Thursday 16 May 2013

मेरी टिप्पणी : अश्‍विनी कुमार : बलि का बकरा?

शुक्रवार दि. १० मई को, डॉ. मनमोहन सिंह सरकार के दो मंत्रियों ने त्यागपत्र दिए. उनमें से एक है कानून मंत्री अश्‍विनी कुमार, और दूसरे है रेल मंत्री पवन कुमार बन्सल. बन्सल के त्यागपत्र का कारण समझा जा सकता है. उनके भांजे पर, रेल बोर्ड में सम्मान का पद प्राप्त करने के इच्छुक महेश कुमार से ९० लाख रुपये घूस लेने का आरोप है. उच्च पद प्राप्ति और घूस की राशि के बारे का सौदा रेल मंत्री बन्सल के बंगले पर ही होने का समाचार है. 

लेकिन, कानू मंत्री अश्‍विनी कुमार ने त्यागपत्र देने का क्या कारण? कोयला खदान बटँवारा घोटाले की जाँच करनेवाली सीबीआय इस स्वायत्त संस्था ने, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की परवाह न कर, अपनी रिपोर्ट, न्यायालय में प्रस्तुत करने के पूर्व; अश्‍विनी कुमार को दिखाई; और उसमें कानून मंत्री ने कुछ बदल किए. यह आरोप गंभीर नहीं, ऐसा नहीं. इसके लिए अश्‍विनी कुमार ने अपनी गलती मानकर पदत्याग करना योग्य ही था. लेकिन त्यागपत्र देने के बाद भी वे कहते है कि, मैं निर्दौष हूँ. इसका अर्थ यह की, उन्होंने स्वयं त्यागपत्र नहीं दिया. किसी के दबाव में त्यागपत्र दिया है.           


इस संदर्भ में कुछ प्रश्‍न निर्माण होते है. पहला यह कि, अश्‍विनी कुमार ने सीबीआय के अधिकारी को, रिपोर्ट लेकर अपने पास बुलाने का क्या कारण था? उस रिपोर्ट में उनका नाम होने की संभावना तो थी ही नहीं. कारण कोयला खदान बटँवारा घोटाला हुआ, तब वे मंत्री नहीं थे. इस कारण, उनके पास वह या अन्य कोई विभाग होने की संभावना ही नहीं थी. फिर उन्हें उस रिपोर्ट के बारे में उत्सुकता होने का क्या कारण? 


दूसरा प्रश्‍न यह कि, सीबीआय के अधिकारी को अपने पास बुलाते समय प्रधानमंत्री कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी को भी बुलाने का क्या कारण? उसी अधिकारी को अश्‍विनी कुमार ने क्यों बुलाया? उसका चुनाव किसने किया? निश्‍चित ही वह प्रधानमंत्री ने ही किया होगा या प्रधानमंत्री के विभाग में हस्तक्षेप करने की आदात रहे अन्य किसे ने किया होगा. ऐसा समाचार प्रकाशित हुआ है कि, डॉ. मनमोहन सिंह, अश्‍विनी कुमार का त्यागपत्र मांगने के लिए तैयार नहीं थे. इस मामले में अश्‍विनी कुमार का आरोपित हस्तक्षेपस्पष्ट दिखाई देते हुए और संसद में विपक्ष ने उनके त्यागपत्र के लिए हंगामा करने के बाद भी, प्रधानमंत्री, कानून मंत्री के समर्थन में खडे रहे थे. संसद का यह अधिवेशन संस्थगित होने के बाद केवल दो दिन में, ऐसा क्या हुआ कि अश्‍विनी कुमार को त्यागपत्र देने के लिए बाध्य किया गया?

 
प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों की उपस्थिति की आवश्यकता कानून मंत्री को क्यों महसूस हुई? वह अधिकारी कानून का विशेषज्ञ तो था नहीं; और कानून मंत्री को कानून का पर्याप्त ज्ञान है. फिर उन्होंने यह बेकायदा कृति क्यों की? इस प्रश्‍न का उत्तर खोजते समय, अपरिहार्य रूप से संदेह की सुई, प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की ओर मुडती है. वह प्रचंड घोटाला हुआ, उस समय कोयला खदान बटँवारे का विभाग उन्ही के पास था. इस कारण त्यागपत्र, उन्होंने ही देना चाहिए था. अपनी चमडी बचाने के लिए कानून मंत्री की बलि देना, कभी भी समर्थनीय नहीं होगा. और मनमोहन सिंह ऐसा क्यों करेगे?


भूतपूर्व दूरसंचार मंत्री श्री राजा ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि, 2 जी स्पैक्ट्रम बटँवारा करते समय, उन्होंने प्रधानमंत्री के साथ विचारविनिमय किया था. लेकिन यह स्पष्ट नहीं होता कि उन्होंने विचारविनिमय प्रत्यक्ष प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के साथ किया था, या उनके अंतर्गत काम करनेवाले उनके विभाग के किसी अधिकारी के साथ किया था? यह वही तो अधिकारी नहीं, जिसे अश्‍विनी कुमार ने बुलाया था?


और एक समाचार ऐसा भी प्रकाशित हुआ है कि, काँग्रेस पार्टी की सर्वेसर्वा श्रीमती सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहगार अहमद पटेल के निर्देश पर कोयला खदानों का बटँवारा हुआ. यह समाचार सच होगा तो संदेह की सुई श्रीमती सोनिया गांधी की ओर मुडती है; और जब तक डॉ. मनमोहन सिंह इस बारे में अपना मौनव्रत नहीं तोडते, तब तक इसका खुलासा होना संभव नहीं.

तथापि, इतना सच है कि, कानून मंत्री अश्‍विनी कुमार के हाथों औचित्य-भंग हुआ है. वह उन्होंने किसके कहने से किया, यह वे जब तक नहीं बताते, तब तक इस बारे में समाचार चलते ही रहेगे; और लोग यही समझेंगे कि, किसी को बचाने के लिए अश्‍विनी कुमार की बलि ली गई है.
मा. गो. वैद्य
नागपुर,
दि. १३-०५-२०१३

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