इक्ष्वाकू वंश में जन्मे श्री राम की जयंति -रामनवमी- रविवार को मनाई गई. इक्ष्वाकू कुल में जन्मा राम, राजा दशरथ का पुत्र. अज राजा का पोता. विश्व विजयी रघू का प्रपौत्र. जन्मदाता पिता से प्रजा को प्रिय लगनेवाले दिलीप का परप्रपौत्र. लेकिन, न दिलीप की जयंती मनाई जाती है, न रघु की, न अज की, न दशरथ की. इक्ष्वाकू कुल में के केवल राम की जयंति ही मनाई जाती है. चैत्र शुक्ल ९ यह उनकी जन्म-तिथि.
संस्कृति के प्राण
राम की ही क्यों? कारण, राम हमारी संस्कृति का प्राण है. शास्त्र बताते है कि, विशेष नामों को गुणात्मक अर्थ नहीं होता. Proper nouns have no connotation. यह बिल्कुल सच है. गरीबदास धनाढ्य हो सकता है, और कुबेर नाम का कोई सामान्य लिपिक. हमारा ही उदाहरण ले. हम ‘वैद्य’, लेकिन क्या हमें नाडी परीक्षा करते आती है? नहीं. लेकिन राम का वैसा नहीं है. वह विशेष नाम है फिर भी उसे गुणात्मक अर्थ प्राप्त हुआ है. कोई वस्तु या कोई वचन निरर्थक हो, तो हम कहते है इसमें राम नहीं. ‘राम’ मतलब कस. राम मतलब सार. अचूक औषधि ‘राम-बाण’ उपाय होती है. कारण ‘राम के बाण से’ एक सुनिश्चित सुपरिणाम करने का अचूक अर्थ जुडा है. ‘रामो द्विर्नाभिसन्धत्ते’ मतलब राम, लक्ष्यभेद करते समय दुसरी बार बाण का निशाना नहीं लगाते, ऐसी वाल्मीकि की उक्ति है. राम जैसा ‘एकबाणी’ वैसे ही ‘एक वचनी’. ‘राम’ मतलब पुण्यकारक प्रारंभ. इसीलिए कोई मिला, तो पहले ‘राम राम’. यह सब जीवन में के प्रसंग. मरण में भी राम है ही. मरण में भी जो मरता नहीं वह राम होता है. किसी के मरने पर कहते है, वह राम को प्यारा हुआ. और सबसे अच्छा राज्य कौनसा? - तो राम-राज्य. राम में ऐसी प्रचंड गुण-संपदा समाई है. राम अद्वितीय है. राम अलौकिक है.
ताटिका वध
राम के जीवन में के कुछ प्रसंग याद करने जैसे है. यज्ञों का विद्ध्वंस करने वाली ताटिका का विनाश करना होता है. विश्वामित्र इस कार्य के लिए राम को साथ ले जाते है. ताटिका का नाश करने के लिए उसे कहते है. राम के मन में प्रश्न निर्माण होता है ‘‘किसी स्त्री को मारे?’’ लेकिन ताटिका जब सामने आती है, तब राम के मन की शंका, उसे देखते ही समाप्त हो जाती है. महाकवि कालिदास ने सुंदर वर्णन किया है. कालिदास लिखते है -
उद्यैकभुजयष्टिमायतीं श्रोणिलम्बिपुरुषान्त्रमेखलाम्|
तां विलोक्य वनितावधे घृणां पत्रिणा सह मुमोच राघव:॥
एक हाथ उठाकर आगे बढ़ने वाली, मारे हुए पुरुषों की अतडियों का कमरपट्टा बांधी, विशालकाया ताटिका सामने आई और उसे देखते ही धनुष्य से छूटें बाण के साथ स्त्री वध के सन्दर्भ का संभ्रम भी राम के मन में से निकल गया.
योगिराज राम
राम १६ वर्ष का हुआ. ज्येष्ठ पुत्र. पिता दशरथ वृद्ध हो चुके थे. राम को यौवराज्य का अभिषेक करने की योजना तय हुई. वह केवल अकेले दशरथ के निर्णय से नहीं. उसके पूर्व नगरवासी और ग्रामवासियों के प्रतिनिधियों को राजा ने बुलाया. उनके सामने अपना प्रस्ताव रखा. सब ने, मुक्त कंठ से राम की प्रशंसा करते हुए राजा की सूचना को अनुमोदन दिया. यौवराज्याभिषेक का मुहूर्त निश्चित हुआ. सर्वत्र आनंद की लहर चल पड़ी. राम को भी आनंद हुआ होगा. लेकिन सौतेली मॉं कैकेयी को यह नहीं सुहाया. उसने राम को १४ वर्ष वन में जाने के लिए कहा. वह भी राम ने आनंद से स्वीकार किया. ‘दु:खेषु अनुद्विग्नमना: सुखेषु विगतस्पृह:’ दु:ख के समय उद्वेगविरहित और सुख के बारे में नि:स्पृह यह योगियों की वृत्ति राम नाम के एक युवक के मन में बसी थी. युवराज बननेवाला राम वनवासी राम बन गया.
हमारी संस्कृति
कैकेयी का पुत्र भरत मातुलगृह से आया. उसे अनायास राज्य मिला था. लेकिन वह सिंहासन पर नहीं बैठा. राम ज्येष्ठ पुत्र है. सिंहासन पर उसी का अधिकार है, ऐसा कहकर वह राम को, वापस अयोध्या लाने के लिए निकल पडा. चित्रकूट में दोनों की भेट हुई. भरत ने खूब वाद किया. राम ने नहीं कहा. दोनों के बीच चल रहा वाद, उपस्थित सब अचरज से देख रहे थे. कारण वह वाद ‘मैं राजा बनूंगा इसलिए नहीं था. तू राजा बन इसलिए था!’ क्या हम आज ऐसे वाद की कल्पना भी कर सकते है? राम ने ‘नहीं’ कहा इसलिए भरत राज्य पर बैठा? नहीं, उसने राम की पादुका सिंहासनाधिष्ठित की! ऐसा राम, ऐसा भरत. यह हमारी संस्कृति है.
अखंड भारत हमारा
और राम वनवास में रहा. सीता और लक्ष्मण उसके साथ थे. सीता का अपहरण हुआ था. राम दु:खी हुआ. रोया भी. वह भी एक मानव ही था. लेकिन महामानव. स्वयं राम ही वाल्मीकि रामायण में अपना परिचय देते हुए कहता है. ‘‘आत्मानं मानुषं मन्ये रामं दशरथात्मजम्’’ ‘‘मैं दशरथ का राम नाम का लड़का एक मनुष्य हूँ, ऐसा ही मैं समझता हूँ.’’ बाद में सुग्रीव की भेट होती है. मित्रता होती है. हनुमान का साथ मिलता है. बाली का वध किया जाता है. बाली राम से पूछता है कि, ‘‘तूने मुझे क्यों मारा? मैंने तेरा क्या अपराध किया था?’’ राम का उत्तर वाल्मीकि के शब्दों में इस प्रकार है -
इक्ष्वाकूणामियं भूमि: सशैलवनकानना |
मृगपक्षिमनुष्याणां निग्रहानुग्रहेष्वपि ॥
‘‘यह संपूर्ण पृथ्वी, उसमें के पर्वत, वन और घने जंगलों सहित इक्ष्वाकू की है और यहॉं रहनेवाले सब पशु हो या पक्षी अथवा मानव, उन्होंने पाप किया तो उन्हें दंड देने का और उन्होंने पुण्य किया तो उन पर अनुग्रह करने का हमें अधिकार है.’’ संपूर्ण भारत एक है, अखंड है, ऐसी ही हजारों वर्षों से हमारी धारणा है. अंग्रेजों ने भारत को एक बनाया, ऐसा मानना शुद्ध मूर्खता है.
राजा राम
राम और रावण के बीच युद्ध हुआ. अभूतपूर्व युद्ध. रावण मारा गया. लंका राम के हाथ आई. सोने की लंका. किसे ने सुझाया भी होगा कि, यहीं राज करो. पराक्रम से पादाक्रांत किया है. चित्रकूट का भरत चौदह वर्ष बाद भी वैसे ही रहा होगा, इसका क्या भरोसा? सत्ता भ्रष्ट करती ही है! सही में राम लंका का राजा बनता तो राम ‘राम’ नहीं रहता. राम ने बिभीषण को लंका के सिंहासन पर बिठाया; और राम अयोध्या लौट आया. हनुमान को भेजकर भरत के वर्तन की टोह ली और फिर सब ने अयोध्या में प्रवेश किया. उसके बाद राम को विधिवत् राज्याभिषेक किया गया. राम राजा बना. राम-राज्य शुरू हुआ.
राम-राज्य
राम-राज्य ने राम की विलक्षण परीक्षा ली. रावण जैसे स्त्रीलंपट राजा के कैद में सीता रही थी. उसके चारित्र्य के बारे में संदेह व्यक्त करने वाली कानाफूसी लोगों में शुरू हुई. वह राम के कानों तक भी पहुँची. और राम ने निर्णय लिया; सीता का परित्याग किया. ‘राजा’ किसलिए होता है? उसका क्या काम है? उसे क्यों राजा कहे? कितनी बड़ी किमत चुकानी पड़ती है उसे? कालिदास बताता है - ‘राजा प्रकृतिरंजनात्’- वह प्रकृति का मतलब प्रजा का रंजन करता है, मतलब उसे संतुष्ट रखता है, इसीलिए ही उसे राजा कहा जाता है. मतलब राजा का आद्य कर्तव्य है प्रजाराधन. कवि भवभूती ने अपने ‘उत्तर रामचरितम्’ इस सुप्रसिद्ध नाटक में राम के मुँह में एक श्लोक दिया है. वह इस प्रकार -
स्नेहं दयां च सौख्यं च यदि वा जानकीमपि |
आराधनाय लोकस्य मुञ्चतो नास्ति मे व्यथा ॥
लोगों को खुष रखने के लिए स्नेह, दया, सुख, इतना ही नहीं प्रत्यक्ष सीता का भी त्याग मुझे करना पड़ा, तो मुझे उसका दु:ख नहीं. भवभूती ने नाटक में जिस प्रसंग की कल्पना की है उसमें राम इस प्रतिज्ञा का उच्चारण करता है, तब सीता वहॉं उपस्थित है. उस पर सीता का अभिप्राय है, ‘‘इसीलिए आप रघुकुल में श्रेष्ठ है.’’
एक पत्नी
और आगे चलकर, राम पर सीता का त्याग करने का प्रसंग आता है. सीता शुद्ध है, यह जानते हुए भी जनता के संतोष के लिए राम सीता का त्याग करता है. और वह भी उस अवस्था में जब उसे साथी की, सहायता की आवश्यकता होती है. वह आसन्नप्रसव होती है. यह, सीता इस व्यक्ति पर अन्याय है या नहीं? निश्चित ही है. लेकिन क्या सीता पर ही अन्याय है? नहीं. वह राम पर भी अन्याय है. उसका संपूर्ण पारिवारिक जीवन उद्ध्वस्त हो जाता है. उस समय बहुपत्नीत्व की प्रथा थी. राम दूसरा विवाह कर सकता था. लेकिन राम ने वैसा नहीं किया. उसने विरह की आग में जलते रहना पसंद किया. आगे चलकर अश्वमेध यज्ञ का प्रसंग आया. यज्ञ पूजा में गृहिणी की आवश्यकता होती है. राम ने सीता की सोने की प्रतिमा बनाकर उसके साथ यज्ञ-पूजा की. राम-राज्य इस प्रकार व्यक्तिनिरपेक्ष होता है. अपनों के बारे में ही नहीं तो अपने बारे में भी कठोर होता है. राज-धर्म के पालन में कठोरता अनुस्यूत होती ही है.
धर्म-राज्य
‘राम-राज्य’ का अर्थ केवल राम इस व्यक्ति का राज नहीं. उसे गुणात्मक अर्थ है. वह अर्थ बताता है कि ‘राम-राज्य’ मतलब धर्म-राज्य. ‘धर्म-राज्य’ कहते ही कुछ आधुनिक नामसमझ नाक-भौं सिकुडने लगेंगे. उन्हें ‘राम-राज्य’ थिओक्रॅटिक स्टेट मतलब सांप्रदायिक राज्य लगेगा. इन नामसझों को ‘धर्म’ और ‘रिलिजन’ के बीच का अंतर ही पता नहीं. हमारे धर्म की अवधारणा में राज्य पंथनिरपेक्ष ही होता है. नहीं, वह वैसा होना ही चाहिए. ‘धर्म-राज्य’ का सही अर्थ होगा, नैतिकता का राज्य, न्याय का राज्य और नैतिकता मतलब चरित्र की शुद्धता, आचरण और व्यवहार में की पवित्रता और व्यक्ति की अपेक्षा तत्त्व और सिद्धांत की श्रेष्ठता. व्यक्ति की अपेक्षा समाज की श्रेष्ठता बड़ी. व्यक्ति ने स्वयं को व्यापकता के साथ जोड लेना ही धर्म है. इस अर्थ से राम-राज्य मतलब धर्म-राज्य.
एकस्य मरणं मेऽस्तु
ऊपर सीता-त्याग के प्रसंग का उल्लेख किया है. श्रीराम के जीवन में, पुन: ऐसा ही एक प्रसंग आया है. वाल्मीकि रामायण के उत्तराखंड का वह प्रसंग है. राम का ऐहिक जीवन समाप्त होने का समय आया है. कालपुरुष श्रीराम से मिलने आए, उन्होंने एकान्त में राम से भेट मांगी और जताया कि, कोई भी इस एकान्त का भंग नहीं करेंगा; जो करेंगा, उसे मृत्यु-दंड भोगना होगा. राम ने लक्ष्मण को पहरेदार नियुक्त किया. कालपुरुष के साथ संवाद चल रहा था उसी दौरान महाकोपी दुर्वास ऋषि वहॉं आये और अभी ही राम से भेट करनी है, ऐसा कहा. लक्ष्मण ने कुछ समय रुकने के लिए कहा. लेकिन कोई उपयोग नहीं हुआ. मेरे आने की जानकारी नहीं दी, तो तुम्हारे साथ सारी अयोध्या भस्म कर दूँगा, ऐसी उन्होंने धमकी दी. लक्ष्मण ने विचार किया ‘‘एकस्य मरणं मेऽस्तु मा भूत् सर्वविनाशनम्’’. आज्ञा तोड़ी, तो मुझे ही मृत्युदंड मिलेंगा. लेकिन अयोध्या तो बचेंगी. ऐसा विचार कर वह भीतर गया. राम और कालपुरुष का संवाद समाप्त हो चुका था. वे दोनों ही उठ खड़े हुए थे. फिर भी लक्ष्मण ने कहा कि, मुझे मृत्युदंड दो. मैंने आपकी आज्ञा का पालन नहीं किया. आखिर मामला वसिष्ठ के पास गया. वसिष्ठ ने कहा कि, आप लक्ष्मण का परित्याग करें और राम ने लक्ष्मण का परित्याग किया. राम बिना लक्ष्मण? हम कल्पना भी नहीं कर सकते. लक्ष्मण सीधे शरयू के किनारे पर गये और उन्होंने वहॉं जलसमाधि ली.
विजयशालित्व
और एक मुद्दा. धर्म-राज्य मतलब नीतिमत्ता, सांस्कृतिक मूल्य, न्याय का राज्य, यह सच है. लेकिन इसका अर्थ वह दुर्बलों का राज्य ऐसा नहीं. वह राज्य, जो दंडनीय है उन्हें दंड देनेवाला होता है. ताटिका, बाली, रावण यह दंडनीय थे. उन्हें दंडित किया गया. दंड-शक्ति, किसी भी राज्य की आधार-शक्ति होती है. धर्म-राज्य में भी दंड-शक्ति का महत्त्व रहेगा ही. इसी प्रकार धर्म-राज्य नित्य विनयशील राज्य होता है, होना चाहिए. राम सदैव विनयशील रहे है. ऐसा यह हमारे संस्कृति की सब विशेषताएँ प्रकट करनेवाला, राम-चरित्र है. इसलिए राम-जन्म का उत्सव है. रामनवमी मनाकर रामचंद्र के स्वच्छ, निरपेक्ष, पवित्र, कर्तव्यपरायण जीवन का स्मरण करना चाहिए. यह रामनवमी का महत्त्व है. राम राम!
-मा. गो. वैद्य
अनुवाद – विकास कुलकर्णी
babujivaidya@gmail.com
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