छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से भा. कु. नि. संघ को महाराज अग्रसेन के नाम का पुरस्कार प्राप्त हुआ. तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी बाजपेयी के हस्ते वह प्रदान किया गया था.
१०) यह परिसर अब कात्रे नगरनाम से जाना जाता है. यह एक नया नगर ही बन गया है. चांपा का एक प्रसिद्ध उपनगर; और उसका कात्रे नगरनाम भी पूर्णत: यथार्थ है.         

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                                                            बिना हाथ का कारीगर!
तमिलनाडु में तिम्माचन्द्र नाम का एक छोटा गॉंव है. वहॉं तिमारायप्पा नाम का एक ४५ वर्ष का आदमी रहता है. वह इस क्षेत्र में बहुत ही लोकप्रिय है. और उसकी इस लोकप्रियता का कारण है उसकी बढ़ई काम में की कुशलता. आप सोचेंगे इसमें विशेष क्या है? विशेष यह है कि तिमारायप्पा को जन्म से ही हाथ नहीं है. लेकिन वह खेती के लिए उपयुक्त औजार बनाता है. उसके पास भी थोडी खेती है. उस खेती में वह काम करता है. पेड़ों के लिए गड्डे खोदना, पेड़ तोडना, नारियल के पेड़ पर चढ़ना आदि सब काम वह करता है. लेकिन केवल अपने पावों के भरोसे. आश्‍चर्य यह की उसका विवाह भी हुआ है. उसकी पत्नी का नाम है धीमाक्का. शादी के समय, पंडित ने उससे कहा, मंगलसूत्र का एक छोर तुम दॉंत से पकड़ो, दूसरा छोर मैं (पंडित स्वयं) पकड़ूंगा और मंगलसूत्र पत्नी के गले में ड़ाला जाएंगा. लेकिन तिमारायाप्पा ने यह मान्य नहीं किया. उसने अने पावों से दुल्हन के गले में मंगलसूत्र पहनाया!
(३ सितंबर २०१२ के डेक्कन क्रॉनिकलके समाचार पर आधारित)     

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                                                            इटालियन संस्कृत पंडित
३ अगस्त को पुदुचेरी (पुराने पॉंडेचेरी) की वेद पाठशाला में एक दीक्षा समारोह हुआ. दीक्षा मतलब हिंदू धर्म की दीक्षा. दीक्षा लेने वाले सब २३ लोग इटली के थे. मुख्य यह कि कॅथॉलिक चर्च के सर्वश्रेष्ठ अधिकारी पोप की राजधानी - व्हॅटिकन  के थे. यह दीक्षा-विधि तीन घंटे चला; और मंत्र पढ़ने वाले भी इटॅलियनही थे.
इस सब के लिए कारण बना फ्लॅवियो नाम का एक इटॅलियन व्यक्ति. वह हिंदूओं की जीवशैली से प्रभावित हुआ. वह २००१ में राजा शास्त्रीगल के संपर्क में आया. शास्त्रीगल व्हेटिकन गये थे; उनका वहॉं तीन माह मुकाम था. उस दौरान उन्होंने फ्लॅवियो और उनकी पत्नी स्टॅपेनो को संस्कृत सिखाई. वेदों में की ॠचाओं का पठन भी सिखाया. फिर दस-ग्यारह वर्षों में इस दम्पत्ति को अनेक अनुयायी मिलें. वे भी हिंदुओं की अध्यात्म विद्या से प्रभावित हुए.
इस दीक्षा समारोह में कुछ लोग ही उपस्थित थे. इन इटॅलियनों ने रुद्र चमक, रुद्र जप, श्रीसूक्त का शुद्ध पारंपरिक पद्धति से पठन किया, इससे उपस्थित लोग चकित हुए. फ्लॅवियो और स्टॅपनों ने अपने मूल नाम भी बदले है. वे अब क्रमश: चिदानंद सरस्वती और सावित्री हो गए है.     
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                                    शक्तिसुरभिकन्याकुमारी के विवेकानंद केन्द्र का उपक्रम
कन्याकुमारी का विवेकानन्द केन्द्र उसके शिक्षा और सेवा प्रकल्पों के लिए प्रसिद्ध है. यहॉं उसका स्मरण होने का कारण है उन्होंने निर्माण किया हुआ कचरे से बायोगॅस निर्माण करने का प्लॉंट.
इस प्लॉंट का नाम भी बहुत अच्छा है शक्तिसुरभि’. इसका अर्थ है शक्ति का सुगंध. करीब २५ वर्ष, केन्द्र ने इस प्रयोग पर काम किया है. शेष अन्न (शाकाहारी और मांसाहारी), सब्जियों के अवशेष (दंठल, पत्ते आदि), चक्की में का फेका जानेवाला माल, नीम, जट्रोफा जैसे अखाद्य तेलों की खली का इस प्रकल्प में उपयोग किया जाता है. एक घन मीटर का प्लँट बनाने के लिए करीब ५ किलो कचरे की आवश्यकता होती है; और उससे .४३ किलो गॅस मिलता है.
बायोगॅस, मतलब जैविक गॅस की यह संकल्पना अब पुरानी हो गई है. लेकिन, उसके निर्मिति की लागत और गोबर के पूर्ति की समस्या के कारण, वह लोकप्रिय नहीं हुई. शक्तिसुरभिके लिए आवश्यक कच्चा माल बहुत ही सस्ता मिलता है. लेकिन सस्ती किमत इतना ही उसका गुण नहीं है. सडने वाले कचरे का निपटारा भी यह प्लँट करते है. कोई दुर्गंध नहीं आती और मक्खियों का भी उपद्रव नहीं होता. गॅस निकलने के बाद जो द्रव बचता है उससे भी अच्छी खाद बनती है. १०० घन मीटर का बायोगॅस प्लँट ५ किलोवॅट ऊर्जा निर्माण करता है और एक परिवार को, उसकी आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए, बीस घंटे ऊर्जा उपलब्ध कराता है.       

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                                                दस मिनट में २५ हजार रोटियॉं!
गुजरात में के कवडीबाई कन्या विद्यालय की १२०० छात्राओं ने १० मिनट में २५ हजार रोटियॉं बनाई!
बात यों हुई की, एक पालक उनकी लड़की को शाला में दाखिल कराने के लिए आये थे. वे शाला की मुख्याध्यापिका से मिले. उन्होंने कहा, ‘‘आपकी शाला अच्छी है. मेरी लड़की होशियार है. उसे ८६ प्रतिशत गुण मिले है. लेकिन, उसे रोटी बनाने में कोई रुचि नहीं. लड़कियों के शिक्षित होने से हम पालक खुश होते है. लेकिन शादी के बाद उन्हें रोटी बनाना नहीं आया, तो उनकी स्थिति बहुत असुविधाजनक होती है. इसके लिए आप कोई हल खोजें.’’
मुख्याध्यापिकाने उनकी बात गंभीरता से ली. छात्राओं से कहा कि, रोटियॉं कैसे बनाई जाती है, यह घर से सीखकर आए. छात्राओं ने रोटी बनाना सीखा. और फिर एक दिन १२०० लड़कियों की परीक्षा ली गई.
प्रत्येक छात्रा को २५० ग्रॅम आटा दिया गया. रोटी का व्यास ५ से ७ इंच रखने के लिए कहा. समय केवल दस मिनट दिया गया. इतने समय में १२०० लड़कियों ने २५ हजार रोटियॉं बनाई. इसके लिए तीन क्विंटल आटा और १० किलो घी लगा. शाला ने यह रोटियॉं, शहर के दवाखानों में दाखिल रुग्णों में बॉंट दी.
आपको नहीं लगता की यह घटना उल्लेखनीय है! 
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                                                            ५३ करोड़ पुस्तकें बेची
एक संस्था ने ५३ करोड़ पुस्तकों की बिक्री की है. एक वर्ष में नहीं! ९० वर्षों में. इस संस्था की स्थापना को ९० वर्ष हुए है. प्रति वर्ष की बिक्री का हम औसत निकाल सकते है. लेकिन वह गलत भी हो सकता है. क्योंकि गत एक वर्ष में ही ढाई करोड़ पुस्तकें बेची गई है.
इस प्रकाशन संस्था का नाम है गीता प्रेस, गोरखपुर’. हमारे मतलब हिंदू धर्म की पुस्तकें मुद्रित करना और बेचना यह गीता प्रेस का ध्येय है. केवल लाभ कमाना ध्येय नहीं होने के कारण, बाजार मूल्य की तुलना में वह बहुत सस्ती रहती है. संस्था, अपने पुस्तकों का विज्ञापन नहीं करती. लेकिन उसका कर्तृत्व अब सर्वपरिचित है.
सब कर्मचारियों के लिए एक सादा नियम है. काम शुरू करने के पूर्व हाथ-पॉंव धोने चाहिए और रामधूनगानी चाहिए. उसके बाद ही काम का प्रारंभ. गत ९० वर्षों से यह नियम चल रहा है.

-मा. गो. वैद्य
(अनुवाद : विकास कुलकर्णी)

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