Thursday, 10 November 2011

इतस्तत:

कराची की दुर्दशा

कारची पाकिस्तान में का सबसे बड़ा शहर है| जनसंख्या है करीब दो करोड| बहुत थोडे लोग जानते होगे कि, १९३५ तक सिंध प्रांत, उस समय के मुंबई क्षेत्र का हिस्सा था| फिर वह अलग प्रांत बना और १५ अगस्त १९४७ से पाकिस्तान में समाविष्ट हुआ| कराची, सिंध प्रांत में है; उसकी राजधानी है|
विभाजन के उस कालखंड में, लाखों हिंदुओं को निर्वासित होकर भारत में आसरा लेना पड़ा| इसी प्रकार, पंजाब में के कुछ मुसलमान भी पाकिस्तान में गए| उनमें से अधिकांश सिंध और मुख्यत: कराची में बसे| उन्हें ‘मुहाजिर’ कहते है| ‘मुहाजिर’ का अर्थ विस्थापित ही है| वहॉं उनकी संख्या बहुत अधिक है| उनकी एक राजनीतिक पार्टी भी है| उसका नाम है ‘कौमी मुहाजिर मुव्हमेंट’| ये पंजाबी मुहाजिर वहॉं पहुँचने के बाद, मूल के सिंधी और इन मुहाजिरो के बीच संघर्ष हुए| अर्थात्, मुसलमानों में संघर्ष! मतलब रक्तरंजित संघर्ष, यह अलग से कहने की आवश्यकता नहीं| विभाजन की घटना को आज ६४ वर्ष बीत चुके है, लेकिन इन मुहाजिरों की मुहाजिरत खत्म नहीं हुई| भारत में आए सिंधी और पंजाबी निर्वासित यहॉं समग्र समाजजीवन में पूरी तरह से घुल-मिल गए, लेकिन इन मुहाजिरों का वैसा नहीं हुआ| इस्लामी मनोवृत्ति और हिंदू मनोवृत्ति में का यह अंतर है|
अब, अफगानिस्तान में के पठान भी निर्वासित बनकर कराची पहुँचे है| इस कारण सिंधी वीरुद्ध मुहाजिर के समान, सिंधी विरुद्ध पठान और मुहाजिर विरुद्ध पठान ऐसे संघर्ष शुरू हुए है| कारची में प्राय: रोज ही दंगा होता है| २० जुलाई २०११ के ‘नवा ए वक्त’ दैनिक में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुआ है| उस लेख के शीर्षक का अर्थ है ‘कराची दुनिया का सबसे बड़ा अनाथालय’| उसी दिन के ‘डॉन’ इस अंग्रेजी समाचारपत्र के समाचार का शीर्षक था ‘कारची भड़का है| २४ घंटे में ३४ मरे|’  ‘डॉन’ के समाचार के अनुसार ‘जनवरी से ३१ जुलाई इन सात माह की कालावधि में कराची में ८०० लोगों को मौत के घाट उतारा गया है|’ १५ जुलाई के ‘नवा ए वक्त’ दैनिक के संपादकीय पृष्ठ पर मोहम्मद अहमद तराजी का लेख प्रकाशित हुआ है| लेख का शीर्षक है ‘कफन की दुकान पर भीड|’
कराची में रास्ते पर चलते समय, कौन, कहॉं से आनेवाली गोली की बलि चढ़ेगा, कहा नहीं जा सकता| यह रोज की ही बात हो गई है| पुलीस के मन में रहा तो वह आती है, अन्यथा स्वस्थ बैठे रहती है| कोई मजदूर घर से निकलर काम पर जाएगा तो वह सकुशल घर लौटेगा इसकी गारंटी नहीं| ५ से ८ जुलाई इन चार दिनों में, कराची में भाषिक दंगे हुए| इसमें ८५ लोगों ने प्राण गवाएँ| किसने मारा, क्यों मारा, इसके बारे में अब लोग पूछँते भी नहीं है| कराची में मृत्यु यह अब समाचार का विषय ही नहीं रहा| बाजार खुले रहते है लेकिन, ग्राहकों का स्वागत बंदूक की गोली से नहीं होगा, इसकी गारंटी नहीं| गोली कहॉं से आई, किसने चलाई, सब अज्ञात रहता है| ‘जसारत’ यह ‘जमाते इस्लामी’ इस कट्टरवादी संगठन का मुखपत्र है| उसके संपादकीय का शीर्षक है ‘कराची : बारूद के ढेर पर|’ २३ जुलाई के अंक में यह समाचारपत्र लिखता है, ‘‘राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का इंजन माना जानेवाला यह शहर दहशत के पिंजरे में फंस गया है| अभी जुलाई महिना समाप्त नहीं हुआ है, फिर भी ३४० लोग मारे जा चुके है|’’ ४ अगस्त के अंक में यही समाचारपत्र लिखता है, ‘‘अभी अगस्त का पहला सप्ताह भी समाप्त नहीं हुआ, और ३८ लाशें उठाई जा चुकी है| सरकार हताश है| फौज दूसरी ही तरफ लगी है और कराची में लगातार आग धधक रही है|’’

(२१ अगस्त २०११ के ‘पाञ्चजन्य’ में प्रकाशित श्री मुजफ्फर हुसैन के लेख पर आधारित)


डोंबिवली, महाराष्ट्र में कल्याण के समीप का शहर| शायद कल्याण-डोंबिवली मिलकर एक महानगर बनता होगा| और नागालँड? भारत के पूर्व छोर पर| लेकिन डोंबिवली ने नागालँड के साथ संबंध जोड़े है| वहॉं नागालँड में के विद्यार्थींयों के लिए एक छात्रावास है| गत १० वर्षों से वह चल रहा है| कौन चलाता होगा यह छात्रावास? और किनपर विश्‍वास कर नागालँड में के पालक अपने बच्चों को इतने दूर भेजते होंगे? इन प्रश्‍नों का एक ही उत्तर मिलेगा, वे संघ के स्वयंसेवक होंगे और वह सही है|
इस वर्ष की शालांत परीक्षा में इस छात्रावास के १७ विद्यार्थी उत्तीर्ण हुए| उन सब का अगस्त माह में सत्कार किया गया| लोकप्रिय संगीतकार सलिल कुलकर्णी के हाथों यह सत्कार संपन्न हुआ| सर्वाधिक गुण इनातो इस विद्यार्थी ने प्राप्त किए| उसे ८५ प्रतिशत गुण मिले| विद्यार्थींयों की ओर से आभार व्यक्त करते हुए उसने कहा, ‘‘छात्रावास समिति के सदस्य और अन्य नागरिकों ने हम पर बहुत प्रेम किया| हमसे पढ़ाई करा ली| इसलिए हम दसवी तक पहुँच सके| मैं यहॉं नहीं आता, तो मेरा क्या होता यह कह नहीं सकता| यहॉं आया इसलिए मेरी प्रगति हो सकी| हमसे निश्‍चित ही कुछ गलतियॉं हुई होगी, उसके लिए मैं क्षमा मॉंगता हूँ|’’
यह छात्रावास ‘अभ्युदय प्रतिष्ठान’ संस्था चलाती है| प्रतिष्ठान के कार्यवाह उदय कुलकर्णी ने कहा, ‘‘इन बच्चों को उनकी भावनाएँ व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं सूझ रहे थे| लेकिन उनके चेहरे ही उनकी भावनाएँ व्यक्त कर रहे थे| इन बच्चों से परिचय होने के बाद उनमें के सुप्त गुण हमारे ध्यान में आते है| ये बच्चें शिक्षा पूरी करने के बाद नागालँड वापस जाएगे| नागालँड में, हमारे जो कार्यकर्ता है, उन्हें मिलने के लिए, यहॉं से गये हुए बच्चें एक-दो दिन पैदल चलकर आते है| इससे यह भावनिक रिश्ता कितना गहरा है, इसका पता चलता है|’’

  (ईशान्य वार्ता, अगस्त २०११ के अंक में प्रकाशित जानकारी के आधार पर)
 

डॉ. मोहम्मद हनीफ शास्त्री

हॉं! डॉ. हनीफ मोहम्मद ‘शास्त्री’ है| संस्कृत के विद्वान है| संस्कृत के विख्यात अध्यापक है| हमारे उपराष्ट्रपति श्री हमीद अन्सारी के हस्ते ‘राष्ट्रीय सद्भावना’ पुरस्कार प्रदान कर, इस वर्ष जिन लोगों का सत्कार किया गया, उनमें डॉ. मोहम्मद हनीफ शास्त्री का भी समावेश था| डॉ. शास्त्री ने भागवद्गीता और कुरान का तुलनात्मक अभ्यास किया है| हिंदू-मुसलमानों में की समानता दिर्शानेवाले उनके लेखों के कारण ही उन्हें यह सद्भावना पुरस्कार मिला है| उनका मत है कि, दुनिया में के सारे मुसलमान नमाज पढ़ते हैं| लेकिन नमाज कैसे ‘कबूल’ होगी, इसका उत्तर गीता में है| ‘रोजे’ क्यों रखना, इसका भी उत्तर गीता में है और आश्‍चर्य यह कि श्री इंद्रेशकुमार मेरे प्रेरणास्रोत है, ऐसा उन्होंने बताया| इंद्रेशकुमार मतलब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक और कार्यकारी मंडल के एक सदस्य|
डॉ. शास्त्री के साथ मेरी भेट, शायद २००३ में, दिल्ली के तिहार जेल में के एक कार्यक्रम के दौरान हुई थी| दिल्ली में रामकृष्ण गोस्वामी नाम के एक समाजसेवी व्यक्ति है| उन्होंने ‘अपराध निवारण-चरित्र निर्माण’ इस नाम से एक संस्था बनाई है| यह संस्था मतलब अकेले गोस्वामी जेल में के कैदियों को श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ाते है| उनकी इस शिक्षा के अच्छे परिणाम देखकर, अनेक सरकारी जेल में उन्हें निमंत्रित किया जाता है| उनके साथ मैं तिहार जेल में दो बार, अहमदाबाद के साबरमती जेल में एक बार, और हाल ही में कुछ माह पूर्व नागपुर के मध्यवर्ती जेल में गया था|
- मैं बता रहा था, तिहार जेल के एक कार्यक्रम में डॉ. शास्त्री से मेरी भेट हुई| दो-ढाई हजार कैदियों के सामने गीता की शिक्षा पर हमारे भाषण हुए| जेल के अधिकारी भी उपस्थित थे| डॉ. शास्त्री ने बहुत अच्छी तरह गीता का महत्त्व विशद किया| गत सितंबर माह के ‘हिमालय परिवार’ इस नियकालिक के अंक में ‘सच्ची सांप्रदायिक भावना’ इस शीर्षक से इमरान चौधरी का एक छोटा लेख प्रकाशित हुआ है| निम्न जानकारी उस लेख के आधार पर है|
ऐसा लगता है कि, इमरान चौधरी ने डॉ. मोहम्मद हनीफ शास्त्री की मुलाकात ली है| उसमे चौधरी ने डॉ. शास्त्री को सीधे संघ के बारे में प्रश्‍न पूँछे| उन्हें उत्तर देते हुए डॉ. शास्त्री ने कहा, ‘‘संघ और मुसलमानों के बीच गलतफहमियॉं है| उन्हे दूर किया जा सकता है| लेकिन इन मुद्दों को राजनीति से ना जोड़े| संघ एक राष्ट्रवादी संगठन है| मैं एक मुसलमान हूँ और मेरा अनुभव मुझे बताता है कि, संघ के लोग बुरे नहीं है| व्यक्तियों से दूर रहकर हम कुछ भी बोलते हैं और गलफमियॉं बना लेते है| लेकिन किसी व्यक्ति के पास जाने पर ही समझ पाते है कि वह व्यक्ति कैसी है| कुछ जाने बिना किसी के बारे में कुछ बोलना अल्लाह और उसके रसूल को नाराज करने के समान है|


रेंगेपार (कोहळी) की मातोश्री गौशाला

रेंगेपार एक छोटा देहात है| जनसंख्या दो हजार भी नहीं| वहॉं एक अच्छी गौशाला है| मतलब बाहर से देखने में नहीं| उसका अंतरंग अतिसुंदर है| प्रशंसनीय है|
रेंगेपार, भंडारा जिले के लाखनी तहसील में है| लाखनी से करीब ८ किलोमीटर दूर| इस तहसील में ‘रेंगेपार’ नाम के कुछ और भी गॉंव होने के कारण इसका नाम रेंगेपार (कोहळी) है| कारण यहॉं कोहळी समाज बहुसंख्य है|
‘मातोश्री गौशाला’ यह गौशाला का नाम है| कसाईयों से बचाई गई गायें ही यहॉं है| उनकी संख्या करीब ४०० है| अधिकांश गाय और बैल अत्यंत कृश, जख्मी और रोगी है| उन सब की देखभाल यह गौशाला करती है| यहॉं अब एक बड़ा हॉंल भी बनाया गया है|
यह गौशाला, यादवराव कापगते के परिश्रम से बनी है| यादवराव कँसर के रुग्ण थे| डॉक्टरों ने उनके जीवन की आशा छोड़ दी थी| अधिक से अधिक एक-देढ माह जिवीत रहोगे, ऐसा उन्हे बताया गया था| २००१ की यह घटना है| उसी समय देवलापार के गौ-विज्ञान केन्द्र के लोग उन्हें मिले| उन्होंने, गौमूत्र चिकित्सा बताई| रोज-सुबह सायंकाल, यादवराव ताजा गौमूत्र पीने लगे| दस माह तक की गई एक प्रकार की इस तपस्या के बाद, वे रोगमुक्त हुए| ६२ वर्ष के यादवराव अब अच्छे धट्टे-कट्टे है|
१२ अक्टूबर को, हमने वह गौशाला देखी| वहॉं, और एक व्यक्ति ने हमें चकित किया| हम सुबह १०.३० के करीब वहॉं पहुँचे| एक गाय को जमीन पर गिरा कर दो लोगों ने उसे जकड रखा था और तिसरा एक व्यक्ति, उस गाय का घाव धोकर उसे दवा लगा रहा था| हमें लगा वे पशु-वैद्य होगे| लेकिन वे पशु-वैद्य नहीं है| वे नागपुर के व्यापारी है| लकड़गंज में रहते है| उन्होंने पशु-रोग चिकित्सा का प्राथमिक ज्ञान लिया है, इसी ज्ञान के आधार पर वे बीमार गायों की सेवा करते है| यह विशेष आश्‍चर्य की बात नहीं| आश्‍चर्य की बात यह है कि, वे रोज सुबह नागपुर से रेंगेपार आते है| नागपुर-रेंगेपार अंतर करीब ९० किलोमीटर है| वे रोज यह ९० किलोमीटर आना-जाना करते है| और धनप्राप्ती शून्य! केवल गौ-सेवा के लिए इतनी भाग-दौड़| सही में यह एक तपस्या ही है| इस व्यक्ति का नाम है शंभुभाई पटेल| वे इस संस्था के सहसचिव है| सहसचिव इतने कष्ट ले? रोज १८० किलोमीटर यात्रा, अपने वाहन से करें? गौ-भक्ति का यह असाधारण दर्शन यहॉं हुआ| यहॉं के बछड़ों को भी शंभुभाई के प्रति अनोखा लगाव है| शंभुभाई ने आवाज लगाते ही पॉंच-छ: बछड़े उनके ईद-गिर्द जमा हो गए| शंभुभाई ने नागपुर से लाए ब्रेड का एक-एक टुकड़ा उन्हें खिलाया| शायद यह उनका रोज का ही क्रम होगा और बछड़े यह जानते है|
सेवानिवृत्त कृषि उपसंचालक श्री दादासाहब राजहंस के मार्गदर्शन में यहॉं आम का एक बड़ा बगीचा भी विकसित हुआ है| वहॉं आम के ४०० सुंदर पेड़ है| साथ ही बास के कुंज भी है, सागवान भी है| वह आम का बगीचा देखकर हम बहुत खूश हुए|
लेकिन रेंगेपार का चमत्कार यहीं समाप्त नहीं होता| यहॉं हर घर में शौचालय है और आश्‍चर्य तो यह है कि हर घर में गोबर गॅस भी है| गौशाला और आम के बगीचे के साथ फुलों का भी बगीचा है, रोपवाटिका है, जैविक खाद का उपयोग किया जाता है| एक सुंदर तालाब है और सैर (ट्रीप) के लिए सबको आमंत्रण भी है| एक व्यक्ति चाहे तो क्या परिवर्तन कर सकता है इसका प्रमाण हमने रेंगेपार में देखा| यादवराव कहते है, वैसे तो मैं दस वर्ष पूर्व ही मर गया होता| गौमाता ने मुझे जीवनदान दिया| यह मेरा बोनस जीवन गायों की सेवा को समर्पित है|

बाल मुख्याध्यापक      

पश्‍चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में भापता उत्तरपारा यह एक गॉंव है| उस गॉंव में गत पॉंच वर्षों से एक शाला चल रही है| इस शाला का, संचालक या मुख्याध्यापक कहे, एक १७ वर्ष का युवक है| यह उसकी आज की आयु है| शाला आरंभ की, उस समय वह केवल १२ वर्ष का था| उसका नाम है बाबर अली|
उसकी शाला में ९७७ विद्यार्थी है| वर्ष २००५ में, उसके पिता मोहम्मद नसीरुद्दीन ने उसे ६०० रुपये पूंजी दी| मोहम्मद नसीरुद्दीन अनाज और खाद का छोटा व्यापार करते है| उन्होने दी पूंजी से बाबर अली ने शाला शुरू की| ‘आनंद शिक्षा निकेतन’ यह उस शाला का नाम है| शाला को ग्राम पंचायत, स्थानिक शासकीय अधिकारी, रामकृष्ण मिशन के प्रमुख, जिलाधिकारी और कोलकाता विकास प्राधिकरण से सहायता मिलती है|
२०१० में बाबर अली ने १२ वी की परीक्षा उत्तीर्ण की और अब पदवी परीक्षा के लिए महाविद्यालय में प्रवेश लिया है| स्वयंसेवा की वृत्ती से काम करनेवाले और भी दस शिक्षक उसकी सहायता करते है| उसकी शाला में मुमताज बेगम नाम की विवाहित महिला, रोज पॉंच किलोमीटर दूर से आकर पढ़ाती है| वह ८ वी में है, और उसकी लड़की पहली कक्षा में है| यह महिला रोज पैदल शाला में आती है|
बाबर अली के इस काम की दखल बीबीसी ने भी ली है| अक्टूबर २००९ को इस बारे में प्रसारित समाचार में बीबीसी ने बताया कि, यह दुनिया में का सबसे युवा मुख्याध्यापक है| खाकी की आधी चड्डी और टी शर्ट यह उस अध्यापक का पोशाक है| 

 (‘विकल्प वेध’के १ से १५ सितंबर के अंक से)

       
हमारी रेल

हमारी रेल को कौन नहीं जानता? उसके बारे मे कुछ मनोरंजक जानकारी -
१) हमारे देश में के रेल मार्गो की लंबाई ६३९४० किलोमीटर है|
२) रोज १४२४४ गाड़ियॉं दौड़ती हैं|
३) ७०९२ स्टेशन है|
४) ‘गिनिज बुक ऑफ रेकॉर्ड’ में, रेल स्टेशन द्वारा दी जाने वाली विविध सेवाओं के लिए, पुरानी दिल्ली स्टेशन का नाम है|
५) अंग्रेज गव्हर्नर जनरल लॉर्ड डलहौसी के कार्यकाल १६ अप्रेल १८५३ में मुंबई (बोरीबंदर) से ठाणे, यह पहली रेल चली थी|
६) जम्मू से कन्याकुमारी सीधे जानेवाली गाड़ी का नाम ‘हिमसागर एक्सप्रेस’ है| वह ३७५१ किलोमीटर दूरी ६६ घंटे मेें पूरी करती है| वह १२ राज्यों में से जाती है और हमारे देश में सर्वाधिक अंतर पार करनेवाली गाड़ी है|
७) कंम्प्युटर से रेल आरक्षण करने की सुविधा १९६६ में सर्वप्रथम दिल्ली से आरंभ हुई|
८) खडकपुर का प्लॅटफॉर्म सबसे लंबा - २७३३ फुट है|
९) शोण नदि पर बना पुल सबसे लंबा - १० हजार ४४ फुट है|
१०) कोकण रेल्वे के अंतर्गत बने पुल के एक खंबे की ऊँचाई, कुतुबमिनार से भी अधिक है|   
११) ट्राम सेवा सर्वप्रथम मुंबई और चेन्नई में शुरू हुई| वर्ष था १८७४| 

- मा. गो. वैद्य, नागपुर
E-mail : babujaivaiday@gmail.com
(अनुवाद : विकास कुलकर्णी)   


डोंबिवली में नागालँड

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