भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर लगातार दुसरी बार आरूढ होने की संभावना होते हुए भी, श्री नीतीन गडकरी जी स्वयं चुनाव मैदान से हट गए, इसके लिए मैं उनका अभिनंदन करता हूँ. उनके इस समझदारी के निर्णय से पार्टी की फूट टली; कम से कम वह प्रकट नहीं हुई. मेरा मत है कि, इस पद के लिए चुनाव होता तो कम से कम ७० प्रतिशत मत लेकर गडकरी जी विजयी होते. लेकिन इससे पार्टी में पड़ी दरार उजागर हो जाती. १४ नवंबर के, मेरे ‘भाष्य’- जिसने काफी सनसनी फैलाई थी, के समारोप में मैंने कहा था कि, ‘‘भाजपा एकरस है, उसके नेताओं के बीच परस्पर सद्भाव है, उनके बीच मत्सर नहीं, ऐसा चित्र निर्माण होना चाहिए, ऐसी भाजपा के असंख्य कार्यकर्ताओं की और सहानुभूतिधारकों की भी अपेक्षा है. इसमें ही पार्टी की भलाई है; और उसके वर्धिष्णुता का भरोसा भी है.’’ वह अपेक्षा नीतीन गडकरी जी ने स्वयं के उदाहरण से, कुछ अनुपात में ही सही, पूर्ण की है.
एक षडयंत्र
भाजपा के संविधान के अनुसार एक व्यक्ति लगातार (दूसरी बार), अध्यक्ष नहीं बन सकता था. संविधान की इस धारा में संशोधन कर, वह व्यक्ति पुन: एक बार उस उच्च पद पर रह सकती है, ऐसा परिवर्तन किया गया. यह संविधान संशोधन गडकरी जी के लिए ही है, ऐसा स्वाभाविक ही निष्कर्ष निकाला गया. भाजपा में एक ऐसा भी वर्ग था, जिसे यह पसंद नहीं था. इस वर्ग के लोगों ने इस संविधान संशोधन को विरोध तो नहीं किया था; लेकिन उसी क्षण से गडकरी विरोधी षडयंत्र ने जन्म लिया होगा. गडकरी जी का जिस पूर्ति उद्योग समूह के साथ संबंध था, वास्तव में जो उद्योग समूह उनकी ही पहल से निर्माण हुआ और उनके ही नेतृत्व में फला-फूला, उसके आर्थिक व्यवहार के बारे में कुछ समाचार प्रसारमाध्यमों में प्रकाशित हुए. सरकार ने भी उन समाचारों की दखल ली और उस उद्योग समूह के आर्थिक व्यवहारों की जॉंच की जाएगी, ऐसा घोषित किया. गडकरी जी ने इस जॉंच का स्वागत ही किया. लेकिन इतने से इन असंतुष्ट आत्माओं का समाधान नहीं होना था. उनमें के एक स्वनामधन्य राम जेठमलानी ने गडकरी जी के त्यागपत्र की मांग की. सरकार की जॉंच का क्या निष्कर्ष आता है, इसकी राह देखना भी उन्हें आवश्यक नहीं लगा.
दो-ढाई माह पहले की बात है. एक ऐसा अनुमान व्यक्त किया गया और मेरे ११ नवंबर के भाष्य पर जो प्रतिक्रियाएँ मुझे प्राप्त हुई, उनमें भी एक अनुमान व्यक्त किया गया कि, भाजपा के ही कुछ श्रेष्ठ व्यक्तियों ने या किसी एक व्यक्ति ने प्रसारमाध्यमों को यह ‘मसाला’ दिया होगा. राम जेठमलानी के बाद उनके पुत्र महेश जेठमलानी ने, जो भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य थे, ऐसे ‘कलंकित’ व्यक्ति के हाथ के नीचे काम करना मुझे संभव नहीं, ऐसा घोषित कर कार्यसमिति की सदस्यता का त्यागपत्र दिया था. लेकिन उस समय भी ‘कलंक’ सिद्ध नहीं हुआ था. इतना ही नहीं आरोप-पत्र की तो बात छोड दे, गडकरी जी को नोटीस तक नहीं भेजी गई थी. फिर भी जेठमलानी पिता-पुत्र को गडकरी जी ‘कलंकित’ लगे. इसलिए मुझे ऐसा लगा कि यह गडकरी जी के विरुद्ध का षडयंत्र है, और यह मैंने अपने उस ढाई माह पहले के ‘भाष्य’ में लिखा. उसके बाद यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा ने भी गडकरी जी के त्यागपत्र की मांग की. अमेरिका में वाशिंग्टन में रहने वाले भाजपा के एक समर्थक ने भी मुझे ई-मेल पत्र भेजकर अपनी ऐसी ही भावना व्यक्त की थी. उनके पत्र का पहला ही वाक्य है, ''I am saddened by your support for Gadkari'' मुझे तो पूरा विश्वास हुआ कि, यह गडकरी जी के विरुद्ध का पक्षांतर्गत षडयंत्र है. लेकिन ११ नवंबर के भाष्य के बाद यह षडयंत्र शांत हुआ. सब को लगा कि, सब कुछ मिट चुका है और गडकरी जी का पुन: अध्यक्ष बनने का मार्ग साफ हो गया है. लेकिन फिर इन लोगों ने उनका अविरोध चुनाव नहीं हो ऐसा संकल्प किया. वैसे समाचार भी प्रसारमाध्यमों में प्रकाशित हुए. उसी दौरान आय कर विभाग ने पूर्ति उद्योग समूह के कुछ कार्यालयों पर छापे मारने के समाचार आए. गडकरी जी के नामनिर्देश पत्र भरने के दो दिन पूर्व ही यह समाचार प्रकाशित हुआ. अनेकों के मन में संदेह निर्माण हुआ और वह आज भी है कि, सरकार इतने विलंब से क्यों जागी? करीब तीन माह तक सरकार किस बात की प्रतीक्षा कर रही थी? इन षडयंत्रि लोगों के और सरकार के परस्पर कुछ अनुबंध तो नहीं? अर्थात् यह केवल संदेह है. सच क्या है, यह कौन बताएगा?
कौन जिता?
गडकरी जी ने अपना नाम पीछे लेने का समाचार २२ जनवरी की रात दूरदर्शन के चॅनेल पर आया. दि. २३ को, इंडिया टी. व्ही., एनडीटीव्ही, झी और एबीपी माझा चॅनेल के प्रतिनिधि इस बारे में मेरी प्रतिक्रिया जानने के लिए मुझसे मिलने आए. इस लेख के आरंभ में मैंने जो वाक्य लिखा है वही बात मैंने मराठी, हिंदी और अंग्रेजी में बताई कि, यह सही कदम है, समझदारी का निर्णय है. उनमें से एक ने पूछा कि, इसमें कौन जिता? मैंने उत्तर दिया, विजय के श्रेय के लिए पहला क्रमांक प्रसारमाध्यमों का है और दूसरा गडकरी जी के विरुद्ध षडयंत्र रचने वालों का. जो होना था वह अब हो चुका है. राजनाथ सिंह भाजपा के अध्यक्ष बने है. विशेष यह कि, वे सर्वानुमति से उस पद पर निर्वाचित हुए है. मैं उनका अभिनंदन करता हूँ.
‘पार्टी विथ अ डिफरन्स’ याने एक विशिष्ट, अलग प्रकार की पार्टी ऐसी उसकी गरिमामय पहचान, इस पार्टी के कार्यकर्ता और नेता बताते थे; लेकिन इस सब घटनाक्रम ने ‘पार्टी विथ डिफरंसेस’ मतलब मतभेदों से सनी पार्टी ऐसी उसकी प्रतिमा बन गई थी. उसे सुधारने का मौका नए अध्यक्ष को मिला है. राजनाथ सिंह अनुभवी सियासी नेता है. उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके है. केन्द्र में भी मंत्री थे और मुख्य यह कि इससे पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके है. सब की सहमति से उन्हें यह पद मिला है. उन सब के सहयोग की अपेक्षा वे रखते होगे, तो वह स्वाभाविक ही है. परीक्षा की घडी बहुत दूर नहीं. सवा वर्ष के भीतर ही लोकसभा का चुनाव हो रहा है; उसमें पार्टी एकजुट होकर उतरेगी, ऐसा विश्वास है.
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सुशील कुमार शिंदे का निषेध
‘हिंदू दहशतवाद’, ‘भगवा आतंकवाद’, ‘संघ के शिबिर मतलब आतंकवादियों को प्रशिक्षण देने की शाला’ - जैसी बातें भारत के हाल ही में गृहमंत्री बने सुशील कुमार शिंदे के मुँह से निकली इसका मुझे बहुत ही अचरज हुआ. दुख भी हुआ. मैं उन्हें पहचानता हूँ. शायद वे भी मुझे पहचानते होगे. ऐसी उटपटांग बातें कहने का उनका स्वभाव नहीं. सदा मुस्कुराते रहने वाला वह व्यक्तिमत्त्व है. उनके मुख से ऐसी हल्के दर्जे की बाते निकली, इसका मुझे बहुत अचरज हुआ. ‘हिंदू आतंकवाद’ कहे तो स्वयं शिंदे भी उस आतंकवाद के संवाहक सिद्ध होते है. कारण वे हिंदू है. फिर, ऐसा स्पष्टीकरण आया कि, उन्होंने ‘हिंदू आतंकवाद’ नहीं कहा था, ‘भगवा आतंकवाद’ यह उनका शब्द था. सुशील कुमार शिंदे को इस रंग के सब अर्थच्छटाओं की जानकारी निश्चित ही होगी. ‘भगवा’ रंग, पवित्रता, त्याग, संन्यस्त जीवन का निदर्शक है. इसलिए वह लोगों के आदर, सम्मान और पूजनीयता का रंग बना है; प्रतीक बना है. उसे आतंकवाद से जोडकर सुशील कुमार ने सारे हिंदूओं की इस भावना का अपमान किया है.
पार्टी दूर हटी
शिंदे जिस कॉंग्रेस पार्टी से है, जिस पार्टी के होने के कारण उन्हें गृहमंत्री पद के लिए चुना गया, उस पार्टी के गले भी शिंदे का यह प्रतिपादन नहीं उतरा. उस प्रतिपादन के गंभीर और दुष्प्रभावी परिणाम पार्टी के ध्यान में आए और कॉंग्रेस के अधिकृत प्रवक्ता ने, पार्टी को शिंदे के इस वक्तव्य से दूर किया. उचित तो यह होता कि, इसके बाद शिंदे संपूर्ण हिंदू जनता की माफी मांगकर अपने पद से त्यागपत्र देते. ऐसा होता तो लोग मानते कि, आदमी से भूल होती ही है, कारण मनुष्य स्खलनशील है, यह सब जानते है; अनजाने कभी जुबान फिसल जाती है. लोग उन्हें निश्चिय ही क्षमा करते. लेकिन सुशील कुमार ने, उनके नाम को शोभा देने जैसा कुछ भी नहीं किया. ऐसा लगता है कि, फिलहाल वे मौनव्रत में है.
संघ और आतंकवाद
श्री शिंदे की तीसरी खोज यह है कि, संघ के शिबिरों में आतंकवाद का प्रशिक्षण दिया जाता है. शिंदे महाराष्ट्र से आते है. सोलापुर से. सोलापुर में संघ है ही. वहॉं कभी न कभी संघ के शिबिर लगे ही होगे. कितने आतंकवादी निकले सोलापुर से? प्रस्तुत लेखक ने भी संघ शिक्षा वर्ग में तीन वर्ष का प्रशिक्षण लिया है. इन वर्गों में अनेक वर्ष शिक्षक का भी काम किया है. फिर मैंने भी आतंकवाद ही सीखा होगा और वही मैंने और को भी सिखाया होगा. क्या यह हमारे मित्र सुशील कुमार शिंदे को मान्य है?
गृह विभाग से प्रश्न
चॅनेल वालों ने मुझसे इस बारे में भी प्रश्न पूछे. मैंने कहा, ‘‘आरोप गंभीर है. हमारे देश के कानून का भंग करने वाले उन सब के विरुद्ध मुकद्दमें दर्ज कर कानून को अपना काम करने दे.’’ शिंदे और उनके गृह सचिव ने कहा है कि, उनके पास सबूत है. फिर मुकद्दमें दर्ज करने में विलंब क्यों? वे किसकी अनुमति की राह देख रहे है? उनके अधिकार में काम करने वाले ‘राष्ट्रीय अन्वेषण विभाग’ने दस ‘आतंकवादी स्वयंसेवकों’ के नाम प्रकाशित किए है. कुछ समय के लिए मान भी ले कि, अन्वेषण विभाग सही कह रहा है. इन दस में साध्वी प्रज्ञासिंग ठाकुर का भी नाम है. गृहमंत्रालय के सचिव नासमझ हो सकते है. लेकिन शिंदें तो वैसे नहीं. क्या उन्हें इतना भी पता नहीं है कि, संघ में किसी महिला को प्रवेश नहीं होता? फिर वह महिला संघ के प्रशिक्षण शिबिर में कैसे आएगी? एक नाम स्वामी असीमानंद का है. वे गुजरात के डांग जिले में प्रसिद्ध है. वे संघ में कब थे, उन्होंने कब प्रशिक्षण लिया, क्या गृह विभाग यह बता सकेगा? दो या तीन भूतपूर्व संघ प्रचारकों के नाम भी उन्होंने दिए है. उनमें एक नाम है सुनील जोशी. सरकारी रिपोर्ट बताती है कि, वे १९९० से २००३ तक संघ के प्रचारक थे. दिसंबर २००७ में उनकी हत्या की गई. उनकी हत्या किसने की? क्यों की? बाहर के लोगों ने उनकी हत्या की या आरोपित आतंकवादियों में से किसी ने उन्हें मारा? इन पॉंच वर्षों में सरकार मतलब उनका गुप्त अन्वेषण विभाग इतना भी खोज नहीं पाया, यह आश्चर्यजनक नहीं है? संदीप डांगे यह और एक भूतपूर्व प्रचारक का नाम इस सूची में है. बताया जाता है कि वे फरार है. इतने समय में सरकारी गुप्तचर विभाग उन्हें भी नहीं ढूंढ पाया, इससे इस विभाग की कार्यकुशलता का अनुमान लगाया गया, तो वह शिंदे साहब को मान्य होगा? कॉंग्रेस मे भ्रष्टाचारी नेताओं की, जिन पर आरोप लगे है और मुकद्दमें चल रहे है, की संख्या कम नहीं होगी. टू जी स्पेक्ट्रम, राष्ट्रकुल क्रीडा घोटाला, कोयला खदान घोटाला, आदर्श इमारत घोटाला यह कॉंग्रेसजनों के भ्रष्टाचार के ताजे उदाहरण सर्वपरिचित है. इससे संपूर्ण कॉंग्रेस पार्टी भ्रष्टाचारी है, ऐसा निष्कर्ष किसी ने निकाला तो वह सुशील कुमार शिंदे को मान्य होगा? और उसके बाद भी वे पार्टी में रहेगे? उत्तर सुशील कुमार जी ने ही देना है.
मुझे यहॉं अधोरेखित करना है कि, यह सरकारी अन्वेषण शाखा सफेद झूठ बोल रही है, यह सिद्ध हुआ है. हिंदू आतंकवादी बताकर जिन्हें पकड़ा गया है, उनके विरुद्ध समझौता एक्स्प्रेस में बम रखने का आरोप है. लेकिन हमारे देश के एक बुद्धिवंत एस. गुरुमूर्ति ने इस मामले की बारीकी से जॉंच की और उनका निष्कर्ष है कि, यह हमला लष्कर-ए-तोयबा इस इस्लामी अतिरेकी संगठन ने ही किया था. अरीफ कासमनी इस ‘लष्कर’के संगठक की उसमें मुख्य भूमिका थी. उन्होंने इसकी पूरी रिपोर्ट २०-११-२०१२ को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को प्रस्तुत की, उस समय प्रणव मुखर्जी भी चकित हुए. गुरुमूर्ति ने यह बात भी स्पष्ट की है कि, २० जनवरी २००९ को महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दस्ते ने रचि - कर्नल पुरोहित ने समझौता एक्स्प्रेस में रखे गए बम के लिए आरडीएक्स उपलब्ध करा दिया था - यह कहानी झूठ है. फिर भी २४ जनवरी १३ को ‘हिंदू टेरर’ शीर्षक में कुछ हिंदू-द्वेषी महाभागों ने एक पत्र प्रसिद्ध कर तथाकथित हिंदू आतंकवादियों को कर्नल पुरोहित ने ही आरडीएक्स दिया था, ऐसा उल्लेख किया ही है. झूठ की भी कोई सीमा होनी चाहिए या नहीं? गुरुमूर्ति जी का वह संपूर्ण लेख ‘न्यू इंडियन एक्स्प्रेस’ इस चेन्नई से निकलने वाले दैनिक के २४ जनवरी के अंक में प्रकाशित हुआ है. जिज्ञासू अवश्य पढ़े. (पढें : http://www.vskbharat.com//Encyc/2013/1/24/True-lies-of-Sushil-Kumar-Shinde.aspx?NB=&lang=2002&m1=&m2=&p1=&p2=&p3=&p4=)
पाकी आतंकवादियों को आनंद
शिंदें के वक्तव्य से, उनकी प्रतिष्ठा कितनी बढ़ी, या उनकी पार्टी को मुसलमानों के मत अपनी ओर मोडने के लिए कितना लाभ होगा, यह तो उन्हें ही पता है. लेकिन पाकिस्तान के आतंकवादियों को निश्चित ही इसका लाभ हुआ है. मुंबई में हुए बम विस्फोटों का सूत्रधार, लष्कर-ए-तोयबा का एक प्रमुख नेता, भारत सरकार जिसे गिरफ्तार करने की और भारत के हवाले करने की मांग कर रही है, वह हफीज सईद खुषी के मारे उछल रहा है. शिंदे जी क्या आपको यही अभिप्रेत है? मुझे विश्वास है कि आपने इसकी कल्पना भी नहीं की होगी. लेकिन यह हुआ है. भारत ही अपनी जमीन पर आतंकवाद प्रशिक्षित कर रहा है, ऐसा निष्कर्ष उसने आपके वक्तव्य से निकाला है. अनजाने ही सही आपकी फिसली जुबान से यह महान् प्रमाद हुआ है फिर भी आपको गृहमंत्री के रूप में बने रहने में स्वारस्य अनुभव होता है!
- मा. गो. वैद्य
(अनुवाद : विकास कुलकर्णी)
Babujivaidya@gmail.com
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