Monday 4 June 2012

इ त स्त त:

                              कृतज्ञता
हैफा इस्रायल देश में का एक नगर है. पहले विश्वयुद्ध के पूर्व वह तुर्की साम्राज्य में था. १९१८ में, उसे करीब चार सौ वर्ष की गुलामी से मुक्त किया गया. हैफा के स्वाधीनता संग्राम में भारतीय सैनिकों का बहुत बड़ा योगदान है. हैफा की नगर पालिका ने अपने शालेय पुस्तक में, भारतीय सैनिकों ने किए पराक्रम की कहानी अंतर्भूत करने का निर्णय लिया है. इतना ही नहीं, वह कार्यांवित भी किया है.
करीब
९०० भारतीय सैनिक इस संघर्ष में वीरगति को प्राप्त हुए थे. उन वीर सैनिकों को मानवंदना देने के लिए इस्रायल में के भारतीय सैनिकों के स्मृतिचिन्ह’ (मेमोरियल्स ऑफ इंडियन सोल्जर्स इन् इस्रायल) इस पुस्तक के प्रकाशन का एक कार्यकम हुआ. भारत के इस्रायल में के राजदूत नवतेज सरणा मुख्य अतिथि थे. प्रति वर्ष २३ सितंबर को भारतीय सेना भी हैफा दिननाम से यह दिन मनाती है. इस लढ़ाई में की बहादुरी के लिए कॅ. अमरसिंग बहादुर और जोरासिंग का इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिटऔर कॅ. अनुप सिंह और ले. सगत सिंह का मिलिटरी क्रॉसदेकर, उस समय की ब्रिटिश सरकार ने सत्कार किया था.   
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                        महिलाओं की वेद पाठशाला
कोळीकोड (शायद कालिकत होगा) केरल राज्य में का एक बड़ा शहर है. वहॉं काश्यप वेद रिसर्च फाऊंडेशननाम की संस्था का एक मठ है. उसका नाम है काशीमठ’. हर रविवार इस मठ का परिसर वेद-मंत्रों के उच्चारण से गूंज उठता है. यह वेद-मंत्रोच्चार करती है महिलाएँ! और उनकी संख्या रहती है करीब तीन सौ! हर रविवार इस मठ में वे आती है. १३ - १४ महिलाओं के समूह बनाए जाते है; और फिर उनका मंत्राध्ययन शुरू होता है
वेदमंत्र पढानेवाले व्यक्ति का नाम है सुयश आर्य. काश्यप वेद संस्थाके संस्थापक आचार्य राजेश के वे शिष्य है. गत नौ वर्षों से उन्होंने महिलाओं को पौराहित्य पढ़ाने का उपक्रम आरंभ किया है. जाति और आयु का विचार कर यह पढ़ाई चल रही है. ब्राह्मणों ने और उसमें भी पुरुषों ने ही वेद-मंत्र का पठन करने की पुरानी पंरपरा उन्होंने तोडी है. गत नौ वर्षों में १० हजार से अधिक महिलाओं को पौराहित्य का प्राथमिक कर्मकांड पढ़ाया गया है. कोळीकोड के व्यतिरिक्त कन्नूर, मलप्पुरम, त्रिशूर की महिलाओं ने भी इसका लाभ लिया है
उनमें की कुछ महिलाएँ पौराहित्य में इतनी निपुण हुई है कि, वे अग्निहोत्र, स्मार्त एवं श्रौत यज्ञ और सोलह संस्कार में अंतर्भूत सब विधि यथाशास्त्र करती है. आचार्य राजेश का उद्दिष्ट, परमेश्वर और उसके बीच के मध्यस्त को हटाना है. अपने घर जो पूजा-विधि करने होते है, वह घर में के गृहस्थ या गृहिणी ने ही करने चाहिए, ऐसा राजेश का आग्रह है
वेद-मंत्रपाठ का अध्यापन करने वालों में महिलाएँ भी है. एम. सयजा नाम की महिला, वहॉं की हायर सेकंडरी स्कूल में शिक्षिका है. गत पॉंच वर्षों से वे वेद-मंत्रपाठ का अध्यापन कर रही है. वे अपना अनुभव बताती है कि, ‘‘इस वेद-पाठ के कारण, मुझे मेरे विद्यार्थीयों को नैतिक शिक्षा के पाठ पढ़ाना आसान हो गया है.’’ निमिषा सॉफ्टवेअर इंजिनिअर है. वे कहती है, ‘‘वेद-मंत्रों के पठन से, संकट के समय शांतता से विचार करने की शक्ति मुझ में आई है. और मुझे भारत की प्राचीन परंपरा का भी ज्ञान हुआ है.’’
वेदों की शिक्षा लेने के बारे में लोगों में निर्माण हुई उत्सुकता की काश्यप वेदपीठको कल्पना है. वे अब एक भव्य गुरुकुल की स्थापना का विचार कर रहे है. इस गुरुकुल के निर्माण के लिए करीब चार करोड़ रुपये खर्च अपेक्षित है. पॉंच सौ लोगों की आसन क्षमता का एक भव्य सभागृह और एक आश्रम बनाया जाएगा. यह वेदपीठ चेन्नई, बंगलोर और मुंबई में भी अल्पकालीन शिबिर आयोजित करता है.        
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                              आकर्षण
दिनोंदिन हरिद्वार आने वाले विदेशीयों की संख्या बढ़ रही है. ये सब विदेशी उच्च विद्याविभूषित है; और उनके मन में हिंदू धर्म के बारे में उत्कंठा और आस्था भी निर्माण हुई है. मूल मास्को निवासी, ५६ वर्षीय, व्हिक्टर शेवित्सोव, रूसियों को हिंदू धर्म का आकर्षण क्यों लगता है, इस बारे में बताते हुए कहते है कि, ‘‘हिंदुस्थान में और पूर्व एशिया में भी धार्मिक नेता लोगों से बात करते है. वे हमारे प्रश्नों के उत्तर देते है. हमारे देश में के ऑर्थोडॉक्स ईसाई चर्च में ऐसा कभी नहीं होता.’’ अनेक रूसियों ने हिंदू धर्म का स्वीकार भी किया है. प्रोखोर बाश्कातोव्ह ३७ वर्ष का है. मकान बनाने और उनकी खरीदी-बिक्रि करने वाला यह युवक तो रुसी चर्च को दोष देते हुए ही मैं हिंदू बनाऐसा खुलकर बताता है. इन दोनों रूसियों के हलिद्वार के गायत्री परिवार के साथ घनिष्ठ संबंध है. वे गायत्री मंत्र का जाप करने का आग्रह करते है. भारत में पढ़ रही २२ वर्ष की दक्षिण कोरिया की दासोम हर यह युवती कहती है, ‘‘मेरे माता-पिता को भारत, योग और भारतीयों की नीतिमत्ता ने बहुत आकृष्ट किया था.’’ उसके पिता की मृत्यु होने के बाद उसकी मॉं ने भारत आने का निश्चय किया. वह कहती है. ‘‘भारत में ही मुझे जीवनमूल्यों की शिक्षा मिलेगी.’’   
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                              परिवर्तन
एकल विद्यालयक्या है, यह रा. स्व. संघ के करीब के लोगों को पता है. एकल विद्यालयमतलब एक शिक्षकी शाला. वे कहा चलती है? जंगल में, दूर दराज के क्षेत्र में, जहॉं कोई भी शाला नहीं है और रही तो भी बच्चें नहीं जाते है, वहॉं. यह अतिशयोक्ति नहीं है. करीब बीस वर्ष पूर्व की बात होगी. हम कुछ लोग, झारखंड में से जा रहे थे. रास्ते में एक एकल विद्यालय को भेट, यह हमारे कार्यक्रम का एक भाग था. गॉंव सड़क से दूर नहीं था. गॉंव में शाला थी. मतलब शाला की इमारत थी. शिक्षक भी नियुक्त थे. लेकिन शाला चलती नहीं थी. कारण, विद्यार्थी वहॉं जाते नहीं थे. मैंने कारण पूछॉं तो पता चला कि, शाला सुबह १०.३० से .३० लगती है; और उसी समय गॉंव में के बच्चें , गाय-बकरियॉं चराने ले जाते है. लेकिन वहीं एकल विद्यालय चल रहा था. क्योंकि वह सायंकाल ६॥ से तक लगता था.
हमारे समक्ष ५५ विद्यार्थी उपस्थित किए गए. उनके पालक भी आए थे. उन ५५ में २३ लड़कियॉं थी. सब ने पहाड़े सुनाए. कुछ ने गीत भी गाए. इन सब के लिए केवल एक शिक्षक था. वह भी वी उत्तीर्ण. वेतन केवल ५०० रुपये प्रतिमाह. मैंने पूछॉं, ‘‘इतने कम वेतन में तुम्हारा गुजारा कैसे होता है?’’ उसने कहा, ‘‘मेरा सिलाई का व्यवसाय है, यह मेरी अतिरिक्त आय है.’’
एकल विद्यालय ऐसे चलते है. संघ से संबंधित वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा चलाए जाते है. इने-गिने नहीं. हजारों. केवल झारखंड में आठ हजार से अधिक एकल विद्यालय है. बच्चों को पढ़ाने के साथ ही इन एकल विद्यालयों का संपर्क हर घर से रहता है; और इस कारण वहॉं सामाजिक जीवन में भी इष्ट परिवर्तन हुआ है.
यह केवल अर्थवाद नहीं. प्रत्यक्ष अनुभव है. किसका? - तामिलनाडु में की टाटा धन ऍकेडमीका.  यह ऍकेडमी, बंगलोर के आयआयएम्मतलब इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ मॅनेजमेंटइस विख्यात संस्था से संलग्न है. इस ऍकेडमी के प्राध्यापक डॉ. व्ही. आर. शेषाद्री के नेतृत्व में, उसके विद्यार्थीयों ने कुल ५०८ एकल विद्यालयों को भेट दी. वह आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार और झारखंड इन सात राज्यों में के थे. इन विद्यालयों ने वहॉं के समाज-जीवन में क्या परिवर्तन किए, यह देखना इस निरीक्षण-प्रकल्प का हेतु था.
उन्होंने पाया कि,
) शाला अधूरी छोड़कर जाने वाले विद्यार्थीयों की संख्या कम हुई है.
) विद्यार्थीयों में अनुशासन का अहसास दिखा.
) यह एकल विद्यालय, विद्यार्थीयों को नैतिक एवं मूल्याधारित शिक्षा भी देते है, विद्यार्थीयों के वर्तन पर इसका प्रभाव दिखा.         
) इन विद्यार्थीयों के वर्तन का उनके माता-पिता और समाज पर भी इष्ट परिणाम हुआ है. आज शहरीकरण के वातावरण से, गॉंव उजड रहे है और व्यक्ति अधिकाधिक आत्मकेन्द्रित बनकर अपने पारंपरिक जीवनमूल्यों से दूर जा रहा है. जिस गॉंव में एकल विद्यालय है, वहॉं की परिस्थिति इसके विपरित है.
) औपचारिक शिक्षा के साथ खेल, कथाकथन, संगीत की शिक्षा का भी अतर्ंभाव होने के कारण, ऐसा देखा गया है कि, विद्यार्थीयों की समझ और स्मरणशक्ति भी बढ़ी है.
) पालक, अपने पाल्यों को एकल विद्यालय में भेजना, अधिक पसंद करते है, ऐसा इस अभ्यास समूह ने पाया.
) विद्यार्थीयों में देशभक्ति की भावना दिखाई दी
इस निरीक्षण के बाद बंगलोर की आयआयएम् ने, मई २०१२ को एक दिन का परिसंवाद आयोजित किया था. परिसंवाद का विषय था ‘‘एकल विद्यालयों के परिणाम के संदर्भ में समावेशक शिक्षा (इक्लुजिव् एज्युकेशन) और सामाजिक विषमता की भावना का क्षरण.’’     

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                        दक्षिण कोरिया में वैदिक गणित
श्री रवि कुमार हिन्दू स्वयंसेवक संघ के पूर्ण कालीन कार्यकर्ता है. सेवा इंटरनॅशनलइस संस्था से वे संलग्न है. २६ अप्रेल से ३० अप्रेल २०१२ तक वे दक्षिण कोरिया की राजधानी सेऊल में थे. उनकी प्रेरणा से सेऊल राष्ट्रीय विश्वविद्यालय और सुंग क्यून क्वान विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्त्वावधान में वैदिक गणित और वैदिक विज्ञानविषय पर वहॉं तीन कार्यशालाएँ आयोजित की गई थी. इन कार्यशालाओं में विश्वविद्यालय में के गणित विषय के प्राध्यापक, अधिष्ठाता, संशोधक विद्यार्थी, और पदव्युत्तर वर्ग के विद्यार्थीयों ने भाग लिया था.
इस कार्यशाला में के अनुभवों से वे इतने प्रभावित हुए कि, यह कार्यशाला और अधिक समय चलाए ऐसी विनती उन्होंने की. इन कार्यशालाओं में से निकले तीन विद्यार्थीयों ने बाद में एक मंदिर में वैदिक गणित के वर्ग लिए. श्री रवि कुमार ने सेऊल में के राधाकृष्ण मंदिर में दक्षिण पूर्व एशिया में की जनता पर हिंदूओं के प्रभाव पर सचित्र व्याख्यान भी दिए
इन भाषणों में कोरियन भाषा और तामिल भाषा में की समानता के अनेक उदाहरण उन्होंने दिए. (रवि कुमार तमिलभाषि है) उदाहरण सुनकर श्रोता आश्चर्यचकित हुए. हिंदू और कोरियनों के बीच की चालि-रीति में का साम्य भी उन्होंने अधोरेखित किया. उन्होंने एक कहानी भी बताई. माता लक्ष्मी इस भारतीय राजकुमारी ने . . ४८ में कोेरिया के राजा किम् सुरो के साथ विवाह किया था. आज के कोरियन उनकी संतान है. रवि कुमार ने कोरिया में रहने वाले भारतीयों को उपदेश किया कि, वे कोरियन जनता के साथ सतत सार्थक संपर्क बढ़ाए
इन सब कार्यक्रमों का आयोजन, डांग सेऊल विश्वविद्यालय में योग का अध्यापन करने वाले प्राध्यापक डॉ. अभिजित घोष ने किया था.     
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                        राष्ट्रीय उत्पादन की संरचना
देश के सकल राष्ट्रीय उत्पादन की गिनती उसके जीडीपी (सकल घरेलू उत्पादन) में की जाती है. कृषि क्षेत्र, उद्योग क्षेत्र और सेवा क्षेत्र यह उसके तीन भाग है. राष्ट्रीय उत्पादन की संरचना इन तीन क्षेत्रों के एकत्रित सहभाग से होती है
स्वाधीनता प्राप्ती के समय कृषिप्रधानरहने वाला यह हमारा देश अब सेवाप्रधानराष्ट्र बन गया है. राष्ट्रीय उत्पादन की संरचना में गत दशकों में हुए परिवर्तन नीचे दिए तक्ते में की आँकड़ेवारी में प्रतिबिंबित होते है

क्र.
वर्ष
कृषि-क्षेत्र%
उद्योग-क्षेत्र%
सेवा क्षेत्र%
कुल
१९५०-५१
५३.
१६.
३०.
१००
१९६०-६१
४८.
२०.
३०.०८
१००
१९७०-७१
४२.
२४.
३३.
१००
१९८०-८१
३६.
२५.
३८.
१००
१९९०-९१
२९.
२७.
४२.
१००
२०००-०१
२२.
२७.
५०.
१००
२०१०-११
१४.
२७.
५७.
१००
२०११-१२
१३.
२७.
५९.
१००

           (संदर्भ : बिझिनेस लाईन, अप्रेल २०१२)
उपरोक्त आँकडेवारी से भारतीय कृषि-क्षेत्र निरंतर पिछडता गया, यह दिखाई देता है. वास्तव में, अकाल के कुछ वर्ष छोड दे तो, कृषि-क्षेत्र ने सतत कूर्म-गति से ही सही, लेकिन प्रगति की है. अर्थात् उद्योग और सेवा क्षेत्र में हुई बडी वृद्धि के कारण कुल जीडीपी में कृषि-क्षेत्र की हिस्सेदारी कम हुई दीखती है. दीर्घकालीन आँकडेवारी के अनुसार कृषि-क्षेत्र सर्दव वृद्धि दर्शाता है. 
उद्योग-क्षेत्र में हुई वृद्धि अल्प समय में काफी चढ़ाव-उतार दर्शाने वाली है. १९५०-५१ से १९६०-६१ इस दशक में % रहनेवाली वृद्धि १९७०-७१ से १९८०-८१ के दशक में .% तक घटि है. तो १९९०-९१ से २०००-०१ इस वैश्विकरण के पहले दशक में ॠण होकर वह दशक की कालावधि में -.% दर्ज की गई है
सेवा क्षेत्र का आलेख सतत प्रगति का रहा है. उसमें भी आयटी क्षेत्र के उदय के बाद इस क्षेत्र ने हर दशक में से % वृद्धि दर्ज की है
अर्थात् सेवा क्षेत्र की आय में वृद्धि होकर उस क्षेत्र में, उस प्रमाण में रोजगार निर्माण नहीं हुआ. उसी प्रकार कृषि-क्षेत्र की आय की हिस्सेदारी कम होकर भी उसके ऊपर अवलंबित रहने वाली जनसंख्या का प्रमाण कम नहीं हुआ. इस कारण देश अमीरहुआ फिर भी बड़ी संख्या में जनता दरिद्र रेखा के नीचे ही जीवन जीते दिखाई देती है

                        (विकल्पवेध, से १५ मई के अंक से)


- मा. गो. वैद्य 
babujivaidya@gmail.com
(अनुवाद : विकास कुलकर्णी) 


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