Sunday 18 December 2011

चालीस वर्ष पूर्व का गौरव दिन

    २१ दिसंबर के लिए भाष्य

१६ दिसंबर १९७१ को, मतलब ठीक चालीस वर्ष पूर्व, भारत ने स्वातंत्र्योत्तर काल में एक महान् गौरव प्राप्त किया था| भारते की फौज ने पाकिस्तान को बुरी तरह से परास्त किया था| नया, स्वतंत्र बांगला देश उसी कारण निर्माण हो पाया| पाकिस्तान के दो टुकडे हुए| पाकिस्तान की तानाशाही को एक सबक मिला|

पाकिस्तान की शरणागति

इस्लाम का आधार लेकर भारत को तोडकर बने पाकिस्तान ने अपने जन्म के दिन से ही भारत के साथ शत्रुत्व का व्यवहार करना ही पसंद किया| प्रथम १९४७ में, टोलीवालों के बहाने काश्मीर पर उसने आक्रमण किया| भारतीय फौज वह आक्रमण पूरी तरह से विफल कर पाकिस्तानियों को खदेड रही थी, उसी समय हमारे राजकर्ताओं को कुबुद्धि सूझी; और उन्होंने, पाकिस्तान ने नहीं, हमारे विजयी फौज का आगे बढ़ना रोका| अकारण, काश्मीर का प्रश्‍न राष्ट्रसंघ में गया| इस बात ६४ वर्ष हो गए है| लेकिन प्रश्‍न जस का तस बना है| पाकिस्तान ने आक्रमण कर हथियाया जम्मू-काश्मीर राज्य का प्रदेश, अभी भी पाकिस्थान के ही कब्जे में है| १९६२ को, चीन से हमें करारी हार मिली| दुनिया भर में भारत की बेइज्जती हुई| पाकिस्तान को लगा कि, भारत को पराभूत करना अपने हाथ का मैल है| इसलिए उसने १९६५ में पुन: धाडस किया| लेकिन इस युद्ध में पाकिस्तान के हाथ कुछ नहीं लगा| भारतीय फौज बिल्कुल लाहोर की सीमा तक जा पहुँची थी| तथापि, युद्ध में पाकिस्तान ने जो गवॉंया था, वह उसने ताशकंद में हुए समझौते के टेबल पर वापस हासिल कर लिया| लेकिन १९७१ में भारत ने पाकिस्तान को निर्विवाद तरीके से पराभूत किया| पाकिस्थान को घुटने टेककर शरण आना पड़ा| वह दिन था, १६ दिसंबर १९७१| उस दिन पाकिस्थान के पूर्व क्षेत्र के सेनापति लेक्टनंट जनरल ए. ए. के. नियाझी ने शरणागति स्वीकार की| पाकिस्तान के ९३ हजार सैनिक भारत के कैदी बने|

इंदिरा जी का अभिनंदन

इस गौरवास्पद विजय के लिए भारत की फौज का मुक्तकंठ से अभिनंदन करना चाहिए| इसके साथ ही, उस समय की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का भी अभिनंदन करना चाहिए| वे दृढ रही| आंतरराष्ट्रीय वातावरण भारत के लिए अनुकूल नहीं था| चीन और अमेरिका की मित्रता हुई थी| और ये दोनों बलवान देश पाकिस्तान के समर्थन में खड़े थे| उस समय इंदिरा जी ने रूस का दौरा किया| रूस के साथ मित्रता का अनुबंध किया| वह समय अमेरिका और रूस के बीच के शीतयुद्ध का था| चीन के साथ रूस के संबंध बिगडे थे| इस स्थिति का इंदिरा जी ने चतुराई से लाभ उठाया| इस कारण चीन कोई साहस नहीं कर सका; और अमेरिका को भी अपने पाकिस्तान-प्रेम में फौजी सहायता का कदम उठाने के पूर्व विचार करने के लिए बाध्य किया| अमेरिका ने अण्वस्त्रों से सुसज्जित अपना नौसेना का सातवा बेड़ा भारत की दिशा में भेजा, लेकिन उसके पहुँचने के पहले ही युद्ध का फैसला हो चुका था| पाकिस्तान ने शरणागति स्वीकारी थी| श्रीमती गांधी का गौरव इसलिए भी करना चाहिए कि, उन्होंने अपनी फौज के जीत की राह रोकी नहीं| १९४७ के समान आत्मघातकी निर्यय नहीं लिया| दुनिया क्या कहेगी, इस विचार से भी नहीं डगमगाई| जिन गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के नेता का भारत का स्थान था, उन गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों को भी भारत का यह ‘आक्रमक’ कदम पसंद नहीं था| संयुक्त राष्ट्रसंघ में बांगला देश का प्रश्‍न उपस्थित हुआ तब, भारत के मित्र कहे जानेवाले अधिकतर राष्ट्रों ने भारत की भूमिका का समर्थन नहीं किया| अच्छे और बुरे, मित्र और शत्रु में से एक का चुनाव करने के बारे में भी वे राष्ट्र तटस्थ रहे| श्रीमती गांधी ने इन राष्ट्रों की परवाह नहीं की| उन्होंने दृढ रहकर, चौदह दिनों के अल्प काल में, जीत हासिल कर, भारत का नाम और प्रतिष्ठा उज्ज्वल की|

इस्लाम की मर्यादा

इस युद्ध ने कुछ बातें अधोरेखित की| पहली यह कि, इस्लाम की कटिबद्धता, राष्ट्र या लोगों को जोडकर नहीं रख सकती| इस्लाम के आधार पर पाकिस्तान निर्माण किया गया| ‘इस्लाम खतरें में’ का नारा देकर, मुसलमानों की बहुसंख्या का भाग, भारत से अलग हुआ| पश्‍चिम की ओर के चार प्रांत एकत्र हुए| वे चार प्रांत है बलुचिस्थान, वायव्य सरहद प्रांत, पंजाब और सिंध| तो पूर्व में बंगाल| एक पश्‍चिम पाकिस्तान, और दूसरा पूर्व पाकिस्तान बना| इन दो भागों में डेढ हजार किलोमीटर से अधिक दूरी है|
भारत से अलग होने के लिए, इस्लाम यह आधार उन्हें उपयुक्त लगा| लेकिन वह इस्लाम उन्हें एक नहीं रख पाया| बहाना बना भाषा का| पूर्व पाकिस्तान के लोगों की भाषा बंगाली थी और आज भी है, तो पश्‍चिम पाकिस्तान उर्दूूभाषी| उर्दू के साथ बंगाली को भी राज्यभाषा का दर्जा दे, इतनी छोटी मांग पूर्व पाकिस्तान की थी| पाकिस्तान के फौजी प्रशासकों ने उर्दू थोपने का प्रयास किया| बंगाली भाषिकों ने इसका प्रखर विरोध किया| मध्यम वर्ग और विद्यार्थी तानाशाही के विरुद्ध मैदान में उतरे|

दमन

इस्लाम व्यावर्तक (exclusivist) पंथ है| सर्वसमावेशकता (inclusiveness) उसे हजम नहीं होती, यह इस संघर्ष ने स्पष्ट किया है| जनतंत्र के प्राथमिक तत्त्व भी वे नहीं मानते| जनरल अयुब खान की फौजी तानाशाही समाप्त करने के बाद १९७० के दिसंबर में संपूर्ण पाकिस्तान में आम चुनाव हुए| उस चुनाव में पूर्व पाकिस्तान के बंगाली भाषी नेता मुजीबुर रहमान की अवामी लीग पार्टी को बड़ी सफलता मिली| पूर्व पाकिस्तान में की १६२ में से १६० सिटों पर अवामी लीग विजयी हुई| संपूर्ण पाकिस्तान की संसद में भी अवामी लीग को बहुमत प्राप्त हुआ था| स्वाभाविक ही, मुजीबुर रहमान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनते| वे भी मुसलमान ही थे| लेकिन उर्दूभाषी नहीं थे| उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनने देना, ऐसा षड्यंत्र, उस समय के अध्यक्ष जनरल याह्याखान और सिंध से चुनकर आये झुल्फीकार अली भुत्तो ने मिलकर रचा| और मुजीबुर रहमान को गिरफ्तार कर उन्हें कैद में डाल दिया| स्वाभाविक ही, जनक्षोभ और अधिक भड़का| निदर्शन आरंभ हुए| याह्याखान और भुत्तो ने फौजी ताकद का प्रयोग कर वह जन-आक्रोश कुचलने का प्रयास किया| जनरल टिक्काखान को पूर्व पाकिस्तान भेजा गया| टिक्काखान की फौज ने अपने और पराए मतलब मुस्लिम और अन्य ऐसा भेदभाव किए बिना अत्याचार का तांडव शुरू किया| कितने लोगों का कत्ल हुआ इसकी गिनती ही नहीं| अंदाज है कि कम से कम एक लाख लोग मारे गए होगे; और दूसरा अत्याचार महिलाओं पर बलात्कार का| लोगों को भयभीत करने का यह खास उपाय मुस्लिम फौज अपनाती है और इसमें भी उन्होंने भेदभाव नहीं रखा!

बांगला देश स्वतंत्र

ऐसे अत्याचारों से जनक्षोभ समाप्त नहीं होता, यह दुनिया का इतिहास है| आज २०११ में हमने इस सत्य का आविष्कार ट्युनेशिया, मिस्र और लिबिया में देखा है| ४० वर्ष पूर्व वह पाकिस्तान में देखने को मिला| बंगला भाषिकों ने, पाकिस्तान की गुलामी से मुक्त होने के लिए मुक्तिवाहिनी (मुक्तिसेना) स्थापन की| यह घटना मार्च १९७१ की होगी| बंगला भाषिकों ने अपनी सरकार भी स्थापन की| अर्थात् निर्वासित सरकार| और मुख्य यह कि भारत सरकार ने उस सरकार को संपूर्ण मदद की| भारत की फौज मुक्तिवाहिनी की सहायता के लिए सुसज्ज थी| लेकिन बारिश समाप्त होने की राह देखना उन्हें योग्य लगा| इसलिए प्रत्यक्ष युद्ध कुछ समय लंबा खींचा| युद्ध के लिए, कुरापात पाकिस्तान ने ही की| ३ दिसंबर १९७१ को, पाकिस्तान की हवाई सेना ने, सीमा पर तैनात भारतीय सैनिकों की छावनियों पर हमले किये| और युद्ध आरंभ हुआ| वह १६ दिसंबर को समाप्त हुआ| भारत की स्पष्ट जीत के साथ| मुजीबुर रहमान को रिहा किया गया| वे पूर्व पाकिस्तान की राजधानी ढाका आये| उन्होंने बांगला देश के निर्मिति की घोषणा की| उस देश का पूरा नाम है ‘गण प्रजातन बांगला देश’ मतलब प्रजातंत्रवादी गणराज्य (रिपब्लिक) बांगलादेश|

मुजीबुर रहमान की हत्या

मुजीबुर रहमान ने सांसदीय जनतांत्रिक व्यवस्था स्वीकार की थी| लेकिन पता नहीं क्यों १९७५ की जनवरी में हुए चुनाव में की सफलता के बाद मुजीबुर रहमान ने अध्यक्षीय पद्धति का पुरस्कार किया| अध्यक्षीय पद्धति भी जनतांत्रिक हो सकती है| अमेरिका, फ्रान्स में ऐसी ही पद्धति है| लेकिन वहॉं अनेक पार्टिंयॉं हो सकती है| मुजीबुर रहमान एकदलीय राज पद्धति चाहते होगे, या सारी सत्ता अपने हाथों में केन्द्रित रहे, ऐसा उन्हें लगता होगा, ऐसा तर्क करने के लिए कारण है| कुछ भी हो, लोगों को, मुस्लिम बहुसंख्य देश को भी जनतंत्र सुहाया, इस बारे में समाधान हुआ| लेकिन यह दिलासा अधिक समय नहीं टिक पाया| केवल आठ माह में, निश्‍चित कहे तो १५ ऑगस्त १९७५ को मुजीबुर रहमान और उनके परिवार की हत्या की गई और मुख्य सेनापति मेजर जनरल झिया उर रहमान सत्ताधीश बने| उन्होंने १९७८ में अध्यक्षीय राज पद्धतिनुसार चुनाव कराए और उस चुनाव में वे राष्ट्राध्यक्ष चुने भी गए| उन्होंने छ: वर्ष राज किया और फिर बिरासत निश्‍चित करने के इस्लामी परंपरा के अनुसार ३० मई १९८१ में उनकी भी हत्या हुई| न्या. मू. अब्दुल सत्तार अध्यक्ष बने| लेकिन उनके विरुद्ध भी जनक्षोभ हुआ| और २४ मार्च १९८२ को जनरल ईर्शाद यह फौजी अधिकारी सत्ता में आए| सत्तार का नसीब कुछ अच्छा माने| कारण, उनकी हत्या नहीं हुई| खून का बूंद भी बहाए बिना बांगला देश में फौज ने क्रांति की| जनरल ईर्शाद १९९० तक सत्ता में थे फिर उन्हें भी हटना पड़ा| उनका भी नसीब अच्छा था| वे आज भी जीवित है| १९९१ के फरवरी माह में वहॉं संसद के चुनाव हुए| भूतपूर्व फौजी तानाशाह झिया उर रहमान की पत्नी बेगम खालिदा झिया प्रधानमंत्री बनी| उनकी पार्टी का नाम है ‘बांंगला देश जातीय (=राष्ट्रीय) पार्टी’| आज अवामी लीग की शेख हसीना वाजीद प्रधानमंत्री है| वे शेख मुजीबुर रहमान की कन्या है और मुजीबुर रहमान ने स्थापन की अवामी लीग की नेता है| गत बीस वर्षों से वहॉं जनतांत्रिक पद्धति से राजव्यवस्था चल रही है| बांगला देश जातीय पार्टी और अवामी लीग क्रमक्रम से सत्ता भोग रही है| इसका अर्थ उस देश में सांसदीय पद्धति का विकास हुआ है, ऐसा नहीं लिया जा सकता| देश में फौजी शासन नहीं, नागरी शासन है, इतना ही मर्यादित अर्थ स्वीकारना उचित होगा|

सेक्युलॅरिझम् समाप्त हुआ

बांगला देश की स्थापना हुई, उस समय मुजीबुर रहमान ने यह देश स्वतंत्रता का पुरस्कार करेगा, राज्य व्यवस्था पंथनिरपेक्ष (सेक्युलर) रहेगी, सांस्कृतिक बाहुल्य की कदर करनेवाला रहेगा और सब नागरिकों को समान माननेवाला होगा, ऐसा आश्‍वासन दिया था| लेकिन उनके बाद आये राजकर्ताओं ने उस आश्‍वासन का पालन नहीं किया| मुसलमानों को श्रेष्ठत्व और मुस्लिमों के अलावा अन्य को गौणत्व प्रदान करने वाली व्यवस्था पुन: शुरू हुई| मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद किसी ने भी ‘सेक्युलर’ शब्द का प्रयोग नहीं किया| इतना ही नहीं, जनरल झिया उर रहमान, जिन्होंने १९७५ से १९८१ तक राज किया, उन्होंने बांगला देश के संविधान में से ही ‘सेक्युलर’ शब्द हटा दिया| पंथाधारित राजनीतिक दलों पर की बंदी भी हटा दी| उनके बाद आये जनरल ईर्शाद तो उससे भी आगे बढ़ गए| उन्होंने इस्लाम को राज्य का अधिकृत धर्म ही घोषित कर दिया| इन दोनों फौजी तानाशाहों ने इस्लामी धार्मिक संस्थाओं को हर संभव सहायता देकर अपना जनाधार संगठित किया| विद्यमान प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस बात का श्रेय देना चाहिए कि, उन्होंने पुन: देश के संविधान में ‘सेक्युलर’ शब्द अंतर्भूत किया है| यह सच है कि, केवल शब्द महत्त्व का नहीं है| उसके अनुसार आचरण अपेक्षित है| यह होने के लिए कुछ समय देना होगा| लेकिन अवामी लीग ही सत्ता मे रहेगी, इसकी गारंटी कौन दे सकता है? खलिदा झिया, भूतपूर्व राष्ट्राध्यक्ष झिया उर रहमान की पत्नी है; और झिया ने ही संविधान में से वह शब्द हटा दिया था| उनका राज कई वर्ष चला; और उनका व्यवहार पंथनिरपेक्ष था ही नहीं|

भारत का क्या लाभ?

इस संदर्भ में और एक विचारणीय मुद्दा यह है कि, बांगला देश को स्वतंत्रता दिलाने में भारत को क्या लाभ हुआ? एक लाभ निश्‍चित ही हुआ कि, पाकिस्तान कमजोर हुआ| कभी ना कभी पाकिस्तान के साथ निर्णायक युद्ध होगा ही, ऐसा राजनीतिक विचारकों का मत है| ऐसी परिस्थिति निर्माण हुई तो, कम से कम पूर्व की ओर से हमला नहीं होगा| तुलना में वह दिशा सुरक्षित रहेगी| यह लाभ कम महत्त्वपूर्ण नहीं| बांगला देश के लोग और राजकर्ता, उन्हें स्वतंत्रता दिलाने के लिए भारत के प्रति कृतज्ञ रहेगे, यह अपेक्षा खोखली साबित हुई है| पाकिस्तान के समान शत्रुत्व का भाव बांगला देश ने प्रदर्शित नहीं किया, लेकिन मित्रता के सबूत बहुत ही थोडे हैं, और वह भी कुछ समय पूर्व के ही| भारत के विरुद्ध, पाकिस्तान प्रेरित हो अथवा चीनपुरस्कृत, आतंकवादी कारवाईयॉं करनेवालों को बांगला देश में प्रशय मिला है| उसमें भी अब कुछ इष्ट परिवर्त हुआ है| तथापि, इन आतंकवादियों के प्रशिक्षण के अड्डे बांगला देश में थे और आज भी होंगे, इस बारे में संदेह नहीं| भारत और बांगला देश की सीमा कमजोर है| बांगला देश की जनसंख्या बहुत अधिक है| करीब बीस करोड होगी| इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए वहॉं जमीन कम पड़ती है| इसलिए बांगलादेशी घुसपैंठियों के झुंड भारत में आते रहते है| बांगला देश, उन्हें रोक नहीं पाया, यह सत्य है| लेकिन इसके लिए केवल बांगला देश को दोष देने से बात नहीं बनेगी| दोष तो हमारे देश के राजकर्ताओं की ढूलमूल नीति और अपने स्वार्थी सियासत के लिए वोटबँक तैयार करने के मनसुबों का ही है और यह अधिक घातक है|

प्रश्‍न कायम

पाकिस्तान का पराभव करने के बाद हम पाकिस्तान पर धाक कायम नहीं रख सके| १९७२ में, मतलब बांगला देश स्वतंत्र होने के बाद, सिमला में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री भुत्तो और भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बीच समझौता हुआ| हम विजेता होने के बावजूद उस समझौते में सफल नहीं हो सके| काश्मीर के प्रश्‍न का फैसला कर सकते थे| लेकिन नही किया| उसके बाद भुत्तो अधिक समय अधिकारपद पर नहीं रहे| १९७७ में उनकी गच्छन्ति हुई| और पुन: फौजी तानाशाही शुरू हुई| कट्टरपंथी झिया उल हक्क राष्ट्राध्यक्ष बने| उनके सत्ताकाल में पुन: इस्लामी कट्टरवाद को प्रोत्साहन मिला| उन्होंने आतंकी संगठनों द्वारा भारत के विरुद्ध छद्म युद्ध किया| उसे अमेरिका का भी समर्थन था| इस्लामी कट्टरवाद क्या होता है, इसका अमेरिका को, उसके प्रतिष्ठा के स्थानों पर इस्लामी आतंकियों ने हमाल करने के बाद ही अहसास हुआ| प्रत्यक्ष या परोक्ष आतंकवाद को पाकिस्तान का मतलब पाकिस्तान की फौज का समर्थन और मार्गदर्शन रहता है (और पाकिस्तान में सही में सत्ता फौज की ही रहती है) यह अमेरिका अच्छी तरह से समझ चुकी है| पाकिस्तान को अमेरिका की ओर से दी जा रही सहायता का प्रवाह अब क्षीण हो रहा है| इस नई परिस्थिति का लाभ कैसे ले यह भारतीय राजकर्ताओं की चतुराई पर निर्भर है| लेकिन वह विषय अलग है|
हम सब ने ४० वर्ष पूर्व के उस गौरवमयी दिन का नित्य स्मरण रखना चाहिए| विद्यमान सरकार ने और जनता ने भी इस विजशाली दिन को याद नहीं रखा, इसका आश्‍चर्य लगा|

- मा. गो. वैद्य
babujivaidya@gmail.com
(अनुवाद : विकास कुलकर्णी)
                           

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