कर्नाटक विधानसभा का पंचवार्षिक चुनाव ५ मई को हुआ.
८ मई को उसका परिणाम घोषित हुआ. वह कुछ अनपेक्षित है. इसलिए नहीं की भाजपा की हार हुई.
वह तो अपेक्षित ही थी. लेकिन पार्टी कम से कम ६० सिटें जीत पाएगी, ऐसा मुझे लगता था.
और किसी भी पाटीं को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलेगा, त्रिशंकू विधानसभा अस्तित्व में आएगी,
ऐसा मेरा अनुमान था. मेरे यह दोनों अनुमान गलत साबित हुए.
पराभव की मीमांसा
येदीयुरप्पा को भाजपा से हकालने के बाद और उन्होंने
अपनी अलग पाटीं बनाने के बाद, भाजपा के समर्थकों में फूट पडेगी यह तो स्पष्ट था. २००८
में ११० सिटें जितनेवाली भाजपा से फूटकर दो पार्टियाँ बनी. एक येदीयुरप्पा की ‘कर्नाटक
जनता पार्टी’ (कजपा) और दूसरी रेड्डी ब्रदर्स के प्रभावक्षेत्र में निर्माण हुई ‘बीएसआर
काँग्रेस पाटीं’ (बीकाँपा). इन दोनों पार्टियों ने अपने लिए अधिक सिटें तो नहीं जीती.
लेकिन भाजपा को बहुत हानि पहुँचाई. पहले मुंबई क्षेत्र का हिस्सा रहे उत्तर कर्नाटक
में सन् २००८ में भाजपा को ३३ सिंटें मिली थी. इस बार वह १३ पर ही लटक गई. इस क्षेत्र
में लिंगायत समाज की जनसंख्या करीब एक तिहाई है. येदीयुरप्पा की कजपा यहाँ केवल २ सिटें
जीत पाई. लेकिन उसने भाजपा को २० सिटों की हानि पहुँचाई. इस क्षेत्र में पिछली बार
काँग्रेस केवल १२ सिटें जीत पाई थी. अबकी बार यह आँकड़ा ३१ तक जा पहुँचा. हैद्राबाद
रियासत का जो हिस्सा कर्नाटक में शामिल हुआ है, उस क्षेत्र में भी भाजपा को ऐसा ही
झटका लगा. यहाँ २००८ में भाजपा ने १९ सिटें जीती थी. २०१३ में उसे केवल ४ सिटें मिली,
तो काँग्रेस १७ से २० पर पहुँची. बीकाँपा एक भी सीट नहीं जीत पाई. भाजपा की इस हार
के लिए येदीयुरप्पा ही जिम्मेदार है, इसमें कोई संदेह नहीं. समुद्र के किनारे का मंगलोर
क्षेत्र भाजपा का गढ़ था. लेकिन वहाँ भी भाजपा २००८ की स्थिति कायम नहीं रख पाई. किनारे
से सटे प्रदेश में भाजपा ने २००८ में १५ सिटें जीती थी. इस बार वह आँकड़ा ४ तक नीचे
आया. कर्नाटक में मुसलमानों की संख्या करीब १३ प्रतिशत है. उसमें के सबसे अधिक इस समुद्र
किनारे के क्षेत्र में है. उन्होंने एकजूट काँग्रेस को मतदान किया; और २००८ में ७
सिटें जीतने वाली काँग्रेस ने इस बार यहाँ १२ सिटें जीती.
लक्षणीय जीत
काँग्रेस की जीत सही में लक्षणीय है. मेरा अनुमान था
कि, उसे १०० के करीब सिटें मिलेगी, विधानसभा त्रिशंकू होगी और काँग्रेस किसी पाटीं
को साथ लेकर सत्ता हासिल कर पाएगी. लेकिन मेरा अनुमान गलत हुआ. २२४ सदस्यों की विधानसभा
में काँग्रेसने १२१ सिटें जीती है. चुनाव २२३ सिटों के लिए ही हुआ था. भाजपा के एक
उम्मीदवार की प्रचार की कालावधि में मृत्यु होने के कारण, वहाँ चुनाव स्थगित हुआ है.
२२३ में से १२१ सिटें जीतना तो सराहनीय ही माना जाएगा. काँग्रेस ने यह सफलता हासिल
की है, इसके लिए उन्हें बधाई. २००८ में काँग्रेस को ८० सिटें मिली थी. अब उस पार्टी
को देड गुना से अधिक सिटें मिली है. कर्नाटक की जनता का भी अभिनंदन करना चाहिए. लोगों
ने एक पार्टी स्पष्ट बहुमत देकर, किसी सहयोगी पार्टी के दबाव में न झुकने और ऐसा बहाना
खोजने का अवसर न देते हुए स्वतंत्र रूप से राज्य का कारोबार चलाने का मौका काँग्रेस
को अर्पण किया है. किसी भी प्रादेशिक पाटीं की अपेक्षा अखिल भारतीय स्तर की पार्टी,
राज्य में सत्तारूढ होना, देश की एकात्मता के लिए उपयुक्त होता है. तामिलनाडु या पश्चिम
बंगाल को देखें. वहाँ की सरकारों का बर्ताव ऐसा होता है कि, मानों उनकी अलग परराष्ट्र
नीति है. उनकी योग्यायोग्यता का मुद्दा मुझे उपस्थित नहीं करना है. शायद उनकी नीति
योग्य ही होगी. मुझे तो इतना ही अधोरेखित करना है कि, श्रीलंका और बांगला देश के बारे
में उन राज्यों की सरकार का दृष्टिकोण केन्द्र सरकार के दृष्टिकोण से भिन्न है और उस
दृष्टिकोण पर वे सरकारे दृढ है.
काँग्रेस का
चरित्र
काँग्रेस के बडे बडे नेता अपने पार्टी के इस अनेपक्षित
जीत का सेहरा राहुल गांधी के सिर पर बांधना चाहते है, यह उनके स्वभावधर्म के अनुरूप
ही है. व्यक्तिपूजा और परिवारवाद काँग्रेस के चरित्र का अभिन्न हिस्सा बन गए है. लेकिन
सोनिया गांधी ने इस जीत का श्रेय सब के प्रयत्नों को दिया है. राहुल गांधी के नाम से
काँग्रेस के नेता ढोल पीटे, इसके लिए अन्य किसी ने आक्षेप लेने का वैसे तो कारण नहीं.
लेकिन, गुजरात, बिहार और उत्तर प्रदेश में भी राहुल गांधी ने प्रचार किया था, वहाँ
क्यों काँग्रेस ने धूल चाटी? उस समय हार की जिम्मेदारी पार्टी पर डाली गई थी. मतलब
जीते तो राहुलजी के कारण और हारे, तो पार्टी संगठन के कारण, ऐसा काँग्रेस का अजीब तर्कशास्त्र
है. वास्तव में काँग्रेस ने अपनी जीत का कुछ श्रेय तो येदीयुरप्पा को देना ही चाहिए
और उन्हें धन्यवाद भी देना चाहिए. भाजपा की इस निराशाजनक हार और परिणामत: काँग्रेस
की भारी जीत में येदीयुरप्पा की भूमिका सर्वाधिक महत्त्व की रही है. (दिनांक ९ मई के
‘इंडियन एक्सप्रेस’ की नागपुर आवृत्ति में पृष्ठ ९ पर, कर्नाटक के चुनाव परिणाम पर
मेरी प्रतिक्रिया प्रकाशित हुई है. उसमें, मैंने भाजपा की स्थिति ''disgusting'' कहने
का वृत्त प्रकाशित हुआ है. उन्होंने मेरी टिप्पणी कहाँ से ली इसकी मुझे जानकारी नहीं
है. शायद टी. व्ही. के चॅनेल से ली होगी. उन चॅनेल के प्रतिनिधियों के साथ मेरी मुलाकात
मराठी और हिंदी में हुई थी. मैंने भाजपा की हार के लिए ‘निराशाजनक’ विशेषण का
प्रयोग किया था. ‘निराशाजनक’ का अनुवाद ''disgusting'' होगा? वस्तुत: उसका अनुवाद
''disappointing'' ऐसा होना चाहिए. इस बारे में मैं उन्हें पत्र भेज रहा हूँ.)
मतों का प्रतिशत
२००८ के चुनाव में भाजपा को ३४ प्रतिशत मत मिले थे.
भाजपा को मिले मतों का प्रतिशत उस समय काँग्रेस से कुछ कम था. लेकिन सिटें काँग्रेस
से अधिक मिली थी. एक सूत्र ने बताया कि अब काँग्रेस को ४२ प्रतिशत मत मिले है. मैंने
इस बारे में अधिक जाँच की तो पता चला कि, इस बार काँग्रेस के मतों के प्रतिशत में केवल
३ प्रतिशत की वृद्धि होकर वह ३७ प्रतिशत हो गए. लेकिन भाजपा के मतों का प्रतिशत करीब
१३ से घटा है. इसके लिए येदीयुरप्पा की ‘कजपा’ कारण है, इस बारे में संदेह नहीं. काँग्रेस
के मताधिक्य में मुस्लिम मतों का आँकड़ा बहुत बड़ा है. पहले बताया ही है कि, कर्नाटक
में मुसलमानों की संख्या १३ प्रतिशत है. वह समाज इस बार ताकत के साथ काँग्रेस के समर्थन
में खडा हुआ. मंगलोर क्षेत्र की जानकारी रखने वाले व्यक्ति ने मुझे बताया कि, उस क्षेत्र
के मुसलमानों ने पूरी तरह से एकजूट होकर काँग्रेस को मतदान किया. इस कारण भाजपा का
वह गढ़ दुर्बल सिद्ध हुआ. हो सकता है की, पूरे कर्नाटक में भी ऐसा ही हुआ होगा.
संदेह की गुंजाइश
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्रभाई मोदी कर्नाटक में
प्रचारार्थ गये थे. चालाक काँग्रेस ने मोदी को सामने कर मुस्लिम समुदाय में भयगंड निर्माण
करने की संभावना नकारी नहीं जा सकती. मानों राष्ट्रीय स्तर पर मोदी भाजपा के अधिकृत
भावी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार है, ऐसा चित्र टी. व्ही के कुछ चॅनेल निर्माण करते
है. भाजपा ने ऐसा कहा नहीं. सही समय पर हम हमारा उम्मीदवार घोषित करेंगे ऐसी उस पार्टी
की भूमिका है और वह योग्य भी है. लेकिन कुछ टी. व्ही. चॅनेल ऐसा वातावरण निर्माण कर
रहे है कि, मोदी ही भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार है. फिर संदेह निर्माण होता
है कि, इस प्रचार के पीछे काँग्रेस की चाल तो नहीं है? मुस्लिम समाज के गठ्ठा मत हमें
ही मिले, वह सपा, बसपा, वामपंथीयों के हिस्से में न जाए, यह दाव तो इसके पीछे नहीं
होगा? मतों के लिए काँग्रेस और तथाकथित सेक्युलर मीडिया के बीच कोई साठ-गाँठ तो नहीं?
राहुल गांधी और नरेन्द्रभाई मोदी की तुलना भी प्रसारमाध्यमों ने शुरु की है. क्यों?
राहुल गांधी जैसे काँग्रेस के भावी अलिखित उम्मीदवार हे, क्या वैसे मोदी है? फिर दोनों
के बीच तुलना का क्या प्रयोजन?
लोकसभा चुनाव
पर परिणाम
इस चुनाव में भाजपा की हार हुई, इस कारण कर्नाटक में
वह पार्टी समाप्त ही हो गई ऐसा मानने का कोई कारण नहीं. येदीयुरप्पा को फिर पार्टी
में लाए, ऐसा कुछ लोगों का मत दिखता है. लेकिन वह भाजपा के हित में नहीं होगा. पार्टी
का संगठन पुन: सही तरीके से खडा करने, सब जनसमूहों को साथ लेकर जाने और भ्रष्टाचारियों
को हमारी पार्टी में कोई स्थान नहीं, यह दृढता के साथ बताने और उसके अनुसार पुन: पार्टी
के संगठन की रचना करने का अवसर भाजपा को इस चुनाव ने दिया है. टी. व्ही. चॅनेल के कुछ
प्रतिनिधि मुझसे मिलने आये थे. उनका प्रश्न था कि, कर्नाटक के इस चुनाव का २०१४ के
लोकसभा के चुनाव पर क्या परिणाम होगा? मैंने उत्तर दिया, कोई परिणाम नहीं होगा. आगामी
नवंबर में दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र जैसे अनेक राज्यों में विधानसभा
के चुनाव है. उन चुनाव परिणामों के बाद ही लोकसभा के चुनाव के बारे में कुछ कहा जा
सकता है. काँग्रेस पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप होते हुए भी, कर्नाटक में काँग्रेस
जीती, इस ओर भी उन प्रतिनिधियों ने मेरा ध्यान आकृष्ट किया. मैंने कहा, केन्द्र में
का भ्रष्टाचार यह कर्नाटक के चुनाव में मुद्दा ही नहीं था. काँग्रेस भी ऐसा मानने की
भूल नहीं करेगी कि, कर्नाटक की जनता ने उन्हें भ्रष्टाचार के लिए जनादेश दिया है. सर्वोच्च
न्यायालय ने, कोयला घोटाला और सीबीआय की जाँच बारे में जो कोडे बरसाए है, उससे केवल
सीबीआय की ही बदनामी नहीं हुई, तो काँग्रेस और केन्द्र सरकार की भी बदनामी हुई है.
यह भ्रष्टाचार और स्वायत्त संस्थाओं के काम में अवैध घूसपैंठ करने का मुद्दा लोकसभा
के चुनाव में महत्त्व का रहेगा. मेरी दृष्टि से कर्नाटक विधानसभा का चुनाव किसी एक
राज्य के चुनाव के समान ही है. उसे अवास्तव अखिल भारतीय स्तर का महत्त्व देना मुझे
उचित नहीं लगता.
- मा. गो. वैद्य
नागपुर
babujivaidya@gmail.com
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