Thursday 10 November 2011

टीम अण्णा, कॉंग्रेस और संघ

अण्णा हजारे के आंदोलन से सामान्य जनमानस प्रभावित हुआ है, उसी समय उनके टीम में की दुर्बलता प्रकट होने लगी है| इस दुर्बलता का, उनके आंदोलन पर बहुत विपरित परिणाम होगा, ऐसा मुझे नहीं लगता| लेकिन, इससे अण्णा के विरोधकों को, उनके उपर आघात करने के लिए एक शस्त्र मिल गया, यह मान्य करना ही पड़ेगा|

उपोषण पर्व

पहले सब ने यह बात ध्यान में लेनी चाहिए कि, टीम अण्णा अनेक वर्ष संगठित काम करने के बाद नहीं बनी है| अण्णा के विरोधक यह ध्यान में नहीं लेंगे; कारण उनका उद्दिष्ट येन केन प्रकारेण, अण्णा को बदनाम करना ही है| इन विरोधकों में कॉंग्रेस और उनके नीतिनिर्धारक अग्रणी है| बाबा रामदेव के आंदोलन के समान ही, अण्णा का आंदोलन उन्हें कुचलना था| लेकिन वह संभव नहीं हुआ| कॉंग्रेस सरकार ने, उन्हें कानून तोडने के लिए पकड़ा और जेल में भी भेजा| लेकिन सरकार की ही फजिहत हुई; अण्णा को एक दिन के भीतर ही मुक्त करना पड़ा| फिर अण्णा का अनिश्‍चितकालीन अनशन आरंभ हुआ| उसकी व्यापकता से सरकारी की आँखों चौंधियॉं गई| सरकार ने अण्णा को पकड़ा तो सही, लेकिन इसके परिणाम में सरकार ही मुश्किल में फँस गई| अंत में उसमें समझौते का रास्ता निकला और वह अनशन समाप्त हुआ|

बदले की मानसिकता

लेकिन इसका अर्थ सरकार अपनी फजिहत भूली ऐसा करना गलत होगा| सरकार भूली नहीं| अण्णा और उनकी टीम यह ध्यान में रखे कि, सरकार बदला लेने की ताक में है; तत्पर है| उनके पाले हुए हरदम भौंकनेवाले लोग तो मौका खोजते रहेंगे| मौका नहीं मिला तो कृत्रिम रीति से तैयार करेंगे| लेकिन अण्णा ने उनके टीकास्त्रों से डगमगाने का कारण नहीं|
अण्णा की टीम के बारे में विचार करते समय हमने यह ध्यान में रखना चाहिए कि, ये लोग विविन्न क्षेत्रों में कार्यरत है| वे प्रामाणिक है| लेकिन, अनेक प्रश्‍नों के बारे में उनके मत भिन्न हो सकते है| अण्णा के आंदोलन का मुख्य लक्ष्य जनलोकपाल बिल संसद से पारित करा लेना है| उनका एक निश्‍चित उद्देश्य है| वह है, सरकारी काम में का भ्रष्टाचार रोकना और भ्रष्टाचारप्रवण व्यक्तियों के मन में दंड का धाक निर्माण करना| सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त है, इस बारे में दो मत नहीं| विधायिकाओं के सदस्य भी भ्रष्टाचारलिप्त है| जिनकी खरीद-बिक्री हो सकती है, ऐसा बिकाऊ माल उनमें भी है| इसी बिकाऊ माल के कारण २००८ को विश्‍वासमत प्रस्ताव के संकट में मनमोहन सिंह की सरकार टिक सकी| इस सरकार में शर्म की संवेदना का अंश भी बचा होता तो, उसने, सांसदों को भ्रष्ट करने के बदले पदत्याग किया होता| न्यायपालिका भी इस बिमारी से मुक्त नहीं| कर्नाटक में के दो लोकायुक्तों के मामले ताजे है| सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश भी आरोपों के किचड़ से मुक्त नहीं| इन सब पर धाक रहे, कार्यपालिका, विधिपालिका और न्यायपालिका ये जनतांत्रिक राज्यप्रणाली के जो तीन स्तंभ है, वे यथासंभव निर्दोष रहने चाहिए, इसके लिए जनलोकपाल बिल की योजना की जा रही है, संसद यह बिल मंजूर करे, यह अण्णा के आंदोलन का प्रयास है| इस कारण, इस आंदोलन को राजनीतिक आयाम है ही|

उद्देश्य राजनीतिक

गत सात वर्षों से कॉंग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील मोर्चा की सरकार राज कर रही है| उनके कार्यकाल में ही विधिपालिका और कार्यपालिका से भ्रष्टाचार के गंभीर अपराध हुए है| स्वाभाविक ही, अण्णा का आघात लक्ष्य कॉंग्रेस पार्टी और उसकी सरकार ही होगी| भाजपा, केन्द्र की सत्ता में होती और उसके कार्यकाल में भ्रष्टाचार के ऐसे गंभीर प्रकार होते तो, अण्णा के आंदोलन के निशाने पर भाजपा होती| आज कॉंग्रेस पार्टी उनके निशाने पर होना स्वाभाविक है| कारण, कॉंग्रेस के नेतृत्व में के गटबंधन का संसद में बहुमत है|
इस कारण, राजस्थान के मरुस्थल में जलसंवर्धन का काम करनेवाले राजेन्द्रसिंह या वनवासी क्षेत्र में अच्छा काम करनेवाले राजगोपाल ने राजनीति का कारण बताकर अण्णा टीम से बाहर निकलने में कोई मतलब नहीं| वैसे देखा जाय तो ‘भ्रष्टाचार का विरोध’ यह नकारात्मक कार्य है| स्वच्छ, पारदर्शक समाजजीवन की निर्मिती यह भावात्मक लक्ष्य है| टीम अण्णा का यही अंतिम लक्ष्य है, फिर भी सरकारी यंत्रणा में का भ्रष्टाचार निमूर्लन यह उनके आंदोलन का तात्कालिक लक्ष्य है; और यह लक्ष्य प्राप्त होने के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट कॉंग्रेस पार्टी की ही है| राजेन्द्रसिंह और राजगोपाल जैसे जानकारों के ध्यान में यह बात नहीं आती, यह आश्‍चर्यजनक है| अपने निवेदन में राजगोपाल ने एक सत्य कथन किया है कि, ‘‘(अण्णा की) यह टीम कभी भी एकदूसरे के साथ सुसंगतता नहीं रखती थी| इस समूह को ‘टीम’ कहना भी सही नहीं था| वे विविध क्षेत्रों में काम करनेवाले लोग है|’’ राजगोपाल का यह विश्‍लेषण बिल्कुल सही है| लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए था कि, अण्णा के आंदोलन का उद्देश्य राजनीतिक है| इस कारण टीम अण्णा ने हिस्सार के चुनाव में कॉंग्रेस को मत नहीं दे, ऐसा बताने में कुछ भी अनुचित नहीं था| टीम अण्णा ने किसी पार्टी या व्यक्ति को मत देने के लिए नहीं कहा था| कॉंग्रेस को हराओ, यही बताया और हरियाणा की जनता ने वह माना| कॉंग्रेस के उम्मीदवार की अनामत भी जप्त हुई|

प्रेरक शक्ति

टीम अण्णा के एक मुख्य सदस्य प्रशांत भूषण भी विवाद में फँसे| उन्होंने काश्मीर के बारे में मत व्यक्त किया| वह टीम अण्णा का मत कैसे हो सकता है? काश्मीर की समस्या पर हल ढूढंने के लिए अण्णा का आंदोलन नहीं था| हॉं, प्रशांत भूषण के विरुद्ध लोगों का रोष हो सकता है| लेकिन उनके समान ही मत रखनेवाले अन्य भी तथाकथित विद्वान हमारे देश में है| उनपर ऐसा जनरोष क्यों नहीं बरसा? प्रशांत भूषण पर ही क्यों? कारण, टीम अण्णा के अग्रगामी सदस्यता के कारण, प्रशांत भूषण लोगों के सम्मान और आदर के भाजन बने थे| उनकी वह नैतिक ऊँचाई कम करने के लिए, अत्यंत निषेधार्ह मार्ग का अवलंब कुछ अविचारी लोगों ने किया| कोई भी समंजस देशहितैषी व्यक्ति इस मार्ग की घोर निंदा ही करेगा| लेकिन अनजाने ही सही प्रशांत भूषण ने अण्णा के विरोधकों के हाथों में शस्त्र दे दिया है| फिर टीम अण्णा के दूसरे महत्त्वपूर्ण सदस्य अरविंद केजरीवाल पर भी चप्पल फेंकी गई| जिसने चप्पल फेंकी उसे पकड़ा गया| लेकिन वह अपने कृत्य समर्थन नहीं कर सका| ‘‘केजरीवाल, आंदोलन को गलत दिशा में ले जा रहे है, उन्होंने संसद का शीतकालीन अधिवेशन होने तक रुकना चाहिए था’’, ऐसा उसने कहा, ऐसा प्रसिद्ध हुआ है| लेकिन या सब रटीरटाई पोपटपंची लगती है| मेरा संदेह है कि, प्रशांत भूषण या केजरीवाल पर हुए हमले के पीछे प्रेरक शक्ति कोई दुसरी ही होनी चाहिए|

किरण बेदी का मामला

प्रशांत भूषण और केजरीवाल के बाद अब किरण बेदी का नंबर लगा है| उन्होंने सामान्य श्रेणी में हवाई यात्रा की| शौर्यपदक विजेता होने के कारण उन्हें हवाई जहाज के सामान्य श्रेणी के टिकट के किराए में ७५ प्रतिशत छूट मिलती है| लेकिन जिन संस्थाओं ने उन्हें कार्यक्रम-भाषण के लिए निमंत्रित किया था, उनकी ओर से उन्होंने पूरा किराया लिया, ऐसा इस शिकायत का आशय है| श्रीमती बेदी ने भी यह मान्य किया है| उनका स्पष्टीकरण है कि, उन्होंने इस बचाई हुई राशि का उपयोग स्वयं के लिए नहीं किया; उनकी जो गैरसरकारी सेवा संस्था (एनजीओ) है, उसके लिए किया| लेकिन बचाव का यह युक्तिवाद खोखला है| अपनी सेवा संस्थाओं के लिए पैसे मिलाने के अनेक रास्ते उपलब्ध होते है| इसके लिए झूठ का सहारा लेने की आवश्यकता नहीं| दूसरा ऐेसा भी कह सकता है कि, मैंने घूस ली, लेकिन अपने लिए नहीं, मेरी पार्टी के लिए ली| लेकिन उसका यह स्पष्टीकरण समर्थनीय सिद्ध नहीं होता| एक राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष ने, एक ‘स्टिंग ऑपरेशन’में मोटी राशि स्वीकारी थी| उनका भी स्पष्टीकरण यही था कि, मैंने वह पैसे अपने लिए नहीं लिये थे; मेरी पार्टी के लिए लिये थे| लेकिन यह स्पष्टीकरण चल नहीं पाया| उन्हें अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा| श्रीमती बेदी ने इस प्रकार बचाई राशि बहुत बड़ी नहीं होगी| दो-तीन लाख से कम ही होगी| वह राशि लौटाकर उन्होंने यह धब्बा मिटा देना योग्य होगा|

आरएसएस

अण्णा और उनकी टीम को बदनाम करने का अभियान बिल्कुल प्रारंभ से चल रहा है| जंतरमंतर मैदान पर हुए उनके अनशन मंडप में भारत माता का फोटो लगाया गया था| उसपर आक्षेप लिया गया कि, यह रा. स्व. संघ (आरएसएस) का प्रतीक है; इसलिए अण्णा का आंदोलन संघ प्रेरित है| इस आक्षेप के कारण अण्णा अकारण नरम पड़े| उन्होंने भारत माता का फोटो वहॉं से हटा दिया| कॉंग्रेस की ओर से भौंकनेवालों के ध्यान में आया कि, यह अण्णा की नाजुक रग है| फिर संघ को लेकर अण्णा पर हमले शुरू हुए| कॉंग्रेस पार्टी के महासचिव दिग्विजय सिंह ने अंदाधुंद तोफ डागना शुरू किया| अण्णा आरएसएस के मुखौटा है, आरएसएस के राष्ट्रपतिपद के उम्मीदवार है इत्यादि| संघ को किसी भी आंदोलन के साथ जोड़ने से अल्पसंख्यकों का एक बड़ा गुट उससे दूर हो जाता है यह सब को पता है| इसलिए संघ को घसीटने का काम चलते रहता है| ‘भारत माता की जय’ या ‘वंदे मातरम्’ यह संपूर्ण राष्ट्र का भावविश्‍व के प्रकट करनेवाले नारे है| उन्हें केवल संघ के साथ जोडना, यह संघ का गौरव ही है| लेकिन उन भारतव्यापी नारों को किसी एक संगठन के साथ जोडना या उसपर आक्षेप लेना, यह राष्ट्रद्रोह है, यह इन लोगों के ध्यान में नहीं आता, यह खेद की और चिंता की बात है| किसी इमाम ने फिर फतवा निकाला कि, ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम्’ के नारे लगाना इस्लामविरोधी है, इसलिए मुसलमान अण्णा के आंदोलन में शामिल ना हो| यह फतवा मुस्लिम बंधुओं ने नहीं माना, यह बात अलग है| लेकिन क्या उस पर कॉंग्रेस या बडबोले दिग्विजय सिंह की कोई प्रतिक्रिया आई?  नाम ना ले| कारण यह मुसलमानों को अण्णा के आंदोलन से दूर करने के उनके उद्दिष्ट के अनुकूल था|

संघ की रीत

आगे और एक मजेदार बात हुई| ६ अक्टूबर को विजयादशमी के उत्सव में भाषण करते समय सरसंघचालक मोहन जी भागवत ने भ्रष्टाचार का भी मुद्दा चर्चा में लिया| उन्होंने इतना ही कहा कि, संघ के स्वयंसेवक भ्रष्टाचारविरोधी आंदोलन में निरपेक्ष बुद्धि से, किसी भी श्रेय की अपेक्षा ना करते हुए, स्वभावानुकूल शामिल हुए| मोहन जी के भाषण में की तीन विशेषताएँ बारीकी से ध्यान में लेनी चाहिए| ‘निरपेक्ष बुद्धि से’ यह पहली विशेषता| संघ को इस आंदोलन से अपने लिए क्या हासिल करना था? और व्यतिरेक पद्धति से विचार करे तो ऐसा भी सोचा जा सकता है कि, संघ के स्वयंसेवक इस आंदोलन में सक्रिय भाग नहीं लेते तो संघ का का क्या बिगडता? दूसरी विशेषता यह कि, ‘श्रेय की अपेक्षा ना करते हुए|’ संघ ने कभी आभार की भी अपेक्षा नहीं रखी| वह अपने काम के ढोल भी नहीं बजाता| इसलिए संघ विरोधक, यह गुप्त संगठन है, ऐसी गलतफहमी पालकर उसे फैलाते रहते है| कितने लोगों को पता है कि, संघ में ‘प्रचार विभाग’ सन् १९९४ को आरंभ हुआ| मतलब संघ की स्थापना के करीब ६९ वर्ष बाद! संघ को प्रसिद्धि की हाव तो छोड दे, लेकिन इच्छा भी नहीं होती; और तिसरी विशेषता है ‘स्वभावानुकूल’, कुछ दिनों पूर्व सिक्कीम में भूकंप हुआ| सहायता के लिए संघ के स्वयंसेवक दौडकर गए| क्या संघ ने इसके ढोल पिटें? उनकी हाफ पँट से लोगों को पता चला कि वे संघ के स्वयंसेवक है| संकट के समय सहायता के दौडकर जाना, यह स्वयंसेवकों की स्वाभाविक कार्यरीति है; और वहीं मोहन जी ने विजयादशमी के भाषण में अधोरेखित की|

अण्णा की प्रतिक्रिया

बस, फिर क्या था; दिग्विजय सिंह जैसे वाचाल अण्णा विरोधकों को लगा कि, अण्णा पर वार करने के लिए एक धारदार शस्त्र उनके हाथ लगा है| उन्होंने किए आघातों का मुझे आश्‍चर्य नहीं हुआ| लेकिन अण्णा की प्रतिक्रिया का अप्रत्याक्षित थी| उन्हें इसमें साजिश की बू आई| संघ यह साजिश क्यों करेगा? अण्णा या बाबा रामदेव का अनशन पर्व शुरू होने के कम से कम एक माह पूर्व हुई संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने एक प्रस्ताव पारित कर भ्रष्टाचारविरोधी आंदोलन में शामिल होने के लिए स्वयंसेवकों से आवाहन किया था| उन्हें हाथ में फलक लेकर या गणवेश पहनकर जाने के लिए नहीं कहा था| दिल्ली के दो-तीन कार्यकर्ताओं ने मुझे बताया कि, रामलीला मैदान पर रोज पच्चीस-तीस हजार लोगों की जो भीड होती थी, उसे सम्हालने और अन्य गैरप्रकार रोकने में, संघ के स्वयंसेवकों ने सहायता की|
लेकिन अण्णा विरोधकों के ध्यान में आया कि, संघ यह अण्णा की नाजुक रग है; उसे दबाते ही अण्णा चिडते है| इसी घुस्से में उन्होंने, दिग्विजय सिंह को पागलखाने में भरती करो, ऐसा कहा होगा| संघ का यथार्थ आकलन ना होना यह भी एक कारण हो सकता है| इसलिए ‘साजिश’ जैसा हास्यास्पद आरोप वे कर सके| अण्णा सहज ही ऐसा भी कह सकते थे कि, १२० करोड भारतीयों के लिए मेरा आंदोलन है; इन १२० करोड में संघ के स्वयंसेवक भी शामिल है; वे आंदोलन में शामिल हो सकते है; ऐसा वक्तव्य उनकी व्यापक प्रगल्भता को शोभा देता| लेकिन ऐसा नहीं होना था| अंत में एक बताऊँ - जंतरमंतर पर के उपोषण के संदर्भ में नागपुर में जो आमसभा हुई थी, उसमें मेरा भाषण हुआ; और उस समय मेरे सिर पर संघ की काली टोपी थी| कारण मैं यह काली टोपी पहनकर ही घूमता हूँ और रामलीला मैदान पर हुए आंदोलन के समय, नागपुर में जिन्होंने सब कार्यक्रमों का आयोजन किया, उनमें के प्रमुख कार्यकर्ता संघ के स्वयंसेवक ही है| अण्णा हजारे यह समझ लेंगे तो दिग्विजय सिंह जैसों के बेताल वक्तव्यों की उपेक्षा कर उसे कचरे की टोकरी दिखाएँगे| अण्णा, आप विश्‍वास रखें| सारा भारत आपके समर्थन में खड़ा है और भारत में हमारे जैसे संघ के स्वयंसेवकों का अंतर्भाव भी है ही!

- मा. गो. वैद्य, नागपुर
e-mail: babujivaidya@gmail.com
(अनुवाद : विकास कुलकर्णी)

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