Sunday 11 November 2012

भाजपा की अ-स्वस्थता


भाजपा में अ-स्वस्थता है. भाजपा की आलोचना करने के लिए या उस पार्टी की निंदा करने के लिए मैं यह नहीं कहता. भाजपा का स्वास्थ्य ठीक नहीं दिखता, ऐसा मुझे लगता है. उस पार्टी का स्वास्थ्य अच्छा रहे, उसकी एकजूट बनी रहे, उसके कार्यकर्ता और मुख्यत: नेता, अपनी ही पार्टी को कमजोर न बनाए, इस इच्छा से मैं यह कह रहा हूँ; और ऐसी इच्छा रखने वाला मैं अकेला ही नहीं. भाजपा के बारे में सहानुभूति रखने वाले, २०१४ के लोकसभा चुनाव में भाजपा अग्रेसरत्व प्राप्त करें ऐसी इच्छा रखने वाले असंख्य लोगों को ऐसा लगता है. विशेष यह कि ऐसी इच्छा रखने वालों में जो भाजपा में सक्रिय है, छोटे-बड़े पदों पर हैं, उनकी भी ऐसी ही इच्छा है.

अकालिक और अप्रस्तुत
इस कारण, राम जेठमलानी ने जो सार्वजनिक वक्तव्य किया है, उस बारे में खेद होता है. नीतीन गडकरी त्यागपत्र दे, ऐसी भाजपा के किसी कार्यकर्ता या सांसद की भावना हो सकती है. ऐसी भावना होने में अनुचित कुछ भी नहीं. लेकिन यह मुद्दा वे पार्टी के स्तर पर उठाना चाहिए. वैसे भी गडकरी की अध्यक्ष पद की कालावधि दिसंबर में मतलब महिना-डेढ माह बाद समाप्त हो रही है. पार्टी ने, अपने संविधान में संशोधन कर, लगातार दो बार एक ही व्यक्ति उस पद पर रह सकती है, ऐसा निश्‍चित किया है. इस कारण, गडकरी पुन: तीन वर्ष उस पद पर रह सकते है. लेकिन यह हुई संभावना. उन्हेंे उस पद पर आने देना या नहीं, यह पार्टी तय करे. जेठमलानी ने जिस समय कहा है कि गडकरी तुरंत त्यागपत्र दे, उसी समय, मोदी को प्रधानमंत्री बनाए, ऐसा भी उन्होंने बताया है. उन्हें यह बताने का भी अधिकार है. लेकिन २०१४ में प्रधानमंत्री कौन हो, इसकी चर्चा २०१२ में करना अकालिक है, अप्रस्तुत है, ऐसा मैंने इसी स्तंभ में लिखा है.

एक ही व्यक्ति के एक ही वक्तव्य में, गडकरी जाए और मोदी को प्रधानमंत्री करें, ऐसा उल्लेख आने के कारण, गडकरी विरोधी षड्यंत्र का केन्द्र गुजरात में है, ऐसा संदेह मन में आना स्वाभाविक है और गुजरात कहने के बाद, फिर संदेह की उंगली नरेन्द्र मोदी की ओर ही मुडेगी. प्रधानमंत्री बने ऐसी ऐसी इच्छा मोदी ने रखने में कुछ भी अनुचित नहीं. राजनीति के मुख्य प्रवाह में रहने वाले व्यक्ति की उच्च पद पर जाने की महत्त्वाकांक्षा होना अस्वाभाविक नहीं. समाचारपत्रों में प्रकाशित समाचारों से स्पष्ट होता है कि, लालकृष्ण अडवाणी ने स्वयं को इस स्पर्धा से दूर रखा है. नीतीन गडकरी ने भी पहले ही कहा है कि, मैं इस स्पर्धा में नहीं हूँ. लेकिन इस संदर्भ में नरेन्द्र मोदी के बारे में प्रसार माध्यमों में बहुत समाचार चलते रहते हैं. नरेन्द्र मोदी ने इन समाचारों का खंडन किया है, ऐसा कहीं दिखा नहीं. इससे मोदी को प्रधानमंत्री बनने में रस है, उनकी वैसी आकांक्षा है, ऐसा अर्थ कोई निकालता है तो उसे दोष नहीं दे सकते.   

अकालिक चर्चा
लेकिन, निश्‍चित कौन प्रधानमंत्री बनेगा, यह तय करने का समय अभी आया नहीं. वस्तुत: चुनकर आए सांसद अपना नेता चुनते है. जिस पार्टी या पार्टी ने समर्थन दिये गठबंधन का लोकसभा में बहुमत होगा, उसके नेता को राष्ट्रपति प्रधानमंत्री पद की शपथ देंगे. यह सच है कि, कुछ पार्टिंयॉं चुनाव के पहले ही अपना प्र्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार निश्‍चित कर उसके नेतृत्व में चुनाव लड़ती है. भाजपा ने भी इसी प्रकार से चुनाव लड़े थें. उस समय, पार्टी ने अटलबिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार निश्‍चित किया था. १९९६, १९९८ और १९९९ के तीनों लोकसभा के चुनाव भाजपा ने अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में लड़े थे. लेकिन यह सौभाग्य नरेन्द्र मोदी को भी प्राप्त होगा, ऐसे संकेत आज दिखाई नहीं देते. मेरी अल्पमतिनुसार, २०१३ के विधानसभाओं के चुनाव हुए बिना, भाजपा अपनी रणनीति निश्‍चित नहीं करेगी. फिर उसे प्रकट करना तो दूर की बात है. २०१३ में जिन राज्यों में विधानसभाओं के चुनाव हो रहे है, उनमें से अधिकांश राज्यों में भाजपा का अच्छाप्रभाव है. दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, कर्नाटक ये वेे राज्य है. इनमें से तीन राज्यों में भाजपा की सरकारें है. दिल्ली और राजस्थान में भाजपा की सरकारें नहीं है, लेकिन इन दोनों ही स्थानों पर भाजपा की सरकारें आने जैसी स्थिति है. हाल ही संपन्न हुई दिल्ली राज्य में की महानगर पालिका के चुनाव में भाजपा ने कॉंग्रेस को पराभूत कर वहॉं की महापालिकाएँ अपने कब्जे में ली. भाजपा की २०१४ के लोकसभा के चुनाव की रणनीति २०१३ के विधानसभाओं के चुनाव परिणाम आने के बाद ही निश्‍चित होने की संभावना अधिक है.

उचित कदम
राम जेठमलानी के वक्तव्य के बाद उनके पुत्र महेश जेठमलानी ने पार्टी में के अपने पद से त्यागपत्र दिया है. वे भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य थे. अपने त्यागपत्र में वे कहते है कि, ‘‘भ्रष्टाचार के आरोपों का कलंक लगे अध्यक्ष के नीचे मैं काम नहीं कर सकूंगा. वह मुझे बौद्धिक और नैतिक इन दोनों दृष्टि से अनुचित लगता है.’’ महेश जेठमलानी ने जो मार्ग अपनाया वह मुझे योग्य लगता है. राम जेठमलानी ने भी उसी मार्ग का अनुसरण कर अपनी राज्यसभा की सदस्यता त्यागना उचित सिद्ध होगा. राम जेठमलानी ने कहा है कि, यशवंत सिन्हा, जसवंत सिंह और शत्रुघ्न सिन्हा का मत भी मेरे ही मत के समान है. उन्होंने भी पार्टी के पद छोड़ने का निर्णय लेना योग्य होगा. जिस पार्टी के सर्वोच्च पद पर कलंकितव्यक्ति होगी, उस पार्टी में कोई सयाना मनुष्य संतुष्ट कैसे रहेगा?

पार्टी का समर्थन
एक व्यक्ति ने और प्रसारमाध्यमों की एक टीम ने मुझे प्रश्‍न किया कि, राम जेठमलानी का वक्तव्य कितनी गंभीरता से ले. मैंने कहा, बहुत गंभीरता से लेने की आवश्यकता नहीं. उनके वक्तव्य की उपेक्षा करना ही योग्य होगा. विचार करें, भाजपा कोबढाने और उसके शक्तिसंपादन में जेठमलानी का कितना योगदान है? इसके अलावा, अनेक विषयों पर के उनके मत पार्टी के मतों से मेल नहीं खाते. जैसे कश्मीर प्रश्‍न के बारे में या प्रभु रामचन्द्र के बारे में. श्रीराम इतने बुरे होते तो जेठमलानी के माता-पिता ने उनका नाम रामक्यों रखा होता? खैर, वह एक स्वतंत्र विषय है. उसकी यहॉं चर्चा अप्रस्तुत है. हॉं, इतना सच है कि, जेठमलानी पिता-पुत्र के वक्तव्यों ने खलबली मचा दी. गडकरी के सौभाग्य से, पार्टी उनके समर्थन में खड़ी रही.

भाजपा के वरिष्ठ स्तर के अंतरंग नेताओं (कोअर ग्रुप) की दिल्ली में एक बैठक हुई. उस बैठक ने श्री गडकरी के नेतृत्व पर पूर्ण विश्‍वास व्यक्त किया. उस बैठक में जेठमलानी पिता-पुत्र के रहने की संभावना नहीं. लेकिन यशवंत सिन्हा और जसवंत सिंह अपेक्षित होंगे. वे उपस्थित थे या नहीं, इस बारे में पता नहीं चला. अडवाणी अनुपस्थित थे. औचित्य का विचार करे तो, उन्होंने उपस्थित रहना आवश्यक था, ऐसा मुझे लगता है. इस बैठक में भी सब ने अपने मत रखे होंगे. लेकिन जो निर्णय हुआ, फिर वह बहुमत से हुआ हो, अथवा एकमत से, वह सब का ही निर्णय साबित होता है. इस बैठक की विशेषता यह है कि, गडकरी उस बैठक में नहीं थे. उन्होंने योग्य निर्णय लिया ऐसा ही कोई भी कहेगा. इस कारण, उस बैठक में खुलकर चर्चा हुई होगी.

प्रश्‍न कायम
जेठमलानी की मॉंग के अनुसार गडकरी त्वरित त्यागपत्र नहीं देंगे, यह अब स्पष्ट हो चुका है. लेकिन वे पुन: दूसरी बार अध्यक्ष बनेंगे या नहीं, यह प्रश्‍न कायम है. उस संबंध में पार्टी ही निर्णय लेगी. उनके विरुद्ध लगे आरोपों की सरकार द्वारा जॉंच की जा रही है. एक जॉंच, कंपनी विभाग कीओर से तो दूसरी आयकर विभाग की ओर से हो रही है. गडकरी हिंमत से इस जॉंच का सामना कर रहे हैं. रॉबर्ट वढेरा के समान उन्होंने पीठ नहीं दिखाई. इस जॉंच केक्या निष्कर्ष आते है, इस पर उनकी अध्यक्ष पद की दूसरी पारी निर्भर रह सकती है. आगामी डेढ माह में इस जॉंच समिति की रिपोर्ट आएगी या नहीं, यह बता नहीं सकते. चेन्नई से प्रकाशित होने वाले हिंदूदैनिक के संवाद्दाता ने आयकर विभाग के प्राथमिक रिपोर्ट की उनके समाचारपत्र में प्रकाशित हुए समाचार की प्रति मुझे दी. इसका अर्थ आयकर विभाग ने समाचारपत्रों को समाचार देना शुरु किया है, ऐसा अंदाज लगाया जा सकता है. मेरे मत से यह अयोग्य है. उस समाचार में ऐसा कहा है कि, गडकरी ने स्थापन की पूर्ति कंपनी में जिन कंपनियों ने पैसा लगाया है, उनके व्यवहार में कुछ अनियमितता है.

इस रिपोर्ट को सही माना, तो भी वह उन कंपनियों का प्रश्‍न है. मेरा अंदाज है कि, गडकरी को पुन: अध्यक्ष पद न मिले, इसलिए विरोधी पार्टिंयों के लोग जिस प्रकार सक्रिय है, वैसे ही भाजपा में के भी कुछ लोग सहभागी है. विरोधी पार्टिंयॉं और मुख्यत: कॉंग्रेस को, गडकरी भ्रष्टाचारी है, यह दिखाने में इसलिए दिलचस्पी है कि, ऐसा कर उन्हें भाजपा भी उनकी ही पार्टी के समान भ्रष्टाचार में सनी पार्टी है, यह लोगों के गले उतारना है. जिससे २०१४ के लोकसभा के चुनाव में, भाजपा की ओर से कॉंग्रेस के भ्रष्टाचारी चरित्र की जैसी चिरफाड की जाने की संभावना है, उसकी हवा निकल जाय. पार्टी के अंदर जो विरोध है, उसका केन्द्र, ऊपर उल्लेख कियेनुसार गुजरात में है. नरेन्द्र मोदी को लगता होगा कि गडकरी पार्टी अध्यक्ष होगे, तो उनकी प्रधानमंत्री बनने की महत्त्वाकांक्षा पूरी नहीं होगी. वे यह भी दिखाना चाहते होगे कि, संजय जोशी के मामले में जैसा वे गडकरी को झुका सके, उसी प्रकार इस बारे में भी उन्हें हतप्रभ कर सकते है. अर्थात् यह सब अंदाज है. वह गलतफहमी या पूर्वग्रह से भी उत्पन्न हुए हो सकते है. लेकिन यह संदेह भाजपा के सामान्य कार्यकर्ता के मन में है, यह सच है. हमारी इच्छा इतनी ही है कि, व्यक्ति महत्त्व की नहीं, होनी भी नहीं चाहिए, लेकिन महत्त्व की होनी चाहिए हमारी संस्था, हमारा संगठन, हमारी पार्टी. भाजपा एक सियासी पार्टी है. वह एकजूट है, वह एकरस है, उसके नेताओं के बीच परस्पर सद्भाव है, उनके बीच मत्सर नहीं, ऐसा चित्र निर्माण होना चाहिए, ऐसी भाजपा के असंख्य कार्यकर्ताओं की और सहानुभूति धारकों की भी अपेक्षा है. इसमें ही पार्टी की भलाई है; और उसके वर्धिष्णुता का भरोसा भी है. क्या भाजपा के नेता यह अपेक्षा पूरी करेंगे? भाजपा का आरोग्य ठीक है, ऐसा वे दर्शाएंगे? आनेवाला समय ही इन प्रश्‍नों के सही उत्तर दे सकेगा.


- मा. गो. वैद्य
अनुवाद : विकास कुळकर्णी
babujivaidya@gmail.com

                                           

5 comments:

  1. Bahut Sahi kahaa aapane. Modi ji kuchh bhi kara sakate hai.

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  2. How much Congress did pay you to write this?

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  3. Koi party kitna bhi gir jaaye par rasatal par sirf congress hi nazar aati hai.....gali ka kutta bhi mujhe rahul gandhi se accha vikalp prastut hota hai...

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  4. माननीय एम.जी.वैद्य जी को ज्ञानेश कुमार का नमस्कार
    श्री मान जी
    जो बाते आपने इस ब्लाग में कहीं है लगभग सभी पर स्वयं सेवक आपकी बातों से सहमत हैं सभी के दिलों में भाजपा वालों की यह बिना मतलब की खीचमतान से पहले भी कांग्रेस ने फायदा उठाया है।सामान्य जनता जो आपके सारे सिद्धांतो को सही मानती है वह भी केवल आपकी आपसी लड़ाई के कारण आपसे परेशान ही है और वह आपको लड़ाई का सर्वश्रेष्ठ प्रतिद्वंदी न मानकर अपने आपको बाँट देती है।मैरी यह भी समझ नही आता कि जब आप 2 से 198 तक की गिनती स्वयं अपनी ताकत या केवल हिन्दु ताकत पर प्राप्त कर गये थे तो फिर इतनी जल्दवाजी सरकार वनाने में क्यों दिखानी पड़ी कि आपको अपने ही मुद्दों को ठण्डे वस्ते में डाल देनी पड़ा।और सामान्य हिन्दु जनता की आशाओं पर पानी फेर दिया उसके बाद का हाल आप सभी जानते है कि हमेंशा से आपकी ताकत कम से कमतर ही होती जा रही है और भाजपा वाले हैं कि न तो इनकी आपस की लड़ाई ही कम हो रही है और न ही मुसलमानों के वोटों का लालच।जवकि मुस्लिम बोट कदापि आपको मिले सम्भव नही दिखता।ऊपर से हमारे नेता कुछ भी विना सोचे समझे वोल रहै हैं जिन्ना पर चाहैं आडवाणी जी विल्कुल ठीक ही क्यों न बोले हों किन्तु भारत के खिलाफ दुश्मन पैदा करके जिन्ना किसी भी सूरत में भारत के लोगों के लिए गद्दार ही रहेगा।फिर भी हमारे नेतृत्वकारी लोगों ने पता नही एसा वक्तव्य क्यों दिया।उसी प्रकार ताजा वाकया गडकरी जी का विवेकानन्द वक्तव्य है फिर राम जेठमलानी के वेवकूफी भरे वक्तव्य वे विना पूछे ही राम के चरित्र का चित्रण कर रहे थे।अब चाहै आपने विल्कुल सही ही क्यों न कहा हो किन्तु यह चर्चा का विषय जरुर वन गया है।वैसे मै भी यही मानता हूँ कि मोदी जी विकास पुरुष हैं और लगभग सम्पूर्ण समाज में उनकी स्वीकृति भी है औऱ लगभग भारत का 70 प्रतिशत युवा यही चाहता है कि अगले प्रधानमंत्री मोदी ही हो तो पार्टी हित ,देश हित आदि को ध्यान में रखते हुये कृपया एक बार मेरी बातो को ध्यान देते हुये चिन्तन करें वैसे में तो आपका बच्चा ही हूँ।और न ही आपसे कभी ज्यादा जान ही सकूँगा।मै तो केवल युवा भावनाओ को आप तक पहुँचा रहा हूँ जिससे आपको निर्णय लेने में सहयोग मिल सके।भारतीय जनता पार्टी को अपने पैरो पर ही खड़े होकर चुनाव लड़ना चाहिये चाहै हमे कम ही पर संतोष क्यों न करना पड़ै वैसे एसा होगा नही क्योंकि यह अन्य पार्टिंया तो हमें हमारे मार्ग से भटकाती ही हैं। आपका
    ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय

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  5. Undoubtedly, as a free thinker and ideologue of Hinduva i.e. Indianism,Sri MG Vaidya is entitled to express his feeligs about the existing state of affairs in BJP and RSS.However, it is sad to note that both, RSS and BJP have acted in quite unexpected haste to say that the views expressed by him are his own and personal.They took no time to chew (forget about swallowing and digesting)the subject.That Vaidyaji has some personal and own views must be a news for those who know him.The entire hardware and software of his whole life has been based on the original and pure RSS doctrines.His thoughts expressed in his blog deserved serious attention of RSS and BJP before calling them as his personal views.This very trend of terming a certain comment as personal seems to be based on certain alibi borrowed from some foreign source.It is really the bad health of BJP and RSS that shot the statement that MG Vaidya's views were his own, and they had nothing to do with RSS/BJP.His views may have far reaching consequences in the overall functioning of BJP.What are the factors that made Vaidyaji brood as he did? Why Nitin Gadkari chooses to stick to his chair, purely in a modern Cogress style, in spite of the charges and his foolish I.Q.-comment? Why the managers of the Sangh Srushti do not let him choose some other field of working after leaving BJP? Why certain elemets in RSS / BJP are believed to be against Narendra Modi's acceptability as Prime Ministerial candidate, inspite of the fact that, by virtue of his hard work , he has earned uiversal acceptability as suggested by media? What is wrong in Jethmalanis' expression of their perception?Why BJP can not get rid of its old habit of dismissig dissent? Why it fails to give the endless freedom to its stalwarts like Jaswat Singh (who had earlier been expelled for writing a book that the leaders had not even read),Yashwant Siha, Shatrughna Siha,and the Jethmalanis? Why the often ill used term DISCIPLINE can not be substituted by SYNERGY?If un-answered adequately such questions must seek immediate and ruthless redress in the interest of both, India ad Bharat. It is shocking to note that instead of thaking Sri MG Vaidya for giving an openig for a frank discussion, both ,RSS and BJP seem to be inclined to be shy of an open thrash of the issue.All in the name of sham discipline. How can some one supporess an idea? What is more important in RSS today,TATTWA-NISHTHAA or the VYAKTINISHTHAA? How Vaidya ji reacts to such an ambivalence must be quite interesting.

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