Saturday 21 April 2012

इतस्तत:



परिवर्तन के शुभ संकेत

) गत फरवरी माह की २७ तारीख को, पश्चिम उत्तर प्रदेश के ४० ईसाई परिवारों ने पुन: अपने हिंदू धर्म में प्रवेश किया. वे सब, मूल दलित परिवार थे. वैसे अब परावर्तन में नावीन्य नहीं रहा. लेकिन नावीन्य का भाग आगे ही है. इन चालीस परिवारों में से, हर परिवार के एक व्यक्ति को पौरोहित्य की शिक्षा दी जाने वाली है. कालबाह्य हुई भाषा का प्रयोग करे तो, उन सब को ब्राम्हणत्व प्राप्त होगा. उन्हें इस तरह तैयार किया जाएगा कि, सब धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों के लिए उन्हें आदरणीय माना जाएगा.
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) केरल के त्रावणकोर देवस्वम् बोर्डने गत दो माह में एक सौ पुजारियों को प्रशिक्षित किया है. इस बोर्ड के व्यवस्थापन में १२०० मंदिर है. उन मंदिरो में सही तरिके से पूजा-अर्चा हो, इसके लिए यह बोर्ड पुजारियों को कर्म-कांड का प्रशिक्षण देता है. नए एक सौ पुजारियों को प्रशिक्षित कर उनको नियुक्त किया गया है. उनमें के ५० ब्राह्मण नहीं है. : माह पूर्व देवस्वम् बोर्ड ने पुजारियों की भरती करने का उपक्रम शुरू किया. सैकड़ों आवेदकों की मुलाकात ली गई. उनमें से सौं को चुना गया. पुजारी बनने के लिए जाति का बंधन नहीं पालना, यह बोर्ड की नीति है. लेकिन, उम्मीदवार को थोड़ा संस्कृत और थोड़ा तंत्रशास्त्र अवगत होना चाहिए. कृष्णन् नंबुद्री केरल के तंत्र विश्वविद्यालय के महासचिव है. इच्छुकों की मुलाकात लेने वाली समिति के वे एक सदस्य है. उन्होंने कहा कि, ‘’हमारी एक ही शर्त थी कि, उम्मीदवार मल्याळ्म भाषी हिंदू हो. जन्म से ब्राह्मण रहने वाले अनेकों ने योग्य रीति से मंत्र पढ़ें; और उन्हें पूजा के तंत्र का भी ज्ञान था. इसलिए हमनें उन्हें चुना.’’
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सात के बदले आठ फेरे

विवाह विधि में अग्नि के चारों ओर सात फेरे लगाने की प्रथा उत्तर भारत में है. हमारे तरफ सप्तपदी की विधि है. लेकिन, बुंदेलखंड के एक समाज ने, सात के बदले आठ फेरे लगाने की विधि शुरू की है. किसलिए? - कन्या का जन्म होने पर आनंद मनाने की प्रतिज्ञा के लिए. उस समाज का नाम है गहोई-वैश्य समाज. इस समाज के नेताओं के ध्यान में आया कि, उनके समाज में, लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या बहुत कम है. उन्होंने, इस समस्या पर विचार करने के लिए, अपने समाज की एक सभा बुलाई और एकमत से प्रस्ताव पारित कर शादी की विधि में एक फेरा बढ़ा दिया और नवदंपत्ति प्रतिज्ञा भी ले, यह भी तय किया.

१२ फरवरी २०१२ को, इस प्रस्ताव के अनुसार एक विवाह विधि संपन्न भी हुआ. राधेश्याम बिलैया ने इस बारे में पहल की. श्री बिलैया अच्छे सुशिक्षित है. महाराजपुर के अभियांत्रिकी महाविद्यालय में वे प्राध्यापक है. वधू का नाम हर्षा’. वह मुंबई के एक निजी कंपनी में असिस्टंट मॅनेजर है; और वर है समीर. वह एक मोबाईल फोन कंपनी में नौकरी करता है. अपने समाज में नई प्रथा शुरू करने का मान अपने को मिला, इसका दोनों को आनंद है.

इस समाज के प्रमुख श्री नारायण रुशिया ने बताया कि, ‘‘इस गंभीर सामाजिक समस्या पर विचार करने के लिए हम एकत्र आए और हमने तय किया कि, लड़की के जन्म की टीस मन में पालकर, वह एक आनंद की और समाज हित की घटना है, ऐसा हमने मानना चाहिए; और इसके लिए विवाह विधि में ही उसकी प्रतिज्ञा और एक फेरा हमने अंतर्भूत किया. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रस्तुत किए कन्या बचावअभियान ने हमें प्रेरित किया और करीब साडे : सौ परिवारों का अंतर्भाव होनेवाले हमारे समाज ने उसे मान्यता दी.’’
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और यह चित्र!

हमारे भारत के इशान्य कोने में मिझोराम नाम का एक छोटा सा राज्य है. पहले, मिझोराम यह असम राज्य का ही एक हिस्सा था. उस जिले में ९५ प्रतिशत लोग ईसाई है. हिंदू और हिंदुत्व से दूर जाने पर अलगाव की भावना निर्माण होती है, ऐसा हमारा इतिहास बताता है. मिझोराम के ईसाई भी अपवाद नहीं सिद्ध हुए. उन्होंने मिझोराम का स्वतंत्र राज्य निर्माण करने के लिए हिंसक आंदोलन शुरू किया. मिझो नॅशनल फ्रंटयह उस आंदोलन करने वाले संगठन का नाम है. मिझोयह एक अलग राष्ट्र है, ऐसा उनका दावा था. लेकिन सरकार ने शक्ति का उपयोग कर आंदोलन शांत किया. लेकिन भारत के अंतर्गत ही, एक अगल राज्य के रूप में उसे मान्यता दी. २० फरवरी १९८७ को मिझोराम यह अलग राज्य बना. मिझो नॅशनल फ्रंटयह अब वहॉं की एक सियासी पार्टी है.

२००१ की जनगणना के अनुसार मिझोराम की जनसंख्या पूरी लाख भी नहीं. इसमें बॅप्टिस्ट चर्च को माननेवाले बहुसंख्य है. बॅप्टिस्टचर्च प्रॉटेस्टंट चर्च है. लेकिन कट्टरता में वे रोमन कॅथलिकों से बहुत पीछे नहीं.

प्रथम ही इस चर्च ने एक महिला को दीक्षा दी. इस महिला का नाम है डॉ. आर. एल. हुनूनी. बायबलका उसका विशेष अभ्यास है. मिझोराम की राजधानी ऐजवाल शहर की ऍकेडमी ऑफ इंटेग्रेटेड ख्रिश्चन स्टडीज्इस संस्था की वह प्राचार्या है. ११ मार्च २०१२ को उसे दीक्षित किया गया. लेकिन उसके साथ ही यह भी बताया गया कि वह पॅस्टरनहीं बन सकेंगी. पॅस्टरमतलब हमारी भाषा में धर्मगुरू’. या पुरोहित कहें!

हुनूनी को दीक्षा देने का मामला वर्षभर प्रलंबित था. गत वर्ष ही, हुनूनी को दीक्षा देने के प्रस्ताव को, बॅप्टिस्ट चर्च की असेंबली ने नकारा था. वर्षभर बाद थोडी प्रगति हुई. हुनूनी दीक्षितहुई. लेकिन उसे पॅस्टरपद नहीं मिलेंगा.

लेकिन, इस रूढि के लिए केवल ईसाई संप्रदाय ही कारण है, ऐसा मानने का कोई कारण नहीं. ईसाई बनने के बाद भी जनजातियों की पुरानी - बहुत पुरानी कहें - परंपराएँ छूटती नहीं. मिझो जनजाति में पुरुष-प्रधानता है. उसका ही प्रतिबिंब चर्च की रचना और व्यवहार में दिखाई दिया है, ऐसा ही मानना ठीक होगा.
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चल रुग्णालय

महाराष्ट्र के गडचिरोली जिले की यह कहानी है. नक्षल प्रभावित जिला ऐसी गडचिरोली की देशभर में ख्याति है. ऐसे इस दुर्गम नक्षलग्रस्त क्षेत्र में डॉ. हेडगेवार जन्मशताब्दी सेवा समितिएक चल रुग्णालय चलाती है. अहेरी, एटापल्ली, भामरागड और मूलचेरा ये नाम विदर्भवासियों के लिए परिचित हुए है. ये गडचिरोली जिले की तहसीलें हैं. हर तहसिल के कुछ गॉंव इस सेवा समिति ने चुने है. एटापल्ली तहसील का पेठा, मूलचेरा का किश्तापुर, अहेरी तहसील के नागुलवाही, कोलापल्ली, गुड्डीगुदाम उनमें के कुछ गॉंव है. भामराड तहसील के कुछ गॉंव भी चुने गए है.

पहले पहल सेवा समिति ने एक जीप लेकर, उसमें दवाईंयॉं रखकर अपना काम शुरू किया. लेकिन अब समिति के पास एक ऍम्बुलन्स आई है. चंद्रपुर के भाजपा सांसद श्री हंसराज अहिर की ओर से यह ऍम्बुलन्स कार समिति को मिली है. अहेरी के डॉ. सुरेश डंबोले, यह सब व्यवस्था देखते है. निर्धारित केंद्र में, निर्धारित दिन, दवाईंयॉं लेकर यह ऍम्बुलन्स जाती है और उस दुर्गम भाग के जनता की सेवा करती है. सेवा समिति को जनता का भी अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है. पेठा में स्थानिक जनता ने, श्रमदान कर, रुग्णालय के लिए एक इमारत भी बना दी है.      
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दु:-शमन का उपाय

तमिलनाडु राज्य में, तंजावर नाम का एक जिला है. उस जिले के कोलकत्तूर गॉंव के निवासी कनकसभाई होमिओपॅथी पद्धति से चिकित्सक का व्यवसाय करते थे. उनके प्रल्हाद नाम के बारह वर्ष के लड़के की एक दुर्घटना में मृत्यु हुई. वे बहुत दु:खी हुए. मन की शांति के लिए वे तिरुप्परयथुराई के रामकृष्ण तपोवन के स्वामी चिद्भवानंद की शरण में गये. स्वामी ने उनका सांत्वन कर कहा, ‘‘इस निमित्त से परमेश्वर ने तेरी परीक्षा ली है. तू, अन्य बच्चों के हित के लिए काम कर, ऐसा परमेश्वर का संकेत है.’’

कनकसभाई ने यह उपदेश माना. और अपने देहात में रामकृष्ण मिड्ल स्कूलशुरू किया. गत २५ वर्षों के अथक सेवाभावी प्रयासों से शाला की बहुत उन्नति हुई. उस क्षेत्र की एक अच्छी शाला के रूप मे वह विख्यात है. कनकसभाई अब ७८ वर्ष के हुए है. अपनी संस्था अन्य किसी के हाथों में सौंपे ऐसा विचार उनके मन में आया. अन्य धर्मियों ने उन्हें करोड़ों रुपयों की लालच भी दिखाई. लेकिन कनकसभाई मोह में नहीं फंसे. उन्होंने अपनी यह शाला, कोईमतूर के आर्ष विद्यापीठम्के प्रमुख स्वामी दयानंद सरस्वती के चरणों में समर्पित की. स्वामी दयानंद सरस्वती वि. हिं. . के अग्रगण्य धर्माचार्य है, यह सर्वविदित ही है.      
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शूर उमाशंकर

उमाशंकर. दिल्ली का निवासी. आयु १२ वर्ष. १२ जुलाई २०१० की घटना. वह एक बस से शाला में जा रहा था. उनके सामने यात्रियों से खचाखच भरी एक मिनि बस जा रही थी. उसमें भी कई विद्यार्थी थे. एक मोड पर वह मिनि बस पलटी. उसके नीचे अनेक बच्चें दब गए. चारों ओर खून बिखरा. बच्चों की चीखों से वातावरण भर गया. उमाशंकर अपनी बस से कूदकर बाहर निकला. उलटी बस के नीचे घूसकर उसने कुछ घायल बच्चों को बाहर निकाला. मिनि बस के सुरक्षित यात्रियों की मदद से बस सीधी की. घायल बच्चों को तुरंत रुग्णालय ले जाने के लिए उस रास्ते से जानेवाली मोटरों को हाथ दिखाकर रोकने का प्रयास किया. लेकिन कोई भी रूक नहीं रहा था. आखिर जान की परवाह किए बिना, वह दो मोटर के सामने लेट गया. तब वह गाडियॉं रुकी. घायलों में से : विद्यार्थींयों को तुरंत दवाखाने भेजा गया. उनमें से पॉंच की जान बची. गणराज्य दिन के कार्यक्रम में शौर्य पदक देकर उमाशंकर का गौरव किया गया.        
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झिलियांगरॉंग हराक्का स्कूल

नागालँड के पेरेन जिले के तेनिंग गॉंव की शाला किसी निसर्ग-चित्र के समान ही लगती है. काटकोन के आकार की यह ठिंगनी (कम ऊँची) शाला, उसके सामने खुला लाल मैदान, फूल के झाड़ों की बॉर्डर, हरे पेड़, नीले रंग की शाला ऐसा यह सुंदर परिसर है. नई सफेद भवन की छत पर फूल के पौधों के सुंदर गमले रखे हैं. पुरानी शाला में बालवाडी और चौथी से सातवी तक की कक्षाएँ चलती है, तो नई इमारत में पहली से तीसरी और आठवी से दसवी तक की कक्षाएँ चलती हैं. यहीं कॉम्प्युटर रूम, लायब्ररी, ऑफिस और एक विशेष उपक्रम हेरिटेज रूमहै.

२० फरवरी १९८४ को, केवल १२ लड़के और लड़कियों के साथ हर गॉंव के हिंदू परिवार के कुछ लोगों की उपस्थिति में, एक झोपडीनुमा घर में, विद्या की देवता सरस्वती मॉं और रानी मॉं (नागा रानी गाईदिन्ल्यू) की प्रतिमा रखकर, लोगों के आग्रह के कारण दीप प्रज्वलन कर, नागा बंधुओं के धार्मिक गीत-गायन से इस विद्यालय का श्रीगणेश हुआ.

ईसाई समाज का प्रखर विरोध और धधगते दहशतवाद के कारण अनेक संकटों का सामना करते हुए श्री रामनगिना यादव इस वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यकर्ता ने कडे परिश्रम से, कभी-कभी तो शारीरिक कष्ट सहकर भी, किसी भी स्थिति में हार मानकर, प्रयास करते हुए इस शाला की नीव रखी.

केवल १२ बच्चों से शुरू हुई इस शाला में, आज प्रतिवर्ष ४०० से अधिक बच्चें प्रवेश लेते है. पहले यह शाला शुरू ही हो इसके लिए प्रयास करने वाले ईसाई समाज के बच्चें भी, यह शाला अन्य शालाओं से अच्छी है इसलिए इस शाला में बड़ी संख्या में प्रवेश लेते है. इन बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक लाने में पहले बहुत ही कठिनाई हुई. आज भी यह समस्या पूरी तरह से हल नहीं हुई है. यहॉं पढ़ाना यह नौकरी नहीं. एक अलग दृष्टिकोण से, एक निश्चित ध्येय सामने रखकर राह चलते, बहुत बड़ा समाधन देने वाला एक जिवंत, रसभरा अनुभव है. अर्थात ही इस अलग रास्ते पर चलने वाले समाज में सदा ही बहुत कम रहते है. इसी शाला में पढ़े कुछ छात्र एवं छात्राएँ यहॉं शिक्षक का काम करते है. शिक्षा के नए प्रवाह, नई पद्धति ने अभी तक यहॉं जड़े नहीं जमाई है. लेकिन अतिशय कठिन परिस्थिति में पारंपरिक पद्धति से यहॉं शिक्षा का काम चल रहा है. पढ़ाई के अलावा अनेक उपक्रम में विद्यार्थी हिस्सा लेते है. चित्रकला, खेल, वक्तृत्व आदि स्पर्धाएँ आयोजित की जाती है. राष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल खेल चुके जिनलॉक सर गजब के खिलाड़ी है. उनके मार्गदर्शन में, भविष्य में, इस शाला से कोई राष्ट्रीय स्तर का फुटबॉल खिलाड़ी निर्माण होने की संभावना है. वनवासी कल्याण आश्रम बच्चों की क्षमता खोजकर उनका विकास करने के लिए प्रयासरत है.

नागा समाज के मूल नृत्य-गायन कलाओं को प्रोत्साहन देने वाले उपक्रम यहॉं नित्य चलाए जाते है. ऐसी स्पर्धाओं में यहॉं के विद्यार्थी हरदम शामिल होते है. उन्हें पुरस्कार भी मिलते है. उनकी रोज की प्रार्थना भी श्रवणीय होती है. रक्षाबंधन का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है. फूलमून डे’ (पौर्णिमा) हर माह मनाई जाती है. शिक्षक दिन को विद्यार्थी शिक्षकों के लिए वेलकम सॉंगगाते है. पारंपरिक नृत्य करते है और बालक दिन पर शिक्षक विद्यार्थींयों के लिए वेलकम सॉंगगाते है और पारंपरिक नृत्य भी करते है. यह लेन-देन उल्लेखनीय है.

पर्यावरण दिन साफ-सफाई कर मनाया जाता है. हर माह एक दिन समाज कार्य दिन मनाया जाता है. शाला का रजत जयंति समारोह नागालँड के मुख्यमंत्री नैफ्यू रिओ की प्रमुख उपस्थिति में १२ अक्टूंबर को मनाया गया. उस समय मुख्यमंत्री ने शाला के बारे में गौरवोद्गार निकाले और शाला को दान भी दिया.

ऐसी इस शाला का विकास होकर महाविद्यालय शुरू हो ऐसी स्थानीय नागरिकों की इच्छा है. वह शाला के सुवर्ण जयंति महोत्सव तक पूर्ण हो यह शुभेच्छा.
(‘ईशान्यवार्ता’ - मार्च २०१२ के अंक में के ज्योति शेट्ये, डोंबिवली के लेख से साभार)
  

- मा. गो. वैद्य
babujivaidya@gmail.com
अनुवाद : विकास कुलकर्णी

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