गत जून माह में राजस्थान के पुष्कर इस पवित्र क्षेत्र में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (मुरामं) का तीन दिनों का शिबिर संपन्न हुआ.
इस शिबिर का उद्घाटन पूर्व सरसंघचालक श्री सुदर्शन जी के हस्ते हुआ. उन्होंने अपने भाषण में कहा,
‘‘भारतीय मुसलमान बाहर से नहीं आये है. वे इसी देश के है; और हिंदुओं के समान ही वे भी यहॉं के राष्ट्रीय जीवन के अभिन्न घटक है.’’
सुदर्शन जी ने आगे कहा कि, ‘‘इस देश में रहने वाले सब हिंदू है.’’ उन्होंने जामा मस्जिद के इमाम के साथ घटित प्रसंग बताया. इमाम जब हज यात्रा को गए थे, तब उन्हें एक स्थान पर अपना परिचय देना पड़ा. उन्होंने बताया,
मैं हिंदुस्थान से आया हूँ. रेकॉर्ड में उन्हें हिंदू दर्ज किया गया. इसलिए,
सुदर्शन ने बताया,
‘‘हम सब हिंदू है और हमारा देश हिंदुस्थान है.’’
कार्यक्रम में मंच पर ‘मुरामं’ के राष्ट्रीय संयोजक महंमद अफजल,
सहसंयोजक और शिबिर के प्रमुख अब्बास अली बोहरा,
छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष सलीम अश्रफी और पूर्व राष्ट्रीय संयोजक सलाबत खान उपस्थित थे.
राष्ट्रीय संयोजक महंमद अफजल ने अपने भाषण में कहा,
‘‘१८५७ के स्वाधीनता संग्राम में हिंदू और मुसलमान एक थे. लेकिन ब्रिटिशों ने,
उनमें फूट ड़ाली. स्वाधीनता के बाद कॉंग्रेस पार्टी ने,
मुसलमानों को केवल एक व्होट बँक बना दिया.’’ उन्होंने,
जम्मू-कश्मीर की रियासत भारत में विलीन करने के लिए, संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी ने, महाराज हरिसिंग को कैसे मनाया,
यह भी स्पष्ट किया. उन्होंने मुस्लिम बंधुओं को आवाहन किया कि कॉंग्रेस की चाल पहचानों,
केवल एक व्होट बँक के रूप में अपना अस्तित्व कायम रखने से सावधान रहो.
इस्लाम शांति का धर्म है और इस्लाम में आतंकवाद को कोई स्थान नहीं,
यह उन्होंने जोर देकर बताया. दारूल-उलूम-देवबंद ने आतंकवाद के विरुद्ध जो फतवा निकाला है, उसके पीछे ‘मुरामं’ की भूमिका का प्रभाव है,
ऐसा उन्होंने कहा.
उन्होंने आगे कहा, ‘‘सब प्रकार के खतरे उठाकर ‘रामुमं’ने श्रीनगर में तिरंगा फहराया था और वहॉं ‘वंदे मातरम्’ गाया था. अमरनाथ की यात्रा में भी हमने भाग लिया और १० लाख मुस्लिमों के स्वाक्षरीयों के साथ गोहत्या बंदी की मॉंग का निवेदन राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया.’’
उन्होंने आगे कहा, ‘‘सब प्रकार के खतरे उठाकर ‘रामुमं’ने श्रीनगर में तिरंगा फहराया था और वहॉं ‘वंदे मातरम्’ गाया था. अमरनाथ की यात्रा में भी हमने भाग लिया और १० लाख मुस्लिमों के स्वाक्षरीयों के साथ गोहत्या बंदी की मॉंग का निवेदन राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया.’’
सरसंघचालक श्री मोहन जी भागवत के एक विधान का उल्लेख कर उन्होंने कहा,
‘‘भारत का भावी प्रधानमंत्री रा. स्व. संघ का स्वयंसेवक होना चाहिए.’’ इसका उपस्थितों ने तालियों से स्वागत किया.
शिबिर में मंच के एक मार्गदर्शक श्री इंद्रेश कुमार जी का भी भाषण हुआ. उन्होंने जानकारी दी कि ‘रामुमं’ एक रक्तपेढी (ब्लड बँक) स्थापन करने जा रहा है. राजस्थान के संयोजक डॉ. मुन्नावर चौधरी ने प्रास्ताविक और राष्ट्रीय सहसंयोजक अबु बकर नकवी ने संचालन किया. तीन दिनों के इस शिबिर में २५ राज्यों में से २०० प्रतिनिधि आये थे.
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जिब्रान का ‘वो देश’
खलिल जिब्रान लेबॅनॉन देश का लेखक. इ. स. १८८३ में उसका जन्म हुआ;
और १९३१ में उसकी मृत्यु हुई. ४८ वर्ष की अल्पायु में उसने अनेक पुस्तकें लिखी. उनमें से अधिकांश का विश्व की प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हुआ है. उसकी मर्मज्ञता, प्रतिभा और संक्षिप्त में सखोल आशय व्यक्त करने की शैली असामान्य है.
जिब्रान की कहानियों में एक पात्र- अल मुस्तफा ‘वो देश’
कैसा है इसका वर्णन कर रहा है. वह वर्णन हमारे देश को भी या ये कहें सब देशों को कैसे लागू होता है,
यह देखने लायक है. जिब्रान लिखता है -
‘‘वो देश दयनीय है, जो निर्दयी मनुष्य को शूरवीर समझता है और घमण्ड़ दिखानेवाले को उदार समझता है.’’
‘‘वो देश दयनीय है, जो स्वयं बनाए कपड़े परिधान नहीं करता और अपने देश में बनी मदिरा नहीं पीता.’’
‘‘वो देश दयनीय है, जो स्वप्न में विशिष्ट इच्छा का तिरस्कार करता है और जागृति में उसी इच्छा के स्वाधीन रहता है.’’
‘‘वो देश दयनीय है, जो शवयात्रा के अलावा अन्य समय अपनी आवाज नहीं उठाता, अपने इतिहास के प्राचीन अवशेषों के अलावा अभिमान करने जैसी कोई भी वस्तु जिसके पास नहीं, जो गर्दन पर तलवार का आघात होने की नौबत आए बिना कभी विद्रोह नहीं करता.’’
‘‘वो देश दयनीय है, जिसकी राजनीतिज्ञ एक लोमड़ी है,
जिसका तत्त्वज्ञ एक जादुगर है और जिसकी कला बहुरूपिये के स्वांग से आगे नहीं गई है.’’
‘‘वो देश दयनीय है, जो अपने नए राजा का धूमधाम से स्वागत करता है और तुरंत ही उसकी अवहेलना कर उसको बिदा करता है- इसलिए कि नए राजा का धूमधाम से स्वागत करने की व्यवस्था हो.’’
‘‘वो देश दयनीय है, जिसके महान् पुरुष अनेक वर्षों से गूंगे हैं और जिनके शूरवीर अभी पालने में सोए हैं.’’
‘‘वो देश दयनीय है, जो अनेक टुकड़ों में बँटा है और हर टुकड़ा स्वयं को संपूर्ण देश समझता है’’
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राम का डाक टिकट
इंडोनेशिया में १९६२ में रामायण पर आधारित ६ डाक टिकटों की एक मालिका निकाली गई. १० रुपयों के टिकट पर राम,
तो ३० रुपये के टिकट पर राम,
सीता और सुवर्णमृग के चित्र थे. इंडोनेशिया मुस्लिमबहुल देश है. वहॉं मुसलमानों की संख्या ८६ प्रतिशत से अधिक है;
और हिंदू है करीब २ प्रतिशत. राम और रामायण के बारे में उस देश को आत्यंतिक प्रेम और आदर है.
इंडोनेशिया के समान ही दक्षिण-पूर्व एशिया में म्यांमार और व्हिएतनाम के बीच लाओस नाम का देश है. यह कम्युनिस्ट देश है. लेकिन उस देश ने भी अनेक बार राम और उससे संबंधित व्यक्तियों पर डाक टिकट निकाले हैं. यह बौद्धों का देश है. ९४ प्रतिशत जनसंख्या बौद्ध है. उसने १९७३ में रामायणाधारित ८ डाक टिकट प्रकाशित किए और १९९६ में और ४.
हमारे भारत के बारे में न पूछें. इस दुर्भाग्यशाली देश की सरकार ने राम का ऐतिहासिक अस्तित्व ही नकारा है.
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सेंट मेरी चर्च में ‘हिंदू दिवस’
इंग्लैंड के नैर्ऋत्य में सेंट मेरी चर्च है. इस चर्च द्वारा,
ब्रिडपोर्ट गॉंव में एक प्राथमिक शाला चलाई जाती है. उस शाला ने २०१२ के मई माह में, एक दिन ‘हिंदू दिवस’
मनाया. सब बच्चें हिंदू वेषभूषा में आये थे. उन बच्चों ने हिंदू पद्धति से संपन्न हुआ विवाह समारोह देखा;
और हिंदू पद्धति के नृत्य का प्रदर्शन भी किया.
शाला की वेबसाईट पर कहा है कि,
बच्चों में हिंदू धर्म के बारे में अधिक जानने की इच्छा निर्माण हुई है. बच्चों की आध्यात्मिक उन्नति हो,
ऐसी शाला के संचालकों की इच्छा है. उस दृष्टि से हिंदू धर्म के बारे में विद्यार्थीयों को जानकारी दी जाती है.
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अंतरिक्ष में उपनिषद
सुनीता विल्यम्स यह भारतीय मूल की धाडसी महिला दुनिया में सुपरिचित है. गत १४ जुलाई को वह अंतरिक्ष में गई है. उसकी यह अंतरिक्ष यात्रा ६ माह चलेगी. इस दीर्घ यात्रा में पढ़ने के लिए वह कौनसी पुस्तके ले गई है?
सब पुस्तकों की सूची तो उपलब्ध नहीं. लेकिन उन पुस्तकों में उपनिषद है. उसके पिता दीपक पंड्या ने ही उसके साथ उपनिषदों का अंग्रेजी अनुवाद दिया है. श्री पंड्या कहते है,
‘‘इस पृथ्वी से वह जितनी अधिक ऊँचाई पर जाएगी,
उतना ही उसे अपने भारतीय मूल का ज्ञान होगा.’’ वे आगे बताते है, ‘‘पिछली बार की उसकी अंतरिक्ष यात्रा में मैंने उसके साथ भगवद्गीता दी थी. उसने वह पढ़ी. वापस आने के बाद भगवद्गीता के बारे में उसने मुझे अनेक प्रश्न पूछें. उसे उन सब प्रश्नों के उत्तर निश्चित ही उपनिषद में मिलेंगे.’’
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दिव्यराज की मानवसेवा
उसे सब कुमार नाम से जानते है. वह कोई काम नहीं करता. भटकता रहता है. रेल के प्लॅटफार्म पर सोता है. कोई जो कुछ देता है, उसी से गुजारा करता है. वह तिरुपुर गॉंव का निवासी है. यह गॉंव तमिलनाडु में है.
एक दिन अनोखी घटना हुई. वह रास्ते के किनारे लेटा था. उसी समय, एक कार आकर उसके पास रुकी. उसमें से कुछ लोग उतरे. उनके हाथों में कैची और कंघी थी. उन्होंने कुमार को अच्छी तरह से बिठाकर,
तरीके से उसके बाल काटे. दाढी भी बनाई. उसे एक नया कुर्ता और खाने के लिए कुछ अन्न दिया,
फिर चले गए.
किसका था यह अनोखा उपक्रम. उस व्यक्ति का नाम है एन. दिव्यराज. वह ‘हेअर स्टायलिस्ट’ है. वह ‘न्यू दिव्या हेअर आर्टस ट्रस्ट’
नाम की संस्था चलाता है. इस संस्था में उसके कुछ मित्र और उसके घर के लोग भी उसे मदद करते हैं. जो मानसिक या शारीरिक दृष्टी से अपंग है,
दरिद्र भिकारी है,
उनके चेहरों को दिव्यराज का यह ट्रस्ट नया, सुंदर रूप देता है. गत चार वर्षों से यह उपक्रम चल रहा है.
दिव्यराज के साथ १२ लोग काम करते हैं. वे ऐसे लोगों की खोज करते रहते है. उनके एक दिन के भोजन की व्यवस्था भी करते है. तीन माह में एक बार वे तिरुपुर के बाहर जाकर सेवा देते है. इस उपक्रम में उन्होंने दिंडीगल, त्रिचनापल्ली,
इरोड, नामकल्ल और करूर इन गॉंवों को भेट दी है. ९४४२३७२६११ इस मोबाईल क्रमांक पर कोई भी उनसे संपर्क कर सकता है.
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‘मोरगॉंव’
मध्य प्रदेश में नीमच नाम का एक जिला है. उस जिले में बासनियां नाम का एक छोटा गॉंव है. गॉंव की जनसंख्या है केवल ४००. लेकिन गॉंव में मोरों की संख्या इससे दुगुनी मतलब ८०० है. यह बासनियां सही अर्थ में ‘मोरगॉंव’ बन गया है.
अरवली पर्वत की तलहटी में बसे इस गॉंव के लोगों का पशु-पक्षियों के साथ बहुत ही प्रेम का रिश्ता कायम हुआ है. गॉंव में सर्वत्र मोर दिखाई देंगे. खेतों में,
रास्ते पर और घरों के छत पर भी!
मोर और मनुष्यों के बीच ऐसे प्रेमसंबंध निर्माण हुए है कि,
मनुष्यों को देखकर मोर भागते नहीं. दौड़कर उनके पास आते हैं. उन्हें विश्वास है कि,
मनुष्यों से उन्हें खतरा नहीं है.
(‘संस्कारवान’ मासिक, जुलाई २०१२ से)
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वेद सब के हैं
वेद सब के हैं और संन्यास कोई भी ले सकता है,
यह आद्य शंकराचार्य ने स्थापन किए चार मठों में से एक - शृंगेरी - मठ ने दिखा दिया है. दलित के घर में पैदा हुए,
शिवानंद नाम के व्यक्ति को वहॉं संन्यास की दीक्षा दी गई है, वह वहॉं आजन्म ब्रह्मचारी रहने वाला है. अर्थात् उसका उपनयन संस्कार हुआ है,
उसने वेदोपनिषदों का भी अध्ययन किया है.
- मा. गो. वैद्य
babujivaidya@gmail.com
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